मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

अमेरिका का पूर्वाग्रह

            जिस तरह से अमेरिका के विदेश विभाग की वेबसाइट पर एक बार फिर से भारत के नक्शे को ग़लत तरीके से प्रस्तुत किया गया है और कहने के बाद केवल औपचारिक रूप से शिकायत करने पर भी अभी तक इस नक़्शे को हटाया नहीं गया है उससे क्या समझा जाये ? वैसे इस तरह के मामलों में मानवीय भूल की संभावनाएं हमेशा ही रहती हैं जिससे इस तरह की ग़लतियाँ सामने आती रहती हैं पर जब पिछले ६ दशकों से कश्मीर को भारत का अंग दिखाया जा रहा है तो इस तरह के नक़्शे आख़िर कहाँ से अमेरिका को मिल जाते हैं यह प्रश्न सबसे बड़ा है. क्या अमेरिका ने भारत के इस तरह के नक्शे भी बनाकर रखे हुए हैं और अगर हैं तो इनकी उसे क्या आवश्यकता है ? ज़िम्मेदारी भरी जगहों पर क्या इस तरह की हरकतें करके केवल बयानबाज़ी से काम चल सकता है ?  इस बारे में मानवीय भूल की बातें करना कोरी बकवास है क्योंकि दुनिया भर में एक एक इंच ज़मीन का हिसाब रखने वाला अमेरिका भारतीय राज्य कश्मीर के नक़्शे को कैसे भूल सकता है यह बात समझ में आने वाली नहीं है. अभी तक इस तरह की हरकतें पाक और चीन की तरफ से जान बूझकर की जाती थीं जिससे वे भारत के कश्मीर के बारे में कुछ सनसनी फैला सकें पर उनको भी इस मामले में कभी भी सफलता नहीं मिल पायी.
   मानवीय भूल की बात को इस लिए भी नहीं स्वीकार जा सकता है क्योंकि जिस अमेरिका में कानूनों में इतनी सख्ती हो की वे सामान्य शिष्टाचार को भी भूल जाते हों तो ऐसे में यह कहना कि यह केवल एक भूल थी इससे यही पता चलता है कि अमेरिका की मानसिकता में क्या है ? एक तरफ़ वह भारत के साथ निरंतर सम्बन्ध सुधारने की बातें किया करता है तो वहीं दूसरी तरफ़ इस तरह की बातें करके क्या साबित करना चाहता है ? उस अमेरिका में जहाँ पर हर बात के लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान किया गया है वहां पर किसी देश के नक्शे को इस तरह से दिखाने के लिए किस तरह की सज़ा देने के नियम हैं यह किसी को नहीं पता है ? भारतीय विदेश सचिव रंजन मथाई ने इस बारे में बिलकुल सही टिप्पणी की है कि मानचित्र विज्ञान को राजनैतिक नज़रिए से देखे जाने से ही इस तरह की समस्याएं उत्पन्न होती हैं. हो सकता है कि आज का तरक्की करता भारत अमेरिका को रास न आता हो वह इसीलिए इस तरह की बचकानी हरकतें करके अपने राजनैतिक स्तर को दिखाना चाहता हो ? वैश्विक स्तर पर आज तक अमेरिका की नीति केवल अनीति भरी ही रही हैं क्योंकि उसने जिन लोगों को पैदा किया बाद में उनको ही काम निकल जाने पर समाप्त भी किया. 
    अगर भारत भी अमेरिका की तरह ही व्यवहार करना शुरू कर दे तो क्या तब भी अमेरिका भारत के वैसे व्यवहार को आसानी से पचा पायेगा ? शायद नहीं क्योंकि जब भी अमेरका के साथ ऐसा किया जाता है तो उसे बहुत बुरा लगता है और उसे यह लगता है कि किसी भी देश को उसके साथ ऐसा करने का हक़ नहीं है. आख़िर क्यों अमेरिका इस तरह कि दोहरी नीतियों को मानने में विश्वास करता है. यह सत्य है कि जो बात एक को बुरी लगती है वह दूसरे को भी बुरी ही लगेगी पर केवल तब तक जब तक उसे राजनैतिक चश्मे से न देखा जाये ? अमेरिका दुनिया भर की सबसे अच्छी सेवाओं की बातें करता है पर विरोध करने के बाद भी अपने नक्शे को सुधार नहीं पाता है तो इस बात का क्या अर्थ लगाया जाये कि उसने जानबूझकर ऐसा करवाया है और यह किसी भी स्तर पर मानवीय भूल थी ही नहीं जिसे वह सामान्य त्रुटि बताने की कोशिश कर रहा है. अगर इस तरह की घटनाएँ अमेरिका की तरफ़ से होती रहें तो भारत को भी उचित मंच पर इनका जवाब देने और अमेरिका के साथ इसी तरह का बर्ताव करने के बारे में सोचना चाहिए.

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