लखनऊ के प्रतिष्ठिति छत्रपति शाहूजी महराज चिकित्सा विश्वविद्यालय ( किंग जार्ज मेडिकल कालेज ) ने मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया (एम सी आई) से मदद की गुहार की है. वैसे इस बार मामला कुछ ऐसा है कि सभी को आश्चर्य ही होने वाला है चिकित्सा विश्विद्यालय में १९९६ से अब तक विभिन्न वर्षों में आरक्षण से प्रवेश पाने वाले ३७ छात्र अभी तक अपनी पढाई पूरी नहीं कर पाए हैं जिसके चलते वहां के प्रशासन को बहुत अजीब स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. कई कई बार इनसे परीक्षा ली जा चुकी है और सारे नियमों में भी जितनी संभव थी ढील देकर भी इन्हें पास करवा पाने में अक्षम कालेज ने अब यह मांग की है कि इन्हें बिना पास किये ही डिग्री दे दी जाये जिससे शायद कालेज का जंजाल ख़त्म हो जायेगा पर जहाँ भी जाकर ये रोगियों का इलाज करने के लिए बैठेंगे तो किस तरह से न्याय कर पायेंगें यह अभी से ही चिंता का विषय है. सवाल यह नहीं है कि इनका क्या किया जाये पर सवाल यह है कि देश में चिकित्सकों की कमी पूरी करने के लिए खोले गए कालेज अगर पूरी संख्या में चिकित्सकों को पढ़ाकर क्षेत्र में नहीं भेज पायेंगें तो दूर दराज़ के क्षेत्रों तक चिकित्सा सुविधाएँ पहुँचाने का सरकारी मंसूबा कैसे पूरा हो पायेगा ?
इस मामले में पहले ही पूरी राजनीति हो चुकी है इन लगातार फेल होते छात्रों ने अपनी तरफ से कालेज को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उनका यह कहना है कि उन्हें दुर्भावना वश ही फेल किया जा रहा है और उन्होंने इस हद तक जाने की सोची कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से भी इसकी शिकायत की जिसके बाद जांच भी आई पर बिना योग्यता के किसी को पास कर देने की बात कोई भी संवैधानिक संस्था कैसे कर सकती है इसलिए उस जांच से भी कुछ हासिल नहीं हो पाया. इन औसत छात्रों के आरोपों पर ध्यान देते हुए कालेज प्रशासन ने पूरी पारदर्शिता बरतते हुए अन्य परीक्षकों की देखरेख में पूरी परीक्षा की वीडियो रेकार्डिंग भी करवाई जससे इन्हें यह न लगे कि उनके साथ जान बूझकर कोई अन्याय किया जा रहा है ? अब जब कालेज के पास करने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहा है तो उसने अपने को बचाने के लिए शीर्ष संस्था से नियमों में ढील देने की मांग की है और पूरा मामला उसके पाले में धकेल दिया है. यह घटना इस बारे में महत्वपूर्ण नहीं है कि इससे आगे क्या हो सकता है पर इस मामले में अधिक महत्वपूर्ण है कि इसका आगे आने वाले समय में देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
जिन लोगों में योग्यता है वे बिना किसी ऐसे सहारे के आगे ही बढ़ते चले जायेंगें पर अयोग्य लोगों को कब तक इस तरह से आम लोगों की छाती पर मूंग दलने के लिए छोड़ा जाता रहेगा ? सरकारें और राजनैतिक दल जिस आरक्षण से पिछड़े वर्गों के लिए लाभ की बातें करती हैं आज उसका कितना ख़राब स्वरुप लोगों के सामने आ रहा है इस बारे में किसी ने कभी सोच ही नहीं है ? इन छात्रों के परिवारों के उन सपनों का क्या होगा जिन्हें चयन के समय देखा गया था ? आरक्षण के इस स्वरुप पर अब फिर से विचार किये जाने की आवश्यकता है अब देश के राजनैतिक तंत्र को केवल आरक्षण की राजनीति के स्थान पर इनको वास्तव में आगे बढ़ने के लिए इनके लिए अलग से स्कूल खोलने का प्रस्ताव करना चाहिए जिसमें केवल गरीबी रेखा से नीचे और सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग वाले विद्यार्थियों के लिए ही व्यवस्था हो और ये अपनी योग्यता से अन्य छात्रों से पूरी तरह से मुकाबला कर सकें. जो काम पटना का सुपर ३० कर सकता है वह इतने संसाधन वाली सरकारें क्यों नहीं कर सकती हैं ? पर क्या देश का राजनैतिक तंत्र इस बड़े बदलाव के लिए तैयार है क्या वह इस तरह की असहज स्थिति का सामना करने वाले विद्यार्थियों को सम्मान से सर उठाकर जीने की राह दिखाने के लिए भी तैयार है ? शायद नहीं क्योंकि आरक्षण से किसी को लाभ हो या न हो पर इन नेताओं को थोड़े समय के लिए कुछ वोट अवश्य मिल जाया करते हैं ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस मामले में पहले ही पूरी राजनीति हो चुकी है इन लगातार फेल होते छात्रों ने अपनी तरफ से कालेज को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उनका यह कहना है कि उन्हें दुर्भावना वश ही फेल किया जा रहा है और उन्होंने इस हद तक जाने की सोची कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से भी इसकी शिकायत की जिसके बाद जांच भी आई पर बिना योग्यता के किसी को पास कर देने की बात कोई भी संवैधानिक संस्था कैसे कर सकती है इसलिए उस जांच से भी कुछ हासिल नहीं हो पाया. इन औसत छात्रों के आरोपों पर ध्यान देते हुए कालेज प्रशासन ने पूरी पारदर्शिता बरतते हुए अन्य परीक्षकों की देखरेख में पूरी परीक्षा की वीडियो रेकार्डिंग भी करवाई जससे इन्हें यह न लगे कि उनके साथ जान बूझकर कोई अन्याय किया जा रहा है ? अब जब कालेज के पास करने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहा है तो उसने अपने को बचाने के लिए शीर्ष संस्था से नियमों में ढील देने की मांग की है और पूरा मामला उसके पाले में धकेल दिया है. यह घटना इस बारे में महत्वपूर्ण नहीं है कि इससे आगे क्या हो सकता है पर इस मामले में अधिक महत्वपूर्ण है कि इसका आगे आने वाले समय में देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
जिन लोगों में योग्यता है वे बिना किसी ऐसे सहारे के आगे ही बढ़ते चले जायेंगें पर अयोग्य लोगों को कब तक इस तरह से आम लोगों की छाती पर मूंग दलने के लिए छोड़ा जाता रहेगा ? सरकारें और राजनैतिक दल जिस आरक्षण से पिछड़े वर्गों के लिए लाभ की बातें करती हैं आज उसका कितना ख़राब स्वरुप लोगों के सामने आ रहा है इस बारे में किसी ने कभी सोच ही नहीं है ? इन छात्रों के परिवारों के उन सपनों का क्या होगा जिन्हें चयन के समय देखा गया था ? आरक्षण के इस स्वरुप पर अब फिर से विचार किये जाने की आवश्यकता है अब देश के राजनैतिक तंत्र को केवल आरक्षण की राजनीति के स्थान पर इनको वास्तव में आगे बढ़ने के लिए इनके लिए अलग से स्कूल खोलने का प्रस्ताव करना चाहिए जिसमें केवल गरीबी रेखा से नीचे और सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग वाले विद्यार्थियों के लिए ही व्यवस्था हो और ये अपनी योग्यता से अन्य छात्रों से पूरी तरह से मुकाबला कर सकें. जो काम पटना का सुपर ३० कर सकता है वह इतने संसाधन वाली सरकारें क्यों नहीं कर सकती हैं ? पर क्या देश का राजनैतिक तंत्र इस बड़े बदलाव के लिए तैयार है क्या वह इस तरह की असहज स्थिति का सामना करने वाले विद्यार्थियों को सम्मान से सर उठाकर जीने की राह दिखाने के लिए भी तैयार है ? शायद नहीं क्योंकि आरक्षण से किसी को लाभ हो या न हो पर इन नेताओं को थोड़े समय के लिए कुछ वोट अवश्य मिल जाया करते हैं ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भारत का भविष्य सुखद हो।
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