जिस तरह से अचानक ही मुलायम सिंह ने लखनऊ में राम मनोहर लोहिया से जुड़े एक कार्यक्रम में यह कहकर सभी को चौंका दिया कि देश में कभी भी मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं ठीक उसी तरह से कांग्रेस ने भी यह स्पष्ट कर दिया कि अभी इसकी कोई सम्भावना नहीं है और इस तरह की बातें करके कुछ लोग अपने राजनैतिक हितों को साधने का काम करना चाहते हैं. आज जिस तरह से संप्रग के कई घटक दल छोटी छोटी बातों को लेकर उसे अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लेते हैं उससे देश का भला नहीं हो सकता है. वर्तमान संप्रग सरकार में जिस तरह से केवल दो बड़े दल ही बड़े सहयोगी के रूप में सामने हैं और वे ही समय समय पर सरकार को परेशान करने में नहीं चूकते हैं जिससे कई बार ऐसे सन्देश जनता तक जाते हैं कि कहीं न कहीं मध्यावधि चुनाव भी होने की सम्भावना बन रही है. कोई भी दल आज की स्थिति में चुनाव के लिए एकदम से तैयार नहीं है और अगर अचानक चुनाव होते हैं तो उसके बाद देश में अनिश्चितता का माहौल ठीक भी होगा इस बारे में कौन कह सकता है ? कई बार प्रदेश की स्थितियां और स्थानीय मसलों के चलते भी नेता लोग इस तरह के बयान देने कि लिए मजबूर हो जाते हैं. हो सकता है कि मुलायम अपनी पार्टी के संगठन को लगातार क्रियाशील बनाये रखना चाहते हों जिसके लिए ही वे इस तरह की नीति के तहत ही ऐसे बयान दे रहे हों सत्ता मिल जाने के बाद जिस तरह से पार्टी आराम करने लगती है उसे मुलायम अच्छी तरह से जानते हैं.
देश में जिस तरह से क्षेत्रीय दलों की स्वीकार्यता बढ़ रही है उससे राष्ट्रीय दलों का चिंतित होना आवश्यक है क्योंकि कुछ राज्यों में सक्रिय और प्रभावी इन दलों के कारण ही आज किसी भी दल को संसद में बहुमत मिलना कठिन सा लगता है पर दबाव की राजनीति ने देश में गठबंधन के स्वरूपों को बिगाड़ कर रख दिया है जिस ऊर्जा का उपयोग देश के लिए ठोस नीतियां बनाये जाने में किया जा सकता है वह केवल बेकार के संतुलन को बनाये रखने में ही खर्च होती जाती है जिससे देश को किसी भी तरह का लाभ नहीं होता उलटे जिन नीतियों को काफी पहले बन जाना चाहिए था वे आज भी केवल विचार विमर्श के स्तर पर ही रुकी हुई हैं. मुलायम को आज होने वाले चुनावों में सपा की कुछ सीटें बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं जिससे वे केंद्र सरकार पर चुनाव की बातें करते रहकर दबाव बनाये रखना चाहते हैं वहीं अपनी सीटें घट जाने की आशंका के चलते बसपा और भाजपा यह कतई नहीं चाहेंगी कि यूपी में उनका प्रदर्शन ख़राब हो और वे पिछली स्थिति को भी न बनाये रख पायें ? वर्तमान परिस्थितियों में कांग्रेस के लिए भी अपनी सीटें बचाना मुश्किल ही होता जा रहा है तो वैसी स्थिति में केवल सनसनी फ़ैलाने के लिए तो सभी चुनाव की बातें आर सकते हैं पर सपा के अलावा आज कोई भी दल इसके लिए तैयार नहीं दिखता है. यूपी में अन्य दल यही चाहते हैं कि अखिलेश सरकार के काम काज पर टिप्पणी करने का अवसर भी उन्हें अगले चुनावों में उन्हें मिले.
यूपी की जनता ने पिछली बार जिस तरह से अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस और भाजपा के पक्ष में लोकसभा के लिए विधानसभा के पैटर्न से हटकर मतदान किया अगर वही स्थिति बनी रही तो भाजपा और कांग्रेस भी कमज़ोर साबित नहीं होने वाले हैं. हालंकि केवल यूपी से आज देश नहीं चला करता है पर यहाँ पर बुरी तरह से विभाजित स्थिति ने भी प्रदेश की स्थिति को कमज़ोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अगर आने वाले २०१४ के चुनावों में मुलायम आज की स्थिति को बनाये रखने में सफल भी हो पाए तो उनके लिए पीएम की कुर्सी तक पहुँचने में उनके जनता पार्टी लोकदल और जनता दल के पुराने ज़माने के साथी ही उन्हें कितना समर्थन देंगें यह भविष्य के गर्भ में है ? तीसरे-चौथे मोर्चे की बात करना तो आसान है पर वह बिना कांग्रेस के सहयोग के किसी काम का नहीं है और आज की स्थिति में क्या भाजपा इस स्थिति में है कि वह लोकसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभर पाए और कांग्रेस को दूसरे स्थान पर धकेलने में कामयाब हो जाये ? ये ऐसे प्रश्न हैं जिनके बिना कोई भी दल सत्तारूढ़ होने के हसीन सपने नहीं देख सकता है. सीटें कम होने पर भी सबसे दल के रूप में उभरने के बाद क्या कांग्रेस अपने सरकार बनाने के दावे को पेश नहीं करेगी ? अभी इन बातों के लिए समय नहीं है और चुनाव होने के बाद जो कुछ भी स्थिति होगी उसके लिए सभी दल पूरी तरह से तैयार हैं. आज यूपी में अखिलेश सरकार को केंद्र की बड़ी आर्थिक सहायता की ज़रुरत है तो इस बात की अधिक सम्भावना भी है कि नेताजी दिल्ली में राज्य के लिए कुछ अधिक मांगने से पहले ही दबाव बनाने के लिए ऐसा कह रहे हों जिससे कांग्रेस उनसे अधिक मोलभाव न कर सके ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देश में जिस तरह से क्षेत्रीय दलों की स्वीकार्यता बढ़ रही है उससे राष्ट्रीय दलों का चिंतित होना आवश्यक है क्योंकि कुछ राज्यों में सक्रिय और प्रभावी इन दलों के कारण ही आज किसी भी दल को संसद में बहुमत मिलना कठिन सा लगता है पर दबाव की राजनीति ने देश में गठबंधन के स्वरूपों को बिगाड़ कर रख दिया है जिस ऊर्जा का उपयोग देश के लिए ठोस नीतियां बनाये जाने में किया जा सकता है वह केवल बेकार के संतुलन को बनाये रखने में ही खर्च होती जाती है जिससे देश को किसी भी तरह का लाभ नहीं होता उलटे जिन नीतियों को काफी पहले बन जाना चाहिए था वे आज भी केवल विचार विमर्श के स्तर पर ही रुकी हुई हैं. मुलायम को आज होने वाले चुनावों में सपा की कुछ सीटें बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं जिससे वे केंद्र सरकार पर चुनाव की बातें करते रहकर दबाव बनाये रखना चाहते हैं वहीं अपनी सीटें घट जाने की आशंका के चलते बसपा और भाजपा यह कतई नहीं चाहेंगी कि यूपी में उनका प्रदर्शन ख़राब हो और वे पिछली स्थिति को भी न बनाये रख पायें ? वर्तमान परिस्थितियों में कांग्रेस के लिए भी अपनी सीटें बचाना मुश्किल ही होता जा रहा है तो वैसी स्थिति में केवल सनसनी फ़ैलाने के लिए तो सभी चुनाव की बातें आर सकते हैं पर सपा के अलावा आज कोई भी दल इसके लिए तैयार नहीं दिखता है. यूपी में अन्य दल यही चाहते हैं कि अखिलेश सरकार के काम काज पर टिप्पणी करने का अवसर भी उन्हें अगले चुनावों में उन्हें मिले.
यूपी की जनता ने पिछली बार जिस तरह से अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस और भाजपा के पक्ष में लोकसभा के लिए विधानसभा के पैटर्न से हटकर मतदान किया अगर वही स्थिति बनी रही तो भाजपा और कांग्रेस भी कमज़ोर साबित नहीं होने वाले हैं. हालंकि केवल यूपी से आज देश नहीं चला करता है पर यहाँ पर बुरी तरह से विभाजित स्थिति ने भी प्रदेश की स्थिति को कमज़ोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अगर आने वाले २०१४ के चुनावों में मुलायम आज की स्थिति को बनाये रखने में सफल भी हो पाए तो उनके लिए पीएम की कुर्सी तक पहुँचने में उनके जनता पार्टी लोकदल और जनता दल के पुराने ज़माने के साथी ही उन्हें कितना समर्थन देंगें यह भविष्य के गर्भ में है ? तीसरे-चौथे मोर्चे की बात करना तो आसान है पर वह बिना कांग्रेस के सहयोग के किसी काम का नहीं है और आज की स्थिति में क्या भाजपा इस स्थिति में है कि वह लोकसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभर पाए और कांग्रेस को दूसरे स्थान पर धकेलने में कामयाब हो जाये ? ये ऐसे प्रश्न हैं जिनके बिना कोई भी दल सत्तारूढ़ होने के हसीन सपने नहीं देख सकता है. सीटें कम होने पर भी सबसे दल के रूप में उभरने के बाद क्या कांग्रेस अपने सरकार बनाने के दावे को पेश नहीं करेगी ? अभी इन बातों के लिए समय नहीं है और चुनाव होने के बाद जो कुछ भी स्थिति होगी उसके लिए सभी दल पूरी तरह से तैयार हैं. आज यूपी में अखिलेश सरकार को केंद्र की बड़ी आर्थिक सहायता की ज़रुरत है तो इस बात की अधिक सम्भावना भी है कि नेताजी दिल्ली में राज्य के लिए कुछ अधिक मांगने से पहले ही दबाव बनाने के लिए ऐसा कह रहे हों जिससे कांग्रेस उनसे अधिक मोलभाव न कर सके ?
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देश की जनता अब कांग्रेसियो की लूट और बढती महंगाई से त्रस्त आ चुकी है .... अब ये निकम्मी सरकार जानी बहुत जरुरी है ... फिर चाहे मुलायम के नेतृत्व में तीसरा मौर्चा आये या नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा.... लेकिन ये गरीब जनता की रोटी खाकर विदेशी बेंको में धन जमा कराने वाले बेनकाब होने चाहिए .... नई सरकार सोनिया और उसके दामाद राबर्ट वढेरा को विशेष जाँच के दायरे में लाये.... बड़ा खुलासा होगा
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