मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

नम्मा मेट्रो

  कोलकाता और दिल्ली के बाद बेंगलुरु देश में मेट्रो सुविधा से संपन्न तीसरा देश बन गया है जिससे दक्षिण भारत में भी इस त्वरित शहरी प्रदूषण रहित और आरामदायक सेवा के और फैलने का मार्ग भी खुल गया है. आज देश में जिस तरह से शहरी सार्वजनिक परिवहन सेवा अपने बुरे दौर से गुज़र रही है उसे देखते हुए अब इस तरह की सेवा की पूरे देश में बहुत आवश्यकता है क्योंकि इसके बिना कहीं से भी कुछ भी ठीक नहीं किया जा सकेगा. यह सही है कि बड़े शहरों में सड़क यातायात का अपना ही महत्त्व है पर इस तरह से केवल सड़कों पर सारा परिवहन छोड़ा नहीं जा सकता है क्योंकि दिन पर दिन बढ़ते ट्रैफ़िक से जनता को निज़ात दिलाने का कोई अन्य साधन दिखाई भी नहीं देता है. यह सही है कि देश में तेज़ी से फैलते शहरों में किसी भी तरह की सुविधाएँ जुटा पाने में कोई भी सरकार सफल नहीं हो सकती क्योंकि देश में जिस गति से गाड़ियों की संख्या बढ़ रही है उस गति से सड़कों का निर्माण संभव नहीं है तो इसके विकल्प के तौर पर मेट्रो को शुरूकिया जा सकता है.
     दिल्ली मेट्रो ने देश को कार्यकुशलता और समय अनुपालन के साथ आरामदायक सफ़र का जो पाठ पढाया है उसे सभी बड़े शहरों को सीखने की आवश्यकता है क्योंकि अभी तक देश में सरकारी विभागों या निगमों की जो हालत रहा करती है दिल्ली मेट्रो ने ठीक उसके विपरीत काम करने का एक नया रूप ही विकसित कर दिया है. अब यह राज्य सरकारों पर निर्भर करता है कि वे इस तरह की परियोजनाओं को शीघ्रता से शुरू करें और जनता को एक आरामदायक सफ़र का आनंद और सुविधाएँ प्रदान करें. इस बारे में पहले व्यापक विमर्श की आवश्यकता है क्योंकि आम तौर पर हमारे नेताओं में इस बात की समझ ज़रा कम ही होती है कि पहले कहाँ पर किस सेवा की आवश्यकता है. दिल्ली की तर्ज़ पर सभी राज्य इतना धन नहीं जुटा सकते है और वहां पर शीला दीक्षित के निरंतर चलने वाले कार्यकाल ने भी मेट्रो को काफी गति दी क्योंकि सरकारें बदलने पर योजनाओं का बंटाधार होते हुए देश हमेशा से ही देखता रहा है. अब कानून में संशोधन होना चाहिए और विकास से जुडी किसी भी बात को जिसमें जनता का धन लग चुका है किसी भी सरकार को रोकने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए.
     संसाधनों की कमी से जूझ रहे राज्यों को मेट्रो सेवा को पहले शहरों के उन क्षेत्रों में शुरू करना चाहिए जहाँ पर इसकी लागत कम आये और फिर अन्दर की घनी आबादी वाले क्षेत्रों को चुना जाना चाहिए क्योंकि खुले स्थान पर इस बनाने और शुरू करने में बहुत आसानी रहती है जिससे जल्दी ही एक सेवा शुरू हो जाती है और उसका सही लाभ भी मिलने लगता है आज आवश्यकता संसाधनों के सही इस्तेमाल की है जिससे लोगों को इनके सही उपयोग से जल्दी से ही सही सेवाएं प्रदान की जा सकें. इस बारे में एअरपोर्ट अथारिटी की तरह ही मेट्रो अथारिटी का गठन करना चाहिए जो पूरे देश के शहरों में मेट्रो की संभावनाओं पर विचार करके आगे की नीति तय करने में राज्य सरकारों का सहयोग कर सके. संसाधनों में कमी होने की बात हमेशा से ही कही जाती रही है और आगे भी इसका यही रोना रहने वाला है इसलिए राज्य सरकारों को बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं से इसके लिए धन जुटाने के बारे में सोचना चाहिए. आवश्यकता पड़ने पर बाज़ार से पूँजी जुटाने में भी संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि जनता का पैसा बांड के रूप में लिया जा सकता है जिस पर आयकर में छूट देकर इसे और भी आकर्षक बनाया जा सकता है.        
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