आज ८ फरवरी से देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में चुनाव प्रचार के बाद चरण बद्ध तरीके से होने वाले चुनावों का प्रारंभ होने वाला है वह आने वाले समय में देश की दिशा और दशा को बदलने में बहुत सहायक हो सकता है. चुनाव आयोग की भरपूर मेहनत के बाद जिस तरह से इस बार रिकार्ड मतदान की आशा की जा रही है उसमें पूरी रात से बरसते पानी ने कुछ हद तक रोक लगायी है पर दिन खिलने के बाद वोटर कितनी संख्या में मौसम के अनुसार बाहर निकलने वाले हैं यह तो शाम तक पता चलेगा पर इतना तो तय ही है कि अब जनता में इस बारे में जागरूकता आ चुकी है. आज के महासंग्राम में जिस तरह से सभी दलों ने अपनी शक्ति झोंक रखी है उससे यही लगता है कि मुकाबला दिलचस्प होने वाला है. चुनाव में जहाँ बसपा की प्रतिष्ठा दांव पर है और अन्य दल चुनाव प्रचार में लगभग बराबर की चुनौती देते आये हैं उसके बाद यही लगता है कि अब प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार दूर की कौड़ी है. प्रदेश की जनता राजनैतिक तौर पर बहुत परिपक्व है क्योंकि २००७ में जहाँ सभी लोग यह अंदाज़ा लगा रहे थे कि त्रिशंकु विधासभा की स्थिति पनप रही है तो जनता ने सभी अनुमानों को झूठा साबित करते हुए बसपा को पूर्ण बहुमत तक पहुंचा दिया था.
कांग्रेस ने जिस तरह से एक सोची समझी रणनीति के तहत अपने दम पर ही सरकार बनाने की बात शुरू की है उससे यही लगता है कि वह अभी जल्दी में नहीं है और भ्रमित वोटर्स को वह यह सन्देश देना चाहती है कि अगर इस बार भी वे चूक गए तो अगले चुनाव तक कांग्रेस सरकार बनाने का दावा नहीं करेगी. यह एक सोची समझी नीति का ही हिस्सा है क्योंकि जिस तरह से अभी तक पूर्वानुमान लगाये जा रहे हैं उनके अनुसार कोई भी दल स्पष्ट बहुतमत पाने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में कोई भी दल स्थायी सरकार दे पाने की स्थिति में नहीं होगा और इस स्थिति का लाभ उठाकर कुछ नेता लोग फिर से प्रदेश में अस्थिरता का लाभ उठाकर अपने हितों को साधने का काम कर सकते हैं. जिस तरह से बसपा सरकार के ख़िलाफ़ वोट देने के लिए आम लोग मन बनाये बैठे हैं वह मतदान के प्रतिशत से ही पता चल जाने वाला है. पहले चरण में बारिश के कारण कम मत भी पड़ सकते हैं इसका सीधा लाभ बसपा को मिलने वाला है क्योंकि उसके समर्पित वोटर किसी भी स्थिति में वोट देने की भावना रखते हैं जो कि अन्य दलों की संभावनाओं पर विराम लगाकर कुछ हद तक समीकरणों में उलट फेर कर सकते हैं.
देश के विकास के लिए अब यूपी का विकास आवश्यक है जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में यूपी भी विकास की रफ़्तार को पकड़ने में लगा हुआ है उसके बाद अब आने वाले समय में पूरे देश में महत्वपूर्ण योगदान देने के किये अब जनता को प्रदेश को तैयार करना ही होगा पर दुर्भाग्य से अभी तक हम बिहार से कुछ भी नहीं सीख पाए हैं जिसने जाति आधारित राजनीति से बहुत पहले ही पीछा छुड़ा लिया है और अब वह तेज़ी से आगे बढ़ने वाला प्रदेश बन चुका है. यूपी को जो भी चाहिए वह क्या हमारे नेता दे पाने में सफल हो रहे हैं ? शायद नहीं क्योंकि अभी भी इन लोगों को लगता है कि प्रदेश में जातिवाद को हवा देकर बहुत सारे काम करवाए जा सकते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि जातिवाद के आगे विकास के मुद्दे छोटे पड़ जाया करते हैं और आने वाले समय में प्रदेश इससे बाहर निकलना चाहता है या नहीं इसकी झलक इसी चुनाव में दिखाई देने वाली है. एक महीने तक चलने वाले इस महासंग्राम या लोकतंत्र के महान पर्व में क्या निकल कर सामने आने वाला है यह तो समय ही बता पायेगा पर इस बार भी अगर यूपी ने अपनी सोच नहीं बदली तो आने वाले समय में उसे उपेक्षा ही मिलने वाली है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कांग्रेस ने जिस तरह से एक सोची समझी रणनीति के तहत अपने दम पर ही सरकार बनाने की बात शुरू की है उससे यही लगता है कि वह अभी जल्दी में नहीं है और भ्रमित वोटर्स को वह यह सन्देश देना चाहती है कि अगर इस बार भी वे चूक गए तो अगले चुनाव तक कांग्रेस सरकार बनाने का दावा नहीं करेगी. यह एक सोची समझी नीति का ही हिस्सा है क्योंकि जिस तरह से अभी तक पूर्वानुमान लगाये जा रहे हैं उनके अनुसार कोई भी दल स्पष्ट बहुतमत पाने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में कोई भी दल स्थायी सरकार दे पाने की स्थिति में नहीं होगा और इस स्थिति का लाभ उठाकर कुछ नेता लोग फिर से प्रदेश में अस्थिरता का लाभ उठाकर अपने हितों को साधने का काम कर सकते हैं. जिस तरह से बसपा सरकार के ख़िलाफ़ वोट देने के लिए आम लोग मन बनाये बैठे हैं वह मतदान के प्रतिशत से ही पता चल जाने वाला है. पहले चरण में बारिश के कारण कम मत भी पड़ सकते हैं इसका सीधा लाभ बसपा को मिलने वाला है क्योंकि उसके समर्पित वोटर किसी भी स्थिति में वोट देने की भावना रखते हैं जो कि अन्य दलों की संभावनाओं पर विराम लगाकर कुछ हद तक समीकरणों में उलट फेर कर सकते हैं.
देश के विकास के लिए अब यूपी का विकास आवश्यक है जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में यूपी भी विकास की रफ़्तार को पकड़ने में लगा हुआ है उसके बाद अब आने वाले समय में पूरे देश में महत्वपूर्ण योगदान देने के किये अब जनता को प्रदेश को तैयार करना ही होगा पर दुर्भाग्य से अभी तक हम बिहार से कुछ भी नहीं सीख पाए हैं जिसने जाति आधारित राजनीति से बहुत पहले ही पीछा छुड़ा लिया है और अब वह तेज़ी से आगे बढ़ने वाला प्रदेश बन चुका है. यूपी को जो भी चाहिए वह क्या हमारे नेता दे पाने में सफल हो रहे हैं ? शायद नहीं क्योंकि अभी भी इन लोगों को लगता है कि प्रदेश में जातिवाद को हवा देकर बहुत सारे काम करवाए जा सकते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि जातिवाद के आगे विकास के मुद्दे छोटे पड़ जाया करते हैं और आने वाले समय में प्रदेश इससे बाहर निकलना चाहता है या नहीं इसकी झलक इसी चुनाव में दिखाई देने वाली है. एक महीने तक चलने वाले इस महासंग्राम या लोकतंत्र के महान पर्व में क्या निकल कर सामने आने वाला है यह तो समय ही बता पायेगा पर इस बार भी अगर यूपी ने अपनी सोच नहीं बदली तो आने वाले समय में उसे उपेक्षा ही मिलने वाली है.
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