एक मज़बूत लोकपाल के लिए जिस तरह से सरकार अन्ना की मांगों पर विचार कर रही है और कुछ संशोधनों के साथ फिर से लोकसभा में पेश करने की जो जुगत चल रही है उस पर सभी की नज़रें लगी हुई हैं. देश भी प्रधानमंत्री के रूस से वापस आने के बाद पेश होने वाले नए मसौदे के बारे में उत्सुकता से जाना चाहता है. अब इस बार लोकपाल विधेयक का जो स्वरुप सामने आ रहा है उस पर अन्ना को भी सहमति दे देनी चाहिए क्योंकि जब तक इस कानून को परखा नहीं जायेगा इसकी कमियों के बारे में सही ढंग से अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है. जिस तरह से कुछ मसलों पर अन्ना ने हठ कर रखा है उससे कोई बात बननी वाली नहीं है और अब जब देश में कानून बनाने की क्षमता केवल संसद के पास है तो किसी भी स्थिति में उसकी अवमानना नहीं करनी चाहिए और जिन विपक्षी दलों ने अन्ना के साथ मज़बूत लोकपाल लाने की बात की है उन्हें भी संसद में बोलने का पूरा समय मिलेगा तब वे इस विधेयक की कमियों के बारे में सरकार को घेर सकते हैं क्योंकि इस बात का अधिकार संसद और देश के कानून ने उन्हें दे रखा है.
आज जब देश इस विधेयक का इंतज़ार कर रहा है तो इस बारे में किसी भी स्थिति में कोई हो हल्ला नहीं होना चाहिए जिससे सरकार को भी पूरा मौका मिले और वह बाद में यह बहाना न बना सके कि उसे काम करने के लिए सही समय नहीं दिया गया या फिर उसके लोकपाल को किस भी स्थिति में स्वीकार ही नहीं किया गया तो वह क्या कर सकती है. अब इस समय में संसद की ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है क्योंकि किसी भी स्थिति में किसी भी कानून के लिए ज़िम्मेदार संसद के लिए ही सारी बातों पर विचार करना बनता है और देश के किसी हिस्से में बैठकर अनशन करने और कुछ भी मांग लेने से मुख्य मुद्दे से ध्यान हटता है. जिस तरह से अन्ना ने सभी राजनैतिक दलों को विमर्श के लिए सार्वजनिक रूप से आमंत्रित किया था और इन दलों ने एक मज़बूत लोकपाल के लिए अन्ना से वायदा किया था तो अब उनके पास इस बात का समय है कि वे केवल संसद के बाहर बातें करने के स्थान पर देश की संसद में सार्थक बहस करें और अगर सरकार की मंशा में कोई खोट है तो उसे देश के सामने लाने का काम करें.
सरकार भी यह जानती है कि एक बार में सब कुछ दे देने से उस पर बहुत अधिक दबाव बनने वाला है इसीलिए वह देश के रुख को भांपते हुए इसके प्रावधानों को कड़ा करती जा रही है पर अब जब इस पर बहस और संशोधनों की पूरी गुंजाईश है तो अब देश के साथ अन्ना को भी संसद के रुख का इंतज़ार करना चाहिए ? देश में बहुत बकवास की जा चुकी है और अब इस मुद्दे को किसी ठोस नतीजे तक पहुँचाना चाहिए क्योंकि केवल दबाव की राजनीति से कुछ बातें मनवाई जा सकती है पर उनसे बहुत कुछ ठोस नहीं हासिल किया जा सकता है. अब इस मसले पर सभी को सही दिशा में सोचने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक पूरी तरह से मतभेद के मुद्दों पर विचार नहीं किया जायेगा और हर पक्ष अपने बात ही करता रहेगा तब तक देश को किसी भी तरह से ठोस लोकपाल नहीं मिल सकेगा. अब सभी को मिलकर बैठना चाहिए और एक मज़बूत लोकपाल के लिए सार्थक बहस करके इसे ठोस परिणिति तक पहुँचाना चाहिए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आज जब देश इस विधेयक का इंतज़ार कर रहा है तो इस बारे में किसी भी स्थिति में कोई हो हल्ला नहीं होना चाहिए जिससे सरकार को भी पूरा मौका मिले और वह बाद में यह बहाना न बना सके कि उसे काम करने के लिए सही समय नहीं दिया गया या फिर उसके लोकपाल को किस भी स्थिति में स्वीकार ही नहीं किया गया तो वह क्या कर सकती है. अब इस समय में संसद की ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है क्योंकि किसी भी स्थिति में किसी भी कानून के लिए ज़िम्मेदार संसद के लिए ही सारी बातों पर विचार करना बनता है और देश के किसी हिस्से में बैठकर अनशन करने और कुछ भी मांग लेने से मुख्य मुद्दे से ध्यान हटता है. जिस तरह से अन्ना ने सभी राजनैतिक दलों को विमर्श के लिए सार्वजनिक रूप से आमंत्रित किया था और इन दलों ने एक मज़बूत लोकपाल के लिए अन्ना से वायदा किया था तो अब उनके पास इस बात का समय है कि वे केवल संसद के बाहर बातें करने के स्थान पर देश की संसद में सार्थक बहस करें और अगर सरकार की मंशा में कोई खोट है तो उसे देश के सामने लाने का काम करें.
सरकार भी यह जानती है कि एक बार में सब कुछ दे देने से उस पर बहुत अधिक दबाव बनने वाला है इसीलिए वह देश के रुख को भांपते हुए इसके प्रावधानों को कड़ा करती जा रही है पर अब जब इस पर बहस और संशोधनों की पूरी गुंजाईश है तो अब देश के साथ अन्ना को भी संसद के रुख का इंतज़ार करना चाहिए ? देश में बहुत बकवास की जा चुकी है और अब इस मुद्दे को किसी ठोस नतीजे तक पहुँचाना चाहिए क्योंकि केवल दबाव की राजनीति से कुछ बातें मनवाई जा सकती है पर उनसे बहुत कुछ ठोस नहीं हासिल किया जा सकता है. अब इस मसले पर सभी को सही दिशा में सोचने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक पूरी तरह से मतभेद के मुद्दों पर विचार नहीं किया जायेगा और हर पक्ष अपने बात ही करता रहेगा तब तक देश को किसी भी तरह से ठोस लोकपाल नहीं मिल सकेगा. अब सभी को मिलकर बैठना चाहिए और एक मज़बूत लोकपाल के लिए सार्थक बहस करके इसे ठोस परिणिति तक पहुँचाना चाहिए.
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