बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिस तरह से माओवादियों को ७ दिन का समय दिया गया है उसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि जिस तरह से अभी तक माओवादी काम करते रहे हैं उसे देखते हुए कोई भी यह नहीं कह सकता है कि वे कब कौन सा कदम उठायेंगें ? यह पूरा मामला जितना जटिल है ममता ने इस पर उतनी ही जल्दबाजी में फैसला ले लिया है क्योंकि जब तक इस पूरी समस्या के बारे में गंभीरता से विचार नहीं किया जायेगा तब तक इसके समाधान के बारे में कैसे सोचा जा सकता है ? यह सही है कि इस आन्दोलन की शुरुवात में कुछ लोगों ने विकास और उपेक्षा से पीड़ित लोगों को एक जगह इकठ्ठा करने की कोशिश की थी पर अन्य लोगों के समर्थन से ये इतने उग्र हो गए कि इनका दुस्साहस बढ़ता ही चला गया और आज जब कुछ दिनों के लिए इन्होंने शांति बनाये रखी तो फिर से इन्हें उकसाने वाली कोई भी बात शांति नहीं लाने वाली है.
इस मामले को इस तरह से जल्दी से हल करने के स्थान पर ममता को इनसे बात करने के लिए एक समिति बनानी चाहिए जो एक समयबद्ध सीमा में इनसे सभी मुद्दों पर खुली बात कर सके और इस बातचीत कि पूरी वीडियो रेकार्डिंग भी करायी जाए जिससे बाद में ये यह न कह सकें कि उनकी मांगों पर ठीक से विचार नहीं किया गया या ये फिर से कोई अन्य बहाना बनाकर कुछ नया नहीं कहने लगें ? यह सही है कि ममता की लोकप्रियता से बहुत से लोगों को जलन होती है और ऐसे में इन माओवादियों को इनका समर्थन नहीं मिल जायेगा यह कोई भी जानता क्योंकि राजनीति में अपने पैर जमाने के लिए नेता कुछ भी कर सकते हैं. माओवादी भी देश के ही अंग हैं क्या हुआ अगर वे थोड़े से भटक गए हैं आज उनकी मांग पर विचार किये जाने की ज्यादा आवश्यकता है क्योंकि कल वे सरकार पर बात न करने का आरोप भी लगा सकते हैं.
ममता को इस तरह से हथियार डालने की बात करने के स्थान पर कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे वे अपन को फिर से बिलकुल अलग थलग महसूस न करें आज उनकी यह असुरक्षा की भावना कल को एक बहुत बड़े संकट को जन्म दे सकती है बंगाल में जिस तरह से इनका नेटवर्क काम करता है उसमें सुरक्षा बलों के लिए कुछ भी करना मुश्किल ही है फिर इनके छिपने के लिए पड़ोसी बिहार, झारखण्ड के साथ ओडिशा छत्तीसगढ़ से लेकर आन्ध्र प्रदेश तक पूरे द्वार खुले हुए हैं. ऐसे में अगर एक राज्य में सख्ती की जाती है तो ये अपने को थोड़े दिनों के लिए अन्य राज्य में शिफ्ट कर सकते हैं या अपनी गतिविधियों को थोड़े समय के लिए धीमा या बंद भी कर सकते हैं. इस तरह के तात्कालिक उपायों से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि जब तक इनकी समस्या का समाधान नहीं किया जायेगा तब तक ये समझा कर या भय के द्वारा आम लोगों को फुसलाते रहेंगें जिससे सरकार के लिए समस्या कम नहीं होगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस मामले को इस तरह से जल्दी से हल करने के स्थान पर ममता को इनसे बात करने के लिए एक समिति बनानी चाहिए जो एक समयबद्ध सीमा में इनसे सभी मुद्दों पर खुली बात कर सके और इस बातचीत कि पूरी वीडियो रेकार्डिंग भी करायी जाए जिससे बाद में ये यह न कह सकें कि उनकी मांगों पर ठीक से विचार नहीं किया गया या ये फिर से कोई अन्य बहाना बनाकर कुछ नया नहीं कहने लगें ? यह सही है कि ममता की लोकप्रियता से बहुत से लोगों को जलन होती है और ऐसे में इन माओवादियों को इनका समर्थन नहीं मिल जायेगा यह कोई भी जानता क्योंकि राजनीति में अपने पैर जमाने के लिए नेता कुछ भी कर सकते हैं. माओवादी भी देश के ही अंग हैं क्या हुआ अगर वे थोड़े से भटक गए हैं आज उनकी मांग पर विचार किये जाने की ज्यादा आवश्यकता है क्योंकि कल वे सरकार पर बात न करने का आरोप भी लगा सकते हैं.
ममता को इस तरह से हथियार डालने की बात करने के स्थान पर कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे वे अपन को फिर से बिलकुल अलग थलग महसूस न करें आज उनकी यह असुरक्षा की भावना कल को एक बहुत बड़े संकट को जन्म दे सकती है बंगाल में जिस तरह से इनका नेटवर्क काम करता है उसमें सुरक्षा बलों के लिए कुछ भी करना मुश्किल ही है फिर इनके छिपने के लिए पड़ोसी बिहार, झारखण्ड के साथ ओडिशा छत्तीसगढ़ से लेकर आन्ध्र प्रदेश तक पूरे द्वार खुले हुए हैं. ऐसे में अगर एक राज्य में सख्ती की जाती है तो ये अपने को थोड़े दिनों के लिए अन्य राज्य में शिफ्ट कर सकते हैं या अपनी गतिविधियों को थोड़े समय के लिए धीमा या बंद भी कर सकते हैं. इस तरह के तात्कालिक उपायों से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि जब तक इनकी समस्या का समाधान नहीं किया जायेगा तब तक ये समझा कर या भय के द्वारा आम लोगों को फुसलाते रहेंगें जिससे सरकार के लिए समस्या कम नहीं होगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें