आख़िर सपा ने अपने पुराने क्षत्रपों को आराम करवाते हुए चुनाव में सफल हुए अपने युवा चेहरे अखिलेश को यूपी की बागडोर सौंपने का फैसला कर ही लिया जो कि पार्टी और प्रदेश के लिए अच्छा ही है क्योंकि इस बार जिस उम्मीद से प्रदेश की जनता ने सपा को जिताया है उस पर केवल अखिलेश ही काम कर सकते हैं. बहुत दिनों के बाद प्रदेश की सत्ता सँभालने वाले नेता के पास केवल जनता से किये गए वायदे को निभाने का अवसर है और उसे काम करने के लिए एक समतल मैदान मिल रहा है जहाँ पर उसे केवल अपनी सोच के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है. समाजवाद के जिस स्वरुप को अखिलेश ने आगे किया है आज देश को इसके बहुत आवश्यकता है क्योंकि पूर्वाग्रह से किये जाने वाले किसी भी काम मेंं सफलता हमेशा ही संदिग्ध रहा करती है ? कुछ सनसनी फैला कर कुछ समय तक सत्ता तो मिल सकती है पर उसे स्थायी रूप से सँभालने के लिए बहुत मेहनत करने की आवश्यकता होती है एक छत्र राज करने के स्थान पर अगर सामूहिक नेतृत्व को जगह दी जाये तो सभी की स्वीकार्यता बढ़ती जाती है. समाजवाद की बात करते समय भी आज की स्थितियों में नीतियों में बदलाव करके प्रदेश को बिहार की तरह विकास के राजमार्ग पर बढ़ाया जा सकता है. अच्छी योजनाओं को पुरानी नीतियों का हवाला देकर बिना किसी पूर्वाग्रह के ही अपना लेने में ही विकास के मार्ग खुलते हैं.
प्रदेश ने जिस तरह से सपा को स्पष्ट बहुमत दिया है उसके बाद पार्टी और मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी इस लिए भी बहुत बढ़ जाती है कि जनता नहीं चाहती कि प्रदेश के ४ हिस्से किये जाएँ ? केवल बुंदेलखंड में सपा का प्रदर्शन बाक़ी के हिस्सों जैसा नहीं रहा है इसके लिए अब सरकार को मंथन करने की आवश्यकता होगी. राजनैतिक हितों को अगर धरातल की हकीकत से नहीं देखा जायेगा तो जनता की समस्याएं कभी भी कम नहीं हो पाएगीं और इस स्थिति में जनता केवल एक के बाद एक दल को आजमाती रहेगी और उसकी समस्याएं वहीं पर रुकी रहेंगीं. हर ५ वर्षों पर सत्ता के परिवर्तन से क्या जनता की स्थिति में वास्तव में कोई परिवर्तन होता है इस बात का जवाब आज किसी के पास नहीं है क्योंकि सत्ता खोने वाले इस बात की आशा रखने लगते हैं कि चलो कोई बात नहीं अगले ५ वर्ष बाद फिर से जनता हमें ही तो चुनेगी ? यह ऐसी स्थिति है जिससे निकलने की आवश्यकता है क्योंकि अब दूसरे की नाकामी के दम पर सत्ता पाने के कुचक्र से प्रदेश को निकालने की आवश्यकता है. यूपी में विकास की असीमित संभावनाएं है जिसके लिए यहाँ से सबसे पहले देश को यह सन्देश भेजने की आवश्यकता है कि अब यहाँ पर कानून का राज है और सरकार प्रशासन में सुधार कर चुकी है सामान्य प्रशासनिक कार्यों में अनावश्यक राजनैतिक हस्तक्षेप बंद हो चुका है.
जिस लोगों को अभी तक सपा से परेशानी होती थी अब उन्हें भी अगर सुशासन दिखाई देने लगा तो देश भर से उद्योग धंधे यहाँ पर आना शुरू कर सकते हैं. प्रदेश में बिजली पानी और सड़क पर अभियान चलाकर सुधार करने की आवश्यकता है. राजनैतिक विरोध अपनी जगह पर होते हैं पर केंद्र में बैठी वर्तमान सरकार से केंद्रीय योजनाओं से हक के रूप में मिलने वाली धनराशि के सदुपयोग पर प्रदेश सरकार को पूरा ध्यान देना होगा. जो भी केंद्रीय योजनायें चल रही हैं उनको पूरी तरह से लागू करने से संसाधनों का टोटा काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है. मनेरगा में मची हुई लूट को ख़त्म करने से ही गाँवों कि दशा सुधारने में बहुत सहायता मिल सकती है. माया सरकार की तरह से शिकायतें बंद करके प्रदेश के हक़ को लेकर पूरी मांग रखनी चाहिए और जो धनराशि मिले उसको सुपात्रों तक पहुँचाने की कोशिश ही सब कुछ ठीक कर सकती है. अब सारा कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार सँभालने के बाद अखिलेश अपनी उस छवि को बनाये रख पाते हैं जो उन्होंने डीपी यादव को टिकट देने से इनकार करने के समय बनायीं थी या वे फिर से केवल सरकार बन जाने और पद पा जाने के साथ ही केवल लखनऊ को यूपी समझने की वही ग़लती करते हैं जो माया ने की थी और उसका खामियाज़ा उन्हें भुगतना पड़ा है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
प्रदेश ने जिस तरह से सपा को स्पष्ट बहुमत दिया है उसके बाद पार्टी और मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी इस लिए भी बहुत बढ़ जाती है कि जनता नहीं चाहती कि प्रदेश के ४ हिस्से किये जाएँ ? केवल बुंदेलखंड में सपा का प्रदर्शन बाक़ी के हिस्सों जैसा नहीं रहा है इसके लिए अब सरकार को मंथन करने की आवश्यकता होगी. राजनैतिक हितों को अगर धरातल की हकीकत से नहीं देखा जायेगा तो जनता की समस्याएं कभी भी कम नहीं हो पाएगीं और इस स्थिति में जनता केवल एक के बाद एक दल को आजमाती रहेगी और उसकी समस्याएं वहीं पर रुकी रहेंगीं. हर ५ वर्षों पर सत्ता के परिवर्तन से क्या जनता की स्थिति में वास्तव में कोई परिवर्तन होता है इस बात का जवाब आज किसी के पास नहीं है क्योंकि सत्ता खोने वाले इस बात की आशा रखने लगते हैं कि चलो कोई बात नहीं अगले ५ वर्ष बाद फिर से जनता हमें ही तो चुनेगी ? यह ऐसी स्थिति है जिससे निकलने की आवश्यकता है क्योंकि अब दूसरे की नाकामी के दम पर सत्ता पाने के कुचक्र से प्रदेश को निकालने की आवश्यकता है. यूपी में विकास की असीमित संभावनाएं है जिसके लिए यहाँ से सबसे पहले देश को यह सन्देश भेजने की आवश्यकता है कि अब यहाँ पर कानून का राज है और सरकार प्रशासन में सुधार कर चुकी है सामान्य प्रशासनिक कार्यों में अनावश्यक राजनैतिक हस्तक्षेप बंद हो चुका है.
जिस लोगों को अभी तक सपा से परेशानी होती थी अब उन्हें भी अगर सुशासन दिखाई देने लगा तो देश भर से उद्योग धंधे यहाँ पर आना शुरू कर सकते हैं. प्रदेश में बिजली पानी और सड़क पर अभियान चलाकर सुधार करने की आवश्यकता है. राजनैतिक विरोध अपनी जगह पर होते हैं पर केंद्र में बैठी वर्तमान सरकार से केंद्रीय योजनाओं से हक के रूप में मिलने वाली धनराशि के सदुपयोग पर प्रदेश सरकार को पूरा ध्यान देना होगा. जो भी केंद्रीय योजनायें चल रही हैं उनको पूरी तरह से लागू करने से संसाधनों का टोटा काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है. मनेरगा में मची हुई लूट को ख़त्म करने से ही गाँवों कि दशा सुधारने में बहुत सहायता मिल सकती है. माया सरकार की तरह से शिकायतें बंद करके प्रदेश के हक़ को लेकर पूरी मांग रखनी चाहिए और जो धनराशि मिले उसको सुपात्रों तक पहुँचाने की कोशिश ही सब कुछ ठीक कर सकती है. अब सारा कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार सँभालने के बाद अखिलेश अपनी उस छवि को बनाये रख पाते हैं जो उन्होंने डीपी यादव को टिकट देने से इनकार करने के समय बनायीं थी या वे फिर से केवल सरकार बन जाने और पद पा जाने के साथ ही केवल लखनऊ को यूपी समझने की वही ग़लती करते हैं जो माया ने की थी और उसका खामियाज़ा उन्हें भुगतना पड़ा है.
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आज जो विशेष है उसका नाम अखिलेश है
जवाब देंहटाएंचलिए, अब कांग्रेस का एकाधिकार तो खत्म हुआ.
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