मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 25 मार्च 2012

देश, सुधार और राजनीति

         फिक्की की बैठक में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जिस तरह से आने वाले समय में कड़े फैसले लेने के बारे में संकेत दिए हैं वे आज की आवश्यकता बन चुके हैं फिर भी गठबंधन की मजबूरी के चलते सरकार इस तरह के कड़े कदम उठाने में अपने को असहाय पा रही है. किसी भी सरकार के लिए वह समय बहुत कठिन होता है जब वह नीतियों के निर्धारण के लिए जो कुछ भी करना चाहती है वह करने के स्थान पर उसे बिना बात के रोड़े अटकाने वाले समझौते करने पड़ते हैं ? यह भी सही है कि मनमोहन सिंह के पास देश को इस सदी में देश को बहुत आगे ले जाने की नीतियां तो हैं पर उन्हें लागू करवाने के लिए जो बहुमत और समर्थन देश की तरफ से उन्हें मिलना चाहिए वह कहीं से भी उनके पास नहीं है इस कारण से भी वह वो सब नहीं कर पा रहे हैं जो नीतिगत फैसलों के तहत उन्हें कर लेना चाहिए. जिस तरह से उन्होंने १९९१ में देश को आर्थिक संकट से निकल कर विकास की पटरी पर सरपट दौड़ाया था उससे आज भी देश को निरंतर लाभ मिल रहा है. ऐसा भी नहीं है कि उनके द्वारा निर्धारित की गयी हर नीति ने देश को बहुत लाभ दिया हो पर अधिकांश मामलों में उनकी एक अर्थशास्त्री के रूप में जो ख्याति दुनिया में बनी हुई है उन्होंने उसे पूरी तरह से सही साबित कर दिया है. 
    यहाँ पर यह सवाल उठाना लाजमी है कि जब उनमें काम करने की इतनी ऊर्जा है और विचारों को धरातल तक पहुँचाने की सोच भी उनमें भरी हुई है तो फिर देश के अन्य राजनैतिक दल आख़िर किस बात से डरते रहते हैं ? आज उनके द्वारा शुरू किये गए आर्थिक सुधारों से देश को लाभ पहुंचा इस बात से कोई भी इनकार नहीं करता है खुद राजग ने उनके द्वारा प्रस्तावित विनिवेश की नीति समेत कई नीतियों को तेज़ी से आगे बढ़ने का काम किया था जब यह सब देश के लिए सही है तो आख़िर क्यों संसद में या उससे बाहर बैठकर देश के राजनैतिक दल एक ठोस नीति का निर्धारण क्यों नहीं करते हैं जिनमें सभी के सुझावों के साथ एक बेहतर नीतियां बनायीं गयी हों ? क्या कारण है कि देश  के लिए बनायीं जाने वाली नीतियों में भी इस तरह की भावना रखी जाती है ? विकास और आर्थिक सुधारों के लिए देश की चीन से तुलना की जाती है जहाँ पर नीतियों के विरुद्ध बोलने का साहस किसी में नहीं है क्योंकि वहां पर यह सब तानाशाही के स्तर पर किया जाता है ? आज देश के पास जो कुछ भी है उससे किसका नुक्सान हो रहा है यह किसी को नहीं पता पर इस नुकसान को रोकने के लिए नयी नीतियों को बनाने में विरोध करने के लिए सभी दल तैयार रहते हैं ?
       अब समय आ गया है कि इस तरह के किसी भी काम को करने से पहले देश के राजनैतिक तंत्र को पूरे देश को विश्वास में लेना होगा क्योंकि अब उसके बिना कुछ भी ठीक ढंग से नहीं किया जा सकेगा. अभी तक विदेश, रक्षा और कश्मीर के बारे में देश की जिस तरह से एक ही नीति चलती है कुछ वैसा ही आख़िर हम देश को विकास के नए आयामों तक पहुँचाने के लिए क्यों नहीं बना सकते हैं ? क्या देश में अपने वजूद को बचाए रखने के लिए नेता और दल इस तरह से देश को विकास की दौड़ में पीछे करने का काम करते ही रहेंगें ? देश के लिए एक विकास का खाका तैयार होना ही चाहिए और इसके लिए सर्वदलीय बैठकों में यह अब तय किया ही जाना चाहिए ? देश के विभिन्न हिस्सों में राजनैतिक कारणों से विभिन्न दल सत्ता या विपक्ष में हो सकते हैं पर इस तरह के निर्णय लेने में उनके राजनैतिक प्रदर्शन को ही केवल आधार बनाया जाए क्योंकि हो सकता है कल उनमें से किसी के पास देश की सत्ता हो ? अब देश एक लिए सोचने का समय आ गया है राजनीति करने के बहुत सारे अवसर आते रहेंगे पर विकास की दौड़ में पिछड़ता हुआ देश आख़िर किस तरह से अपने को विश्व के सामने सही रूप में प्रस्तुत कर पायेगा इस बात का जवाब देने के लिए आज कोई भी राजनैतिक दल या नेता तैयार नहीं दिखता है ?    
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