काफी मंथन के बाद तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित आयोग द्वारा भी कुडनकुलम परमाणु संयंत्र से जुड़ी सभी शंकाओं के बारे में कहा है कि यह पूरी तरह से सुरक्षित है. आयोग के सदस्य और परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष एम आर श्रीनिवासन ने इस बात को स्पष्ट किया है कि स्थानीय लोगों द्वारा जिन ४४ प्रश्नों पर केंद्रीय समिति से जवाब मांगे गए थे वे पूरी तरह से संतोषजनक हैं और इस संयंत्र में हर तरह की सुरक्षा के बारे में पूरी तरह से व्यवस्था की गयी है. अब जब यह संयंत्र सुरक्षित घोषित हो चुका है तो इसको पूरी क्षमता से चलने का बारे में शीघ्र ही चलाया जाना चाहिए. इस पूरे मामले में जितनी अधिक राजनीति हो चुकी है उसकी कोई आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि आज के समय में कोई भी देश अपने नागरिकों की ज़िंदगियों को इस तरह्ह के किसी ख़तरे में डालकर कोई काम नहीं करना चाहता है. इस मामले में जब से मनमोहन सिंह का हस्तक्षेप हुआ और उन्होंने ख़ुद इस बात का इशारा किया कि इस संयंत्र का विरोध कुछ विदेशी तत्व अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं तब से स्थानीय लोगों का इन संगठनों के प्रति रुख कुछ हद तक बदला फिर भी उन्हें यही लगता रहा कि अभी भी उनसे सुरक्षा सम्बन्धी कुछ बातें छिपाई जा रही हैं ? पर अब राज्य सरकार द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट के बाद सब कुछ जल्दी ही सामान्य हो सकता है.
देश में जिस स्तर पर ऊर्जा की आवश्यकता है अभी हम उस स्तर पर उसे पूरा नहीं कर पा रहे हैं जिससे आने वाले समय में हमारी आर्थिक विकास की गति पर भी असर आने की सम्भावना है इसी बात को ध्यान में रखते हुए मनमोहन सरकार ने दीर्घकालिक नीतियों के तहत परमाणु ऊर्जा को एक विकल्प के रूप में विकसित करने का व्यापक कार्यक्रम चलाया है. इस संयंत्र में अमेरिका को चुभने वाली केवल एक ही बात थी कि यह रूस के सहयोग से लगाया जा रहा है जबकि अमेरिका अपने और अपनी कम्पनियों के हितों को देखते हुए यही चाहता है कि आने वाले समय में भारत में इस क्षेत्र में जो कुछ भी हो वह उसके माध्यम से ही हो ? रूस में पुतिन के दोबारा राष्ट्रपति बन्ने के बाद हो सकता है कि भारत को वहां से इस क्षेत्र में काफी कुछ और मिल सके क्योंकि उनका भारत के प्रति रुझान हमेशा से ही रहा है. अब वह समय नहीं रह गया है जब कोई विक्रेता अपनी हर शर्त को मनवा कर अपना काम कर सके अब व्यापक प्रतिस्पर्धा का युग है तो ऐसे में अगर भारत अपने हितों की रक्षा करने के लिए कुछ करना चाहता है तो फिर किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए. वैसे भी भारत में परमाणु ऊर्जा के बारे में जो भी काम हो रहा है उसमें सुरक्षा के विश्व स्तरीय मानकों का हमेशा से ही प्रयोग किया जा रहा है.
अब जब इस संयंत्र को केंद्र के साथ राज्य सरकार द्वारा गठित समिति ने भी हरी झंडी दे दी है तो इसका विरोध करने वाली किसी भी व्यक्ति या समूह से कड़ाई से निपटने का समय आ गया है देश की जो भी मूलभूत आवश्यकताएं हैं उनके बारे में इस तरह की राजनीति करने वालों को अब यह समझ जाना चाहिए कि वे इस तरह से स्थानीय लोगों को डराकर अपने काम को अब नहीं निकाल पायेंगें. इस मामले में कुछ चूक सरकारी काम करने की शैली के कारण भी हुई है क्योंकि जब कुछ लोग इस तरह की बातें करने में लगे हुए थे तब राज्य या केंद्र का ख़ुफ़िया तंत्र क्या कर रहा था ? किसी भी विरोध को इतने बड़े पैमाने पर अचानक ही नहीं चलाया जा सकता है इसके लिए कुछ तैयारियां तो करनी ही होती हैं. इस तरह के किसी भी बड़े और महत्वपूर्ण काम को करने से पहले के लिए अब नए सिरे से नीतियों का निर्धारण करना ही होगा जिससे इनके परिचालन को शुरू करने में इस तरह से अनावश्यक विवाद न होने पायें. जगह के चयन के साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आने वाले समय में किस तरह से क्या करना है इसके बारे में स्थानीय लोगों को जागरूक किया जाये और उनके लिए एक आवश्यक सुविधाओं के बारे में सोचा जाये और किसी भी तरह के विस्थापन से पहले उनके लिए आवास और अन्य बातों के लिए पूर्ण रूप से सोचा जाये.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देश में जिस स्तर पर ऊर्जा की आवश्यकता है अभी हम उस स्तर पर उसे पूरा नहीं कर पा रहे हैं जिससे आने वाले समय में हमारी आर्थिक विकास की गति पर भी असर आने की सम्भावना है इसी बात को ध्यान में रखते हुए मनमोहन सरकार ने दीर्घकालिक नीतियों के तहत परमाणु ऊर्जा को एक विकल्प के रूप में विकसित करने का व्यापक कार्यक्रम चलाया है. इस संयंत्र में अमेरिका को चुभने वाली केवल एक ही बात थी कि यह रूस के सहयोग से लगाया जा रहा है जबकि अमेरिका अपने और अपनी कम्पनियों के हितों को देखते हुए यही चाहता है कि आने वाले समय में भारत में इस क्षेत्र में जो कुछ भी हो वह उसके माध्यम से ही हो ? रूस में पुतिन के दोबारा राष्ट्रपति बन्ने के बाद हो सकता है कि भारत को वहां से इस क्षेत्र में काफी कुछ और मिल सके क्योंकि उनका भारत के प्रति रुझान हमेशा से ही रहा है. अब वह समय नहीं रह गया है जब कोई विक्रेता अपनी हर शर्त को मनवा कर अपना काम कर सके अब व्यापक प्रतिस्पर्धा का युग है तो ऐसे में अगर भारत अपने हितों की रक्षा करने के लिए कुछ करना चाहता है तो फिर किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए. वैसे भी भारत में परमाणु ऊर्जा के बारे में जो भी काम हो रहा है उसमें सुरक्षा के विश्व स्तरीय मानकों का हमेशा से ही प्रयोग किया जा रहा है.
अब जब इस संयंत्र को केंद्र के साथ राज्य सरकार द्वारा गठित समिति ने भी हरी झंडी दे दी है तो इसका विरोध करने वाली किसी भी व्यक्ति या समूह से कड़ाई से निपटने का समय आ गया है देश की जो भी मूलभूत आवश्यकताएं हैं उनके बारे में इस तरह की राजनीति करने वालों को अब यह समझ जाना चाहिए कि वे इस तरह से स्थानीय लोगों को डराकर अपने काम को अब नहीं निकाल पायेंगें. इस मामले में कुछ चूक सरकारी काम करने की शैली के कारण भी हुई है क्योंकि जब कुछ लोग इस तरह की बातें करने में लगे हुए थे तब राज्य या केंद्र का ख़ुफ़िया तंत्र क्या कर रहा था ? किसी भी विरोध को इतने बड़े पैमाने पर अचानक ही नहीं चलाया जा सकता है इसके लिए कुछ तैयारियां तो करनी ही होती हैं. इस तरह के किसी भी बड़े और महत्वपूर्ण काम को करने से पहले के लिए अब नए सिरे से नीतियों का निर्धारण करना ही होगा जिससे इनके परिचालन को शुरू करने में इस तरह से अनावश्यक विवाद न होने पायें. जगह के चयन के साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आने वाले समय में किस तरह से क्या करना है इसके बारे में स्थानीय लोगों को जागरूक किया जाये और उनके लिए एक आवश्यक सुविधाओं के बारे में सोचा जाये और किसी भी तरह के विस्थापन से पहले उनके लिए आवास और अन्य बातों के लिए पूर्ण रूप से सोचा जाये.
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