पूर्व राष्ट्रपति डॉ0 ए पी जे अब्दुल कलाम ने भविष्य की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए जिस तरह के प्रस्ताव का सुझाव दिया है अगर उस पर अमल किया जा सके तो पूरी दुनिया के ऊर्जा परिदृश्य को बदलने में बहुत बड़ी सहायता मिलने वाली है. चेन्नई के अन्ना विश्वविद्यालय में २० वें लेज़र सिम्पोसियम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि अगर सूरज की रौशनी का एक हिस्सा भी हम सही तरह से इस्तेमाल करना सीख पाए तो ऊर्जा की इस तरह की ज़रूरतों को पूरा करने में सफलता निश्चित तौर पर मिलेगी. इस तरह के अनुसन्धान से आने वाले समय में हमें ऊर्जा की ज़रूरतों के साथ ही सूरज के बारे में और अधिक जानने का अवसर भी मिलने वाला है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि सौर ऊर्जा अक्षय ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है पर अभी तक जिस तरह से हम सौर ऊर्जा को उपयोग में ला रहे हैं वह काफी खर्चीली प्रक्रिया है जिससे इस क्षेत्र में बहुत तेज़ी से अनुसन्धान नहीं हो पा रहे हैं. पर अब समय है कि धरती के सीमित संसाधनों पर विचार करते हुए इस तरह के अन्य कार्यक्रमों के लिए सरकार और शीर्ष वैज्ञानिक संस्थाएं तेज़ी से काम करें.
जिस तरह से अन्तरिक्ष में स्थापित ये सोलर पॉवर प्लांट काम करने वाले हैं उससे इनकी सफलता पर भी संदेह नहीं किया जा सकता हैं क्योंकि धरती के मुकाबले अन्तरिक्ष में २४ घंटे सौर ऊर्जा उपलब्ध रहती है साथ ही वहां पर धरती के मौसम की तरह भी कोई अन्य प्रभाव काम नहीं करता है जिससे ये प्लांट २४ घंटे ऊर्जा उत्पादन में सफल हो सकेंगें. इस तरह के सौर ऊर्जा के पॉवर प्लांट अभी तक अन्तरिक्ष केन्द्रों को ऊर्जा देते रहते हैं और अभी तक इन्होंने सफलता पूर्वक अपना काम किया है जिससे यह बात तो साबित हो ही जाती है कि भविष्य में ऊर्जा ज़रूरतों के लिए अन्तरिक्ष की तरफ देखा जा सकता है. इस पूरे कार्य में सबसे बड़ी चुनौती अन्तरिक्ष में बनायीं गयी बिजली को धरती तक लाने की होने वाली है क्योंकि वहां पर बिजली बनाना मुश्किल नहीं है बल्कि वहां से बिजली को धरती पर लाकर अपने उपयोग में लाने का काम आज भी चुनौती बना हुआ है. इस क्षेत्र में दुनिया भर में काम चल रहा है क्योंकि इस तरह से बनायीं गयी बिजली पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा पायेगी.
इस सम्बन्ध में डॉ कलाम कहते हैं कि इस बिजली को हम धरती तक भेजने के लिए माइक्रोवेव या लेज़र तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं जिससे यह हमें सुगमता से उपलब्ध हो जाये. इस बारे में अब यही अनुसन्धान का विषय होना चाहिए कि किस तरह से माइक्रोवेव या लेज़र तकनीक को इतना उन्नत बनाया जाए कि वह ऊर्जा का बड़े पैमाने पर प्रवाह कर सके और इस ऊर्जा को हम ज़मीन पर इकठ्ठा करके अपने काम में ले सकें. इस आयु में भी डॉ कलाम जिस तरह से मानवता के कल्याण बारे में अपने वैज्ञानिक मस्तिष्क को लगाये हुए हैं वह प्रेरणा के क़ाबिल है क्योंकि आज लोगों में केवल अपने हित के बारे में सोचने के बाद कुछ और करने की इच्छा शक्ति ही नहीं रह जाती है फिर देश के शीर्ष वैज्ञानिक के बाद राष्ट्रपति के पद से रिटायर होकर भी वे आज जिस तरह से लगातार वैज्ञानिक कामों और अनुसंधानों में लगे हुए हैं वह अपने आप में अद्भुत है. आशा की जानी चाहिए कि आने वाले समय में हमारे युवा वैज्ञानिक इस बारे में सोचेंगें और इनकी इस तरह की वैज्ञानिक सोच को मूर्त रूप देने में सफल हो सकेंगें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
जिस तरह से अन्तरिक्ष में स्थापित ये सोलर पॉवर प्लांट काम करने वाले हैं उससे इनकी सफलता पर भी संदेह नहीं किया जा सकता हैं क्योंकि धरती के मुकाबले अन्तरिक्ष में २४ घंटे सौर ऊर्जा उपलब्ध रहती है साथ ही वहां पर धरती के मौसम की तरह भी कोई अन्य प्रभाव काम नहीं करता है जिससे ये प्लांट २४ घंटे ऊर्जा उत्पादन में सफल हो सकेंगें. इस तरह के सौर ऊर्जा के पॉवर प्लांट अभी तक अन्तरिक्ष केन्द्रों को ऊर्जा देते रहते हैं और अभी तक इन्होंने सफलता पूर्वक अपना काम किया है जिससे यह बात तो साबित हो ही जाती है कि भविष्य में ऊर्जा ज़रूरतों के लिए अन्तरिक्ष की तरफ देखा जा सकता है. इस पूरे कार्य में सबसे बड़ी चुनौती अन्तरिक्ष में बनायीं गयी बिजली को धरती तक लाने की होने वाली है क्योंकि वहां पर बिजली बनाना मुश्किल नहीं है बल्कि वहां से बिजली को धरती पर लाकर अपने उपयोग में लाने का काम आज भी चुनौती बना हुआ है. इस क्षेत्र में दुनिया भर में काम चल रहा है क्योंकि इस तरह से बनायीं गयी बिजली पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा पायेगी.
इस सम्बन्ध में डॉ कलाम कहते हैं कि इस बिजली को हम धरती तक भेजने के लिए माइक्रोवेव या लेज़र तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं जिससे यह हमें सुगमता से उपलब्ध हो जाये. इस बारे में अब यही अनुसन्धान का विषय होना चाहिए कि किस तरह से माइक्रोवेव या लेज़र तकनीक को इतना उन्नत बनाया जाए कि वह ऊर्जा का बड़े पैमाने पर प्रवाह कर सके और इस ऊर्जा को हम ज़मीन पर इकठ्ठा करके अपने काम में ले सकें. इस आयु में भी डॉ कलाम जिस तरह से मानवता के कल्याण बारे में अपने वैज्ञानिक मस्तिष्क को लगाये हुए हैं वह प्रेरणा के क़ाबिल है क्योंकि आज लोगों में केवल अपने हित के बारे में सोचने के बाद कुछ और करने की इच्छा शक्ति ही नहीं रह जाती है फिर देश के शीर्ष वैज्ञानिक के बाद राष्ट्रपति के पद से रिटायर होकर भी वे आज जिस तरह से लगातार वैज्ञानिक कामों और अनुसंधानों में लगे हुए हैं वह अपने आप में अद्भुत है. आशा की जानी चाहिए कि आने वाले समय में हमारे युवा वैज्ञानिक इस बारे में सोचेंगें और इनकी इस तरह की वैज्ञानिक सोच को मूर्त रूप देने में सफल हो सकेंगें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
समग्र ब्रह्माण्ड जिस अनन्त ऊर्जा के सहारे गतिमान है। उसी ऊर्जा का दोहन करके धरती पर अक्षय व अनन्त ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जा सकता है। काश कि नए व छोटे अन्वेषकों को कोई सहारा देनेवाला मिलता।
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