मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 20 नवंबर 2011

अब पूर्व मंत्री भी खतरे में ?

        वाह रे यू पी की माया.. जिस व्यक्ति ने उस समय में बसपा का साथ दिया जब पार्टी को कोई नहीं जनता था आज वही बाबू सिंह कुशवाहा सरकार पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें प्रदेश के सबसे ताकतवर मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और अन्य शीर्ष अधिकारियों से जान का ख़तरा है. हो सकता है कि यह महज़ अपनी बात और अपने पर लगे आरोपों को नकारने के लिए चला गया एक दांव ही हो पर जिस तरह से स्वस्थ्य विभाग में घोटालों की अति हो गयी और पैसे का रोना रोने वाली प्रदेश सरकार ने इस अकूत धन वाली योजना में अपनों को पैसे खाने की अघोषित छूट दे रखी थी उससे यही लगता है कि हो सकता है कि कुशवाहा को वास्तव में कहीं से यह भनक लग गयी हो कि उन्हें भी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की तरह रास्ते से हटाया जा सकता है क्योंकि अब कुशवाहा जिस तरह से बर्ताव कर रहे हैं और पार्टी जैसे उनको जवाब दे रही है उससे यही लगता है कि कुशवाहा के दिन बसपा में ख़त्म हो चुके हैं और उन्हें अपने को बचाने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही होगा वर्ना पार्टी तो कौन कहे दुनिया में जीना भी मुश्किल हो सकता है ?
    यहाँ पर यह विचार करने योग्य है कि आख़िर पैसों का रोना रोने वाली सरकार ने उन योजनाओं को ठीक ढंग से लागू क्यों नहीं किया जिनसे दूर दराज़ के लोगों को कुछ सुविधाएँ मिल सकतीं ? सरकार का ध्यान तो केवल इन बातों पर ही रहा कि किस तरह से केंद्र पर दबाव बनाकर और जनता के बीच इन मुद्दों को उठाकर यह दिखाने का प्रयास किया जाये कि जैसे प्रदेश को अन्य राज्यों की तुलना में धन मिल ही नहीं रहा है ? प्रदेश में जिस तरह से योजनाओं को चलाया जा रहा है और विभिन्न सरकारी नौकरियों में अपात्रों को भरा गया है  उससे प्रदेश का कैसे भला हो सकता है ? यह भी सही है कि किसी भी सरकार में लोग अपनों को ही सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता देते हैं पर जब ये लोग काम करने के बजाय अपने तैनाती स्थल पर ही अपने राजनैतिक रुतबे का दिखावा करने की कोशिश करते हैं तो उससे सरकार की छवि कैसी बनती है यह किसी से भी छिपा नहीं है ? प्रदेश में सरकारी अमला किस हद तक निरंकुश हो गया है यह हर विभाग में देखा जा सकता है केवल कहने मात्र से ही काम नहीं चलता है कि सरकार की पैनी नज़रें सभी पर हैं बल्कि सरकार को अपनी उपस्थिति भी दिखानी पड़ती है.
    कुशवाहा के बयान के बाद हो सकता है कि वास्तव में उनकी जान को बहुत ख़तरा हो पर इस बात को सुरक्षा के स्तर पर निपटने के स्थान पर सरकार के ज़िम्मेदार इसे कुशवाहा की नौटंकी बताने से नहीं चूक रहे हैं ? ये वही लोग हैं जो मायावती से फोन पर बात करवाने के लिए कभी कुशवाहा के सामने मिन्नतें माँगा करते थे. ऐसा भी नहीं है कि इस मामले में केवल कुशवाहा ही दोषी हों क्योंकि जब घोटाले चल रहे थे तो कोई कुछ नहीं बोला पर जेल में अधिकारियों की हत्या करने वालों ने यह तो साबित कर ही दिया था कि सरकार बंद कमरों में बैठकर चाहे कुछ भी कहे पर उसकी नाक के नीचे उसको चुनौती देते हुए अपराधी बड़े केसों में भी जहाँ चाहें किसी को भी मार सकते हैं तबसे इस तरफ़ ध्यान देने की आवश्यकता बढ़ गयी है कुशवाहा की जान को ख़तरा है कि नहीं यह तो समय ही बताएगा पर आज के समय में उन्हें पूरी सुरक्षा दी जानी चाहिए क्योंकि अरबों के इस घोटाले में उनके बयान आदि पर बहुत कुछ निर्भर रहने वाला है और कहीं वास्तव में उनकी आशंका सच न साबित हो जाये और घोटाले करने वाले मौज मारते रहें. 
            

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