उत्तर प्रदेश में जिस तरह से पिछले कुछ दशकों से सरकारों ने केवल लखनऊ में बैठकर काम करना शुरू कर दिया है उससे प्रदेश की जनता को लगता है कि आज भी उसके लिए लखनऊ बहुत दूर है. प्रदेश में सुशासन और बदलाव का सपना दिखाकर और मायावती की कमियों और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ जनता के आक्रोश को अपने हक में अवसर के रूप में बदलने के बाद अब सपा के सामने असली चुनौतियाँ शुरू होने वाली हैं. सबसे पहले प्रदेश के विस्तार को देखते हुए इस बात के प्रयास किये जाने चाहिए कि जनता को लगे कि उनके लिए जो कुछ भी आवश्यक है वह उन्हें सही तरह से सही जगह पर उपलब्ध है. किसी भी तरह के विरोध को नकारते हुए सबसे पहले न्यायिक क्षेत्र में बड़ा कदम उठाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को उच्च न्यायालय की एक पीठ दिए जाने की शुरुवात करनी चाहिए. कहा जाता है कि देर से मिला न्याय न्याय नहीं होता है तो फिर पश्चिमी क्षेत्र की जनता को इस न्याय से वंचित किये जाने का क्या औचित्य है ? यह सही है कि प्रदेश की आय और अन्य संसाधनों में पश्चिमी यूपी शेष क्षेत्रों से आगे है तो उसे वे सुविधाएँ देने में लखनऊ में बैठे लोगों को क्या दिक्कत है जिनके वे हक़दार है ? उनकी इस तरह की उपेक्षा ही बार बार उन्हें हरित प्रदेश की मांग करने के लिए मजबूर करती रहती है क्योंकि उनका भी इस बात अपर पूरा हक़ है कि वे अपने लिए आवश्यक संसाधन अपने आस पास ही उपलब्ध पायें.
जिस तरह से प्रदेश को प्रशासनिक कुशलता के लिए मंडलों में बांटा गया है और उसके पास कर्मठ अधिकारी भी हैं जो किसी भी सरकार की नीतियों को सही तरीके से अमली जामा पहना सकते हैं तो उनकी इस क्षमता का उपयोग आख़िर राज्य सरकारें क्यों नहीं करना चाहती हैं ? क्यों कुछ लोक लुभावन नारों के दम पर ही जनता को छला जाता है ? एक बार वोट देने के बाद आम जनता को किसी भी सरकार से रोज़ कोई काम नहीं पड़ता है पर जब लगातार दशकों तक उसकी सही बातों और मांगों की सुनवाई नहीं होती है तो वह अपने लिए छोटी इकाइयों की मांग करने लगती है. पिछली कुछ सरकारों ने यूपी में भी जिलों के प्रभारी मंत्री बनाने शुरू कर दिए हैं जिसके पीछे मंशा यह थी कि सरकार की पहुँच आम लोगों तक हो जाएगी पर इन मंत्रियों ने जिस तरह से अपने घरों पर दरबार लगाना शुरू किया वह किसी भी सामंती अहं से कम नहीं है. प्रदेश के समुचित विकास के लिए सबसे पहले विधायक निधि को ख़त्म कर मंडल स्तर पर योजनाओं को अमली रूप दिया जाना चाहिए. भ्रष्टाचार को कम करने के लिए किसी भी मद में कुछ भी खर्च किया जाये उसे जिले की वेबसाइट पर अनिवार्य रूप से डाला जाना चाहिए. नेता-अधिकारी और ठेकदारों के घटक गठजोड़ से अब प्रदेश को बाहर निकालना ही होगा.
लखनऊ में बैठकर दूरदराज़ के क्षेत्रों के बारे में सही नीतियां बना पाना थोड़ा मुश्किल काम होता है और आज नेता जिस तरह से काम करते हैं उन परिस्थितियों में यह काम और भी कठिन हो जाता है. विधायक बनने के बाद नेता को अपने क्षेत्र की समस्याओं से अधिक लखनऊ की चिंता खाती रहती है ? अच्छा हो कि प्रदेश स्तर पर लोगों की सही राय जाने के लिए कोई काल सेंटर बनाया जाए जो जनता की समस्याओं को सुनकर उन्हें एक शिकायत संख्या दे जिससे उनकी बात को कहीं पर लिखा तो जाये ? किसी क्षेत्र में किस समस्या से प्राथमिकता के आधार पर निपटा जाना चाहिए ये बात अगर नेता के बजाय जनता से पूछी जाये तो धरातल की वास्तविकताओं का ठीक ढंग से पता चल पायेगा. ये कुछ ऐसे काम हैं जिसको एक बार शुरू करने के बाद इनसे बड़ी मदद मिल सकती है. कई बार जनता की समस्याओं का सही आंकलन ही नहीं हो पाता है जिससे उसकी परेशानियाँ कम होने के स्थान पर बढ़ती जाती हैं. इस बार सपा में नए चेहरों की भरमार है और यह आशा की जा सकती है कि पार्टी में उपलब्ध लोगों के अनुभव और विचारों का सम्मान करके ही प्रदेश का भला किया जा सकता है. उम्मीदों के आकाश में जनता को विकास का इन्द्रधनुष अगर दिखाना है तो नयी शुरुवात तो करनी ही होगी वरना चुनाव कोई कुम्भ का मेला तो हैं नहीं जो १२ साल में आयेंगें....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
जिस तरह से प्रदेश को प्रशासनिक कुशलता के लिए मंडलों में बांटा गया है और उसके पास कर्मठ अधिकारी भी हैं जो किसी भी सरकार की नीतियों को सही तरीके से अमली जामा पहना सकते हैं तो उनकी इस क्षमता का उपयोग आख़िर राज्य सरकारें क्यों नहीं करना चाहती हैं ? क्यों कुछ लोक लुभावन नारों के दम पर ही जनता को छला जाता है ? एक बार वोट देने के बाद आम जनता को किसी भी सरकार से रोज़ कोई काम नहीं पड़ता है पर जब लगातार दशकों तक उसकी सही बातों और मांगों की सुनवाई नहीं होती है तो वह अपने लिए छोटी इकाइयों की मांग करने लगती है. पिछली कुछ सरकारों ने यूपी में भी जिलों के प्रभारी मंत्री बनाने शुरू कर दिए हैं जिसके पीछे मंशा यह थी कि सरकार की पहुँच आम लोगों तक हो जाएगी पर इन मंत्रियों ने जिस तरह से अपने घरों पर दरबार लगाना शुरू किया वह किसी भी सामंती अहं से कम नहीं है. प्रदेश के समुचित विकास के लिए सबसे पहले विधायक निधि को ख़त्म कर मंडल स्तर पर योजनाओं को अमली रूप दिया जाना चाहिए. भ्रष्टाचार को कम करने के लिए किसी भी मद में कुछ भी खर्च किया जाये उसे जिले की वेबसाइट पर अनिवार्य रूप से डाला जाना चाहिए. नेता-अधिकारी और ठेकदारों के घटक गठजोड़ से अब प्रदेश को बाहर निकालना ही होगा.
लखनऊ में बैठकर दूरदराज़ के क्षेत्रों के बारे में सही नीतियां बना पाना थोड़ा मुश्किल काम होता है और आज नेता जिस तरह से काम करते हैं उन परिस्थितियों में यह काम और भी कठिन हो जाता है. विधायक बनने के बाद नेता को अपने क्षेत्र की समस्याओं से अधिक लखनऊ की चिंता खाती रहती है ? अच्छा हो कि प्रदेश स्तर पर लोगों की सही राय जाने के लिए कोई काल सेंटर बनाया जाए जो जनता की समस्याओं को सुनकर उन्हें एक शिकायत संख्या दे जिससे उनकी बात को कहीं पर लिखा तो जाये ? किसी क्षेत्र में किस समस्या से प्राथमिकता के आधार पर निपटा जाना चाहिए ये बात अगर नेता के बजाय जनता से पूछी जाये तो धरातल की वास्तविकताओं का ठीक ढंग से पता चल पायेगा. ये कुछ ऐसे काम हैं जिसको एक बार शुरू करने के बाद इनसे बड़ी मदद मिल सकती है. कई बार जनता की समस्याओं का सही आंकलन ही नहीं हो पाता है जिससे उसकी परेशानियाँ कम होने के स्थान पर बढ़ती जाती हैं. इस बार सपा में नए चेहरों की भरमार है और यह आशा की जा सकती है कि पार्टी में उपलब्ध लोगों के अनुभव और विचारों का सम्मान करके ही प्रदेश का भला किया जा सकता है. उम्मीदों के आकाश में जनता को विकास का इन्द्रधनुष अगर दिखाना है तो नयी शुरुवात तो करनी ही होगी वरना चुनाव कोई कुम्भ का मेला तो हैं नहीं जो १२ साल में आयेंगें....
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