मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 28 नवंबर 2011

मनेरगा और मज़दूर

      संप्रग सरकार के पहले कार्यकाल में लायी गयी महत्वकांक्षी मनेरगा योजना अब सिरे से चढ़ती नज़र आ रही है और इसका असर लुधियाना के साईकिल उद्योग पर किस हद तक पड़ रहा है इस बात का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि कुछ साल पहले तक मजदूरों की एक न सुनने वला यह उद्योग आज मजदूरों की कमी के कारण संकट में आ चुका है. जब से मनेरगा के कारण बिहार से मजदूरों का पलायन रुका है तब से पंजाब में उद्योग और कृषि आधारित काम काज बुरी तरह से प्रभावित होने लगे हैं. अभी तक इन्हीं बिहारी प्रवासी मजदूरों के कारण ही इन लोगों को श्रम शक्ति की कभी भी कोई समस्या नहीं रही है पर आज वहां के हालात पूरी तरह से बदले हुए नज़र आ रहे हैं आज इन मजदूरों को लुभाने के लिए साईकिल और मोबाईल का प्रलोभन दिया जा रहा है और साथ ही हर माह बात करने के लिए टॉक टाइम भी दिया जा रहा है. कुछ वर्षों पहले तक जिन मजदूरों को हिकारत भरी नज़रों से देखा जाता था आज वे इन उद्योगों के लिए संकट का कारण बनते जा रहे हैं. देश में इतना बड़ा सामजिक परिवर्तन आज़ादी के बाद से चुप-चाप शायद ही हुआ हो पर इसके लिए कोई ढिंढोरा नहीं पीट रहा है और बिहार के आम आदमी का स्वाभिमान जाग चुका है और पूरे देश में जाकर काम करने वाले बिहारी मजदूरों ने अब बिहार की किस्मत संवारने के लिए कमर कस ली है.
   सवाल यह उठता है कि आख़िर बिहार में ऐसा क्या हुआ जो पूरे देश में नहीं हुआ ? बिहार में स्थानीय स्तर पर सुशासन आने के कारण और योजनाओं को सही ढंग से लागू करने के कारण जो लाभ वास्तव में गरीबों तक पहुंचना चाहिए था वह पहुँचाने में नितीश सरकार ने बहुत बड़ा योगदान किया और इस ज़मीन से जुडी हुई योजना को पूरे मनोयोग से पूरे बिहार में लागू करने काप्रयास किया जिससे इन प्रवासी मजदूरों को घर में ही काम मिलने की आशा जगी और उन्होंने बाहर जाकर काम करने में कम दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी. आज इन्हीं स्थानीय कारणों ने पंजाब में यह स्थिति पैदा कर दी है कि देश के साईकिल उद्योग ने केंद्र सरकार से अपने तंत्र को उन्नत करने और बंद होने से बचाने के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की मांग तक कर दी है जिससे वे कम मानवशक्ति के साथ इन कारखानों को चलने लायक बना सकें वरना प्रतिस्पर्धा के इस युग में लुधियाना का साईकिल उद्योग दम तोड़ सकता है. इस बात की तह में जाकर अब सभी को देश में आधुनिकीकरण के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि आने वाले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने के बाद इन योजनओं से और अधिक लोगों को लाभ मिलने लगेगा फिर इतनी बड़ी श्रम शक्ति को कहाँ से लाया जायेगा ?
   अब इस मामले में राजनीति भी किस तरह से की जा सकती है इस पर भी विचार किया जाना आवश्यक है. कार्य कुशल और प्रभावी सरकार चलाने में असफल रहने के बाद उत्तर प्रदेश में मायावती राज्य के टुकड़े करना चाहती हैं पर यह सत्य है कि अगर नितीश कुमार को पूरा बिहार मिला होता तो वे आज संभवतः बिहार को देश में सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाला राज्य बनाकर ही दम लेते... पर संसाधनों के नाम संपन्न झारखण्ड उनसे अलग हो चुका है फिर भी इच्छा शक्ति के दम पर उन्होंने परिवर्तन करके दिखा दिया है. उत्तर प्रदेश के टुकड़े तो राजनैतिक लाभ हानि में हो सकते हैं पर बिना सुशासन क्या वे छोटे प्रदेश भी तरक्की कर पाने में सफल होंगें इसका उत्तर भी इन नेताओं के पास नहीं है ? उत्तर प्रदेश में मनेरगा में जिस हद तक घोटाले किये गए और गरीब जनता का पैसा लूटा गया उसके बाद भी केंद्र पर यह आरोप लगाना कि वहां से धन नहीं मिल रहा है कैसे सही हो सकता है ? बिहार में भी कांग्रेस की सरकार नहीं है उसे भी उतना ही पैसा मिला रहा है जैसे यू पी को... तो  फिर बिहार में परिवर्तन कैसे दिख रहा है और यू पी में एक साल में १ व्यक्ति को ४०३ दिन का रोज़गार दिया जाने वाला भ्रष्टाचार ? आख़िर क्यों नहीं नेता सच्चाई के साथ यह मान लेते हैं कि उनमे काम करने की क्षमता ही नहीं है  और इसका ठीकरा वे दूसरों पर फोड़कर अपने वोटों के लालच में लपलप करते रहते हैं ?       


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2 टिप्‍पणियां:

  1. यदि लोगों को गाँव में रोजगार मिले तो वे शहर नहीं भागेंगे। पूंजीपति इसीलिए नहीं चाहता कि गाँव में रोजगार मिलें। इस से उसे सस्ता मजदूर मिलना कठिन हो जाता है। इस से औद्योगिक मजदूरों की बारगेनिंग पावर बढ़ती है। यह बड़ा आर्थिक परिवर्तन है। पूंजीवाद खुद अपनी कब्र खोद रहा है। जरूरत है इस समय सभी प्रकार के श्रमजीवियों के जनतांत्रिक संगठनों के खड़े होने और मजबूत होने की। वे ही एक नया विकल्प देश को दे सकते हैं।

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  2. दिनेश राय जी की बात से सहमत हूँ बहुत अच्छा लिखा है आपने आभार ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/.

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