यू पी में जिस तरह से एनएचआरएम घोटाले में रोज़ ही नए तथ्य सामने आ रहे हैं उससे यही लगता है केंद्र से मिले इस पैसे की बंदरबांट करने में राज्य सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. जिस तरह से इसमें कई महत्वपूर्ण सुराग सामने आ रहे हैं उससे यही लगता है कि आने वाले समय में कई बड़ों की गर्दनें भी इसमें फंसने वाली हैं ? इस घोटाले की व्यापकता का अंदाज़ा तो तभी हो गया था जब माया ने कई मंत्रियों को इस मुद्दे पर एक साथ मंत्रिमंडल से हटा दिया था. एक तरफ जहाँ राज्य सरकार पूरे ५ वर्षों तक निरंतर केंद्र से पैसे न मिलने का रोना रोती रही वहीं दूसरी तरफ उसने अन्य मदों में राज्य को हक़ के तौर पर मिले धन को उचित ढंग से खर्च किये जाने के लिए कोई ठीक व्यवस्था की ही नहीं जिससे आज इस घोटाले का इतना बड़ा स्वरुप सामने आ रहा है. जो भी धन मिला उसको खर्च करने में तो व्यापक स्तर पर अनियमितताएं की ही गयी साथ ही संविदा पर रखे जाने वाले चिकित्सकों को नियुक्ति देने में भी अरबों का घोटाला किया गया. प्रदेश में कोई भी चिकित्सक ऐसा नहीं था जिसको पूरे १२ महीनों का वेतन दिया गया हो ? इसमें चुने जाने का आधार ही यही हुआ करता था कि पहले एक महीने का वेतन भेंट चढाओ और बाद में नियुक्ति पत्र ले जाओ ?
अगर केवल इस मद में मिले हुए धन का सही तरीके से इस्तेमाल किया गया होता तो पूरे प्रदेश में दूर दराज़ के क्षेत्रों में रहने वालों को सही चिकित्सा सुविधाएँ समय से मिल जाती और उनके कष्टों को इस योजना के साथ काफी हद तक कम किया जा सकता. पर राज्य सरकार को केंद्र की किसी भी परियोजना से जिस तरह की एक चिढ़ सी थी उसे देखते हुए उसने शायद यह भी मुनासिब नहीं समझा कि जो पैसा आ रहा है कम से कम उसे तो सही ढंग से सही जगहों पर खर्च किया जा सके. सबसे अचरज की बात यह भी है कि आख़िर वे कौन से कारण हैं जिनके कारण अभी तक राज्य सरकार ने इस पूरे मसले की जानकारी होते हुए भी इसे पूरी गंभीरता से नहीं लिया और जो लोग अनियमितता करने में लगे हुए थे इन्हें इस भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से पर्दा डालने का काम करने का अवसर दिया. अगर राज्य सरकार की मंशा ठीक थी तो उसने समय रहते इस मसले की गहन जांच क्यों नहीं करवाई ? यह भी कहा जा सकता है कि इस बारे में राज्य सरकार को देर से पता चला पर जब पता चला तो भी जांच करवाने में इतनी हीला हवाली क्यों की गयी ? आख़िर जो काम अब किया जा रहा है अगर समय रहते कर लिया जाता तो इतना समय नहीं लगता और जिन लोगों को सबूत मिटाने का अवसर मिल गया वे भी आज इसके जुर्म में फंसे होते.
किसी भी मसले पर किस तरह की जांच और किस तरह से करवानी है इस बात का अधिकार संविधान ने राज्य को दे रखा है पर उसी संविधान ने राज्य सरकार को इस कर्त्तव्य में भी बाँधा है कि वह जनता के पैसे का सही तरीके से उपयोग करे और किसी भी तरह की अनियमितता होने पर दोषियों को सजा भी दिलवाए ? पर जब अपने खास लोग नापने लगते हैं तो आदर्श जैसे कहीं किसी दूर घाटी में जा छिपते क्योंकि जब अपने खास लोगों पर छींटे पड़ती हैं तो उसके कुछ धब्बे अपने दामन तक तो आ ही जाते हैं ? ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार इतनी अनजान थी कि उसे कुछ पता ही नहीं चला उसे सब कुछ पता था फिर भी दागी अधिकारी अपने पदों पर बने रहे और गरीब जनता पिसती रही ? अगर इस योजना का पैसा सही तरीक से खर्च किया गया होता तो किसी भी तरह से शायद बसपा के मतदाताओं को ही अच्छी चिकित्सा सुविधाएँ मिली होतीं क्योंकि उनके वोट जिस आज तक वंचित रहे तबके से आते हैं उन्हें ही इस तरह की योजनाओं की सबसे ज्यादा आवश्यकता थी ? पर जब किसी मसले पर भले ही दलितों का भला हो रहा हो परन्तु उसमें बसपा का नाम अवश्य होना चाहिए यह भावना और नीति इतने बड़े घोटाले की जनक बनी क्योंकि अधिकारी भी जान गए कि इस परियोजना को जांचना और परखना राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में है ही नहीं ? अब जिस तरह से इस मसले में परतें खुल रही हैं तो हो सकता है कि आने वाले समय में प्रदेश के अस्पतालों में चुनिन्दा चिकित्सक ही बचेंगें ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अगर केवल इस मद में मिले हुए धन का सही तरीके से इस्तेमाल किया गया होता तो पूरे प्रदेश में दूर दराज़ के क्षेत्रों में रहने वालों को सही चिकित्सा सुविधाएँ समय से मिल जाती और उनके कष्टों को इस योजना के साथ काफी हद तक कम किया जा सकता. पर राज्य सरकार को केंद्र की किसी भी परियोजना से जिस तरह की एक चिढ़ सी थी उसे देखते हुए उसने शायद यह भी मुनासिब नहीं समझा कि जो पैसा आ रहा है कम से कम उसे तो सही ढंग से सही जगहों पर खर्च किया जा सके. सबसे अचरज की बात यह भी है कि आख़िर वे कौन से कारण हैं जिनके कारण अभी तक राज्य सरकार ने इस पूरे मसले की जानकारी होते हुए भी इसे पूरी गंभीरता से नहीं लिया और जो लोग अनियमितता करने में लगे हुए थे इन्हें इस भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से पर्दा डालने का काम करने का अवसर दिया. अगर राज्य सरकार की मंशा ठीक थी तो उसने समय रहते इस मसले की गहन जांच क्यों नहीं करवाई ? यह भी कहा जा सकता है कि इस बारे में राज्य सरकार को देर से पता चला पर जब पता चला तो भी जांच करवाने में इतनी हीला हवाली क्यों की गयी ? आख़िर जो काम अब किया जा रहा है अगर समय रहते कर लिया जाता तो इतना समय नहीं लगता और जिन लोगों को सबूत मिटाने का अवसर मिल गया वे भी आज इसके जुर्म में फंसे होते.
किसी भी मसले पर किस तरह की जांच और किस तरह से करवानी है इस बात का अधिकार संविधान ने राज्य को दे रखा है पर उसी संविधान ने राज्य सरकार को इस कर्त्तव्य में भी बाँधा है कि वह जनता के पैसे का सही तरीके से उपयोग करे और किसी भी तरह की अनियमितता होने पर दोषियों को सजा भी दिलवाए ? पर जब अपने खास लोग नापने लगते हैं तो आदर्श जैसे कहीं किसी दूर घाटी में जा छिपते क्योंकि जब अपने खास लोगों पर छींटे पड़ती हैं तो उसके कुछ धब्बे अपने दामन तक तो आ ही जाते हैं ? ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार इतनी अनजान थी कि उसे कुछ पता ही नहीं चला उसे सब कुछ पता था फिर भी दागी अधिकारी अपने पदों पर बने रहे और गरीब जनता पिसती रही ? अगर इस योजना का पैसा सही तरीक से खर्च किया गया होता तो किसी भी तरह से शायद बसपा के मतदाताओं को ही अच्छी चिकित्सा सुविधाएँ मिली होतीं क्योंकि उनके वोट जिस आज तक वंचित रहे तबके से आते हैं उन्हें ही इस तरह की योजनाओं की सबसे ज्यादा आवश्यकता थी ? पर जब किसी मसले पर भले ही दलितों का भला हो रहा हो परन्तु उसमें बसपा का नाम अवश्य होना चाहिए यह भावना और नीति इतने बड़े घोटाले की जनक बनी क्योंकि अधिकारी भी जान गए कि इस परियोजना को जांचना और परखना राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में है ही नहीं ? अब जिस तरह से इस मसले में परतें खुल रही हैं तो हो सकता है कि आने वाले समय में प्रदेश के अस्पतालों में चुनिन्दा चिकित्सक ही बचेंगें ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
baaki sab jagah bahut achchha ho gaya hoga unke baare me likhe. fir bhi log videsh jaa rahe hain ilaaj ke liye..
जवाब देंहटाएंइस घोटाले में चिदम्बरम के बेटे ने भी माल चाटा है ये आपने कही नहीं लिखा
जवाब देंहटाएं