मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 16 नवंबर 2011

राज्य पुनर्गठन आयोग-1

     जिस तरह से मायावती ने उत्तर प्रदेश के बंटवारे पर विधान सभा के आखिरी सत्र में प्रस्ताव लाने की बात कही है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में इस तरह के मामलों में राजनैतिक गतिविधियाँ और भी बढ़ने वाली हैं क्योंकि जब यह प्रस्ताव राज्य विधान सभा द्वारा पारित करके केंद्र सरकार को भेजा जायेगा तो इसके बाद संसद ही इस मामले में कोई सही निर्णय लेने की हक़दार है. अभी तक जिस तरह से केवल राजनीतिक हितों के लिए ही छोटे राज्यों की मांग की जाती रही है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में इस पर और अधिक राजनीति गर्माने वाली है. इस मामले में अब सभी दलों की बैठक बुलाई जानी चाहिए जिससे देश में राज्यों के पुनर्गठन पर ध्यान दिया जाये क्योंकि इस तरह से बार बार राज्य बनाये जाने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है. राज्यों के गठन में हर पहलू का ध्यान रखा जाना चाहिए न कि केवल चंद राजनैतिक हितों के लिए इस तरह से मांगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
     उत्तर प्रदेश विधान सभा द्वारा पारित प्रस्ताव से वैसे भी कुछ बहुत बड़ा नहीं होने वाला है क्योंकि अगर प्रदेश को केवल दो हिस्सों में बांटने की पहल की गयी होती तो शायद यह आसानी से पूरी हो जाती पर अब जबकि इसमें चार राज्यों का प्रस्ताव किया जा रहा है जिसमें सबसे संवेदनशील बुंदेलखंड को भी अलग करने की मांग की गयी है उससे यही लगता है कि यह मामला तब तक और भी अधिक लटकता रहेगा जब तक बुंदेलखंड के मध्य प्रदेश के हिस्से को भी सम्पूर्ण बुंदेलखंड में शामिल नहीं किया जाता है. बुंदेलखंड इन दोनों प्रदेशों में फैला हुआ है जिस कारण से बुन्देली लोग एक अलग सम्पूर्ण बुंदेलखंड की मांग करने में काफी दिनों से लगे हुए हैं. अलग राज्य बनने से काफ़ी कुछ ठीक नहीं होगा बल्कि कई जगहों पर नेता केवल अपने स्वार्थ का ही ध्यान रखेंगें जैसा कि भाजपा ने उत्तराखंड में किया है. राज्य बने ११ वर्ष बीत चुके हैं पर वहां का कोई भी नेता नहीं चाहता कि उत्तराखंड को एक सम्पूर्ण पहाड़ी क्षेत्र में बनी हुई राजधानी मिले. आज भी देहरादून को काम चलाऊ राजधानी के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है ? क्यों ? नेताओं की दृष्टि में तो उत्तराखंड ने बहुमुखी तरक्की कर ली है तो एक इतनी तरक्की करने वाला प्रदेश अपने लिए एक अदद राजधानी भी बना पाने में सक्षम नहीं है क्या ? पहाड़ के नाम पर मांगे गए इस राज्य ने केवल मैदानी क्षेत्रों के दम पर ही पूरी तरक्की की है वर्ना पहाड़ों पर क्या विकास हुआ है यह सभी जानते हैं.
   आज इस तरह की सभी मांगों पर अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर विचार किये जाने की ज़रुरत है क्योंकि ऐसा तो नहीं हो सकता कि उत्तर प्रदेश के ४ टुकड़े कर दिए जाएँ और तेलंगाना वाले चुप बैठे रहें ? अब समय है कि केंद्र को सभी राज्यों को राज्य पुनर्गठन आयोग के बारे में सूचित करते हुए एक विशेषज्ञ समिति बनानी चाहिए जिसमें कोई भी नेता न हो और यह समिति केवल संसद को अपनी राय से अवगत कराये. देश में इस तरह के प्रशासनिक पुनर्गठन की बहुत आवश्यकता है क्योंकि अब पूरे देश में ऐसा किया जाना ही उचित होगा और इस मुद्दे पर सभी दलों को मिलकर एक राय बनानी होगी. अच्छे शासन से कुछ भी किया जा सकता है उसी बिहार में नितीश ने अपने दम पर सब कुछ कर दिखाया है जहाँ पर पहले कुछ भी नहीं होता था पर प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध झारखण्ड की आज क्या हालत है यह किसी से भी छिपी नहीं है. इससे यही पता चलता है कि नेता की क्षमता से विकास होता है न कि छोटे राज्यों से ? चुनाव के समय इस तरह के शगूफे छोड़ने से कुछ वोट तो मिल ही सकते हैं और अगर इतने सारे राज्य बन भी गए तो आने वाले समय में इनके संसाधनों के बारे में कैसे क्या होगा यह अभी भी भविष्य के गर्भ में छिपा है. ऐसी किसी भी मांग को करने से पहले प्रदेश को ४ प्रशासनिक इकाइयों में बाँट कर एक प्रभारी मंत्री या उप-मुख्यमंत्री बनाकर सुशासन को प्राथमिक देनी चाहिए.    
     

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