देश में किस तरह से किसी अच्छे काम को ठिकाने लगाया जा सकता है यह हमें नेताओं से सीखना चाहिए क्योंकि इन्होंने शायद यह समझ लिया है कि जब भी ये चाहें तो अपने मन से कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हैं ? नंदन नीलकेणी की अगुवाई में राष्ट्रीय पहचान संख्या या "आधार" कार्यक्रम चलाने पर वित्तीय मामलों की संसदीय समिति ने जिस तरह से बेवजह रोक लगाने की बात की है उससे यही लगता है कि इन नेताओं ने देश की हर समस्या के समाधान के लिए उठाये जाने वाले किसी भी क़दम पर लगाम लगाने की सोच रखी है. आख़िर ऐसा क्या था जिस कारण से इस महत्वकांक्षी परियोजना को केवल नियमों का हवाला देकर बंद करने की तरफ धकेल दिया गया है ? जब ३ वर्षों में जनता के करोड़ों रूपये खर्च करके नागरिकों की सही पहचान करने की एक प्रक्रिया तय की गयी थी तो उसे क्यों रोकने की बातें की जा रही हैं ? इन खर्च किये गए रुपयों को अगर एक घोटाला मान लिया जाये तो इसकी ज़िम्मेदारी आख़िर किस पर डाली जानी चाहिए ? क्या कोई संसदीय समिति इस पैसे के खर्चे को पूरा करने के लिए अपने वेतन से पैसे देना चाहेगी ?
हो सकता है कि सरकार की तरफ़ से कोई कमी हो जिस कारण से आज यह योजना नियमों के अनुसार न चल पा रही हो पर जिस तरह से विदेशियों की घुसपैठ की बातें करने में भाजपा कभी पीछे नहीं रहती तो उसके यशवंत सिन्हा की अगुवाई वाली समिति को यह तो सोचना ही चाहिए था कि इस परियोजना से आख़िर क्या नुकसान होने वाला है ? नि:संदेह यह एक बहुत ही अच्छी परियोजना है और इसे भारत के दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखते हुए आज भी पूरा करने की तरफ़ ले जाना चाहिए न कि इसे अवैध और न जाने क्या क्या बताकर बंद करने की कोशिशें होनी चाहिए. वित्तीय मामलों की इस समिति के मूर्धन्य सदस्यों से यह भी पूछा जाना चाहिए कि अगर यह काम किसी कानून के कारण नियम से बाहर हो रहा था तो अब तक ये सारी समितियां और संसद क्या कर रही थी ? क्या संसद के बिना जाने ही इतना बड़ा काम हो रहा था और छोटी छोटी बातों पर संसद में हल्ला मचाने और कार्यवाही बाधित करने में माहिर हमारे सांसद इस मसले की गंभीरता को भांप ही नहीं पाए ?
अब ऐसा करने से काम नहीं चलने वाला है और संसद में सरकार को इस परियोजना से जुड़े कानून में बदलाव करने के लिए जल्दी ही कुछ करना चाहिए क्योंकि अगर देश के नागरिकों के पास सही पहचान संख्या होगी तो उससे कोई भी व्यक्ति अपनी पहचान बता सकेगा और विदेशियों और देश विरोधी तत्वों कि पहचान आसानी से की जा सकगी. जितना पैसा इस परियोजना पर खर्च हो चुका है अब उसके बारे में सोचते हुए आगे की योजना बनकर इसे पूरा किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि आने वाले समय में यही पूरी पहचान देश की पहचान बन सकती है. कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस मसले पर कुछ राजनैतिक दलों के हित आड़े आने लगे हैं और उन्हें इस बात से पेट में दर्द होने लगा हो कि कोई अन्य दल इतने बड़े काम का श्रेय आख़िर कैसे ले सकता है ? अब इस तरह के कामों में संसदीय समितियों को अपनी टांग अड़ाने के स्थान पर कमियों को दूर करते हुए इसे पूरा करवाने के बारे में सोचना चाहिए. पर देश के बारे में कोई सोचना भी चाहता है इस बात से तो इस पर भी संदेह होने लगता है...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
हो सकता है कि सरकार की तरफ़ से कोई कमी हो जिस कारण से आज यह योजना नियमों के अनुसार न चल पा रही हो पर जिस तरह से विदेशियों की घुसपैठ की बातें करने में भाजपा कभी पीछे नहीं रहती तो उसके यशवंत सिन्हा की अगुवाई वाली समिति को यह तो सोचना ही चाहिए था कि इस परियोजना से आख़िर क्या नुकसान होने वाला है ? नि:संदेह यह एक बहुत ही अच्छी परियोजना है और इसे भारत के दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखते हुए आज भी पूरा करने की तरफ़ ले जाना चाहिए न कि इसे अवैध और न जाने क्या क्या बताकर बंद करने की कोशिशें होनी चाहिए. वित्तीय मामलों की इस समिति के मूर्धन्य सदस्यों से यह भी पूछा जाना चाहिए कि अगर यह काम किसी कानून के कारण नियम से बाहर हो रहा था तो अब तक ये सारी समितियां और संसद क्या कर रही थी ? क्या संसद के बिना जाने ही इतना बड़ा काम हो रहा था और छोटी छोटी बातों पर संसद में हल्ला मचाने और कार्यवाही बाधित करने में माहिर हमारे सांसद इस मसले की गंभीरता को भांप ही नहीं पाए ?
अब ऐसा करने से काम नहीं चलने वाला है और संसद में सरकार को इस परियोजना से जुड़े कानून में बदलाव करने के लिए जल्दी ही कुछ करना चाहिए क्योंकि अगर देश के नागरिकों के पास सही पहचान संख्या होगी तो उससे कोई भी व्यक्ति अपनी पहचान बता सकेगा और विदेशियों और देश विरोधी तत्वों कि पहचान आसानी से की जा सकगी. जितना पैसा इस परियोजना पर खर्च हो चुका है अब उसके बारे में सोचते हुए आगे की योजना बनकर इसे पूरा किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि आने वाले समय में यही पूरी पहचान देश की पहचान बन सकती है. कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस मसले पर कुछ राजनैतिक दलों के हित आड़े आने लगे हैं और उन्हें इस बात से पेट में दर्द होने लगा हो कि कोई अन्य दल इतने बड़े काम का श्रेय आख़िर कैसे ले सकता है ? अब इस तरह के कामों में संसदीय समितियों को अपनी टांग अड़ाने के स्थान पर कमियों को दूर करते हुए इसे पूरा करवाने के बारे में सोचना चाहिए. पर देश के बारे में कोई सोचना भी चाहता है इस बात से तो इस पर भी संदेह होने लगता है...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अच्छा था, कमियां दूर की जा सकती थीं, लेकिन ...
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