मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

राइट टु रिकाल

   केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने यह कहा है कि अब सरकार अन्ना के प्रस्ताव राईट टु रिकाल पर काम कर रही है और इससे जुड़ी हुई कानूनी पेचीदगियों पर विचार किया जा रहा है. यह काम भारत जैसे देश में कठिन ज़रूर है पर असंभव नहीं है इससे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया था. सलमान के इस बयान के बाद लगता है कि इस बार सरकार पहले से ही अपने काम करके रखना चाहती है क्योंकि जन लोकपाल बिल पर अचानक ही शरू हुए आन्दोलन ने उसे इतना भी समय नहीं दिया था कि वह इससे जुड़े विभिन्न मंत्रालयों से व्यापक विचार विमर्श भी कर पाती जो कि हमारे देश के संविधान के अनुसार बहुत ही जटिल प्रक्रिया है. देश के इतिहास में यह पहली बार होगा कि किसी निजी बिल के बारे में सरकार अपने स्तर से स्वयं ही विचार करना शुरू कर चुकी है जो कि देश के लिए बहुत अच्छा है अब वह समय चला गया जब कुछ भी कह कर जनता को गुमराह किया जा सकता था और अब देश हित की बातें प्राथमिकता के आधार पर लेनी ही होंगीं जिससे कोई अन्य नए संकट सामने  न आने पायें.
   अच्छा हो कि इस मसले पर सरकार अन्ना के प्रस्ताव को भी उनसे विमर्श के लिए मंगवा ले और उस प्रस्ताव पर विभिन्न मंत्रालयों की सहमति के लिए अभी से प्रयास शुरू कर दे जिससे यह विधेयक बनने की राह पर आगे बढ़ सके. देश को अब त्वरित निर्णयों की आवश्यकता है अब पहले की तरह कई कई वर्षों में एक विधेयक बनाये जाने की प्रक्रिया पर रोक लगनी ही चाहिए और संविधान में कुछ ऐसा संशोधन करना चाहिये कि जिन मसलों पर शीघ्र निर्णय की आवश्यकता होती है और उसे राज्यों की विधान सभाओं की अनुमति भी चाहिए होती है उन्हें पूरी तरह से समय सीमा में बाँध देना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर विशेष सत्र बुलाये जाने के प्रावधान भी आवश्यक कर दिए जाने चाहिए. इससे जहाँ राज्यों को प्रस्ताव पर कुछ करना ही होगा और उसके बाद यह भी पता चल सकेगा कि वास्तव में सभी दल क्या चाहते हैं ? अभी जहाँ सभी कड़े प्रावधानों से बचने के लिए एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं उसके बाद वे यह सब नहीं कर पायेगें.
इस तरह के किसी भी मामले में देश में पंजीकृत सभी राजनैतिक दलों को सरकार की तरफ से बुलाया जाना चहिये क्योंकि जब तक सभी दलों को संसद के बाहर भी विचार के लिए नहीं बुलाया जायेगा तब तक पूरे देश का सही प्रतिनिधित्व नहीं हो सकेगा. यह सही है कि संसद के स्तर पर केवल सांसद ही निर्णय कर सकते हैं पर जब किसी बड़े परिवर्तन की आवश्यकता होती है तो विपक्ष में बैठे दलों की उपेक्षा कैसे की जा सकती है क्योंकि आज जो विपक्ष में बैठे हैं कल वे देश के चलाए के लिए जनता द्वारा चुने भी जा सकते हैं ? इसलिए कुछ ऐसा भी होना चाहिए जो पूरे देश का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित कर सके और देश के लिए सही कानून और दिशा निर्देश भी बना सके. मनमोहन सरकार ने जहाँ कई बड़े काम बिना शोर शराबे के किये हैं तो इससे यह आशा की जा सकती है कि यह बड़ा परिवर्तन भी वह बिना किसी के मांगे ही कर देगी जिससे आने वाले समय में देश को और भी आगे ले जाने में बहुत सहायता मिलेगी.       

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