क्या इस तरह की स्थिति में मतदाता के पास कोई विकल्प रह जाता है कि वह अपने मन का काम कर सके या फिर उस जानबूझकर इस स्थिति को पैदा करने वाले या वास्तव में अनभिज्ञ पीठासीन अधिकारी को अपने मनमानी करने दे ? क्या ऐसी किसी भी स्थिति की शिकायत मौके पर करने की कोई कोई व्यवस्था है ? और है तो मतदाता को इस स्थिति के बारे में कोई कागज़ी सबूत मिल सकता है या नहीं ? मुझे नहीं पता कि मेरे वोट का क्या हुआ क्योंकि जिस तरह से पीठासीन अधिकारी मेरी इस मांग से विचलित थे तो मुझे नहीं लगता कि उन्होंने मेरे वोट को मतदान से मना करने वाली श्रेणी में रखा होगा ? जब मैंने मतदान रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर दिए मेरी ऊँगली पर इंक लगायी जा चुकी तो फिर क्या मैं मतदान करने से मना नहीं कर सकता हूँ ? चुनाव आयोग इस बारे में स्पष्ट हैं कि इस स्थिति में मतदाता से रजिस्टर पर यह लिखवा लिया जाना चाहिए कि वह किसी को भी वोट नहीं देना चाहता है पर चुनाव का सञ्चालन करने वाले इन अधिकारियों को इस बात का पता नहीं होता है ? क्या मेरा वोट वास्तव में नहीं पड़ा या फिर मेरे वोट को संख्या पूरी करने के लिए किसी और से मशीन का बटन दबवा कर डलवा दिया गया ? मुझे इस बात का कतई अंदाज़ा नहीं था कि वहां पर ऐसा भी कुछ हो सकता है वर्ना मैं इस बारे में और अधिक तैयारी के साथ जाता और किसी भी स्थिति में अड़कर ४९ ओ का प्रयोग करके ही मानता पर मैं जानबूझकर अपना मोबाइल भी घर पर ही छोड़ गया था क्योंकि मतदान केंद्र पर मुझे उसकी कोई आवश्यकता नहीं पड़ने वाली थी ? मेरे मत देने या न देने के अधिकार का हनन हुआ है अगर मेरा वोट ४९ ओ के तहत लिख लिया गया तो ठीक है वर्ना क्या मुझे अपने अधिकार से वंचित करने वाले अधिकारी के कृत्य को देखते हुए क्या निर्वाचन आयोग इस केंद्र पर पुनर्मतदान के आदेश जारी करेगा ? शायद नहीं क्योंकि उसके लिए एक बार चुनाव कराना ही कठिन काम होता है और केवल बड़ी गड़बड़ी के कारण ही आज तक पुनर्मतदान की बात की जाती है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अंधेर नगरी में दीवार पर अपना सर पटकने जैसी बात है, शुक्ला साहब ! कुछ नहीं हो सकता !
जवाब देंहटाएंनिज आसन पाने हेतु चर सृष्टि से
फिर कुछ गिद्ध, वृक आह्वान करेंगे,
फिर कुछ भेड़ों के झुण्ड बागदान करेंगे,
यथार्थ से मूँद आँखे,मुद्दा धर्म,जातपात!
अंतत: परिणाम वही, 'ढाक के तीन पात' !!
जहां तक पीठासीन अधिकारियों का सवाल है, एक टिपण्णी मैंने हाल ही में "बेचैन आत्मा " ब्लॉग के श्रे देवेन्द्र पाण्डेय जे की पोस्ट पर की थी और मैं उस पर कायम हूँ !
विचारणीय प्रश्न है कि जनतंत्र की ज़िम्मेदारी उन कन्धों पर है जिन्हें न तंत्र की जानकारी है और न जनभावनाओं का सम्मान!
जवाब देंहटाएंये तो झंझट है, मशीन में ही प्रोविजन होना चाहिये.
जवाब देंहटाएं49-O. Elector deciding not to vote.-If an elector, after his electoral roll number has been duly entered in the register of voters in Form-17A and has put his signature or thumb impression thereon as required under sub-rule (1) of rule 49L, decided not to record his vote, a remark to this effect shall be made against the said entry in Form 17A by the presiding officer and the signature or thumb impression of the elector shall be obtained against such remark.[1]
जवाब देंहटाएंभ्रष्ट तंत्र कभी नहीं चाहेगा कि कुछ भी सही हो पर हमें प्रयास तो करने ही हैं तो मेरी आहुति शुरू अब बाक़ी के सोचें कि क्या करना है ?
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