देश में अपनी सही बात को मनवाने के लिए भी किस तरह से अन्ना जैसे व्यक्ति को निरंतर ही आन्दोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है इससे यही पता चलता है कि कहीं न कहीं कुछ ऐसा अवश्य घट रहा है जो जनता के सामने नहीं आ पा रहा है पिछले वर्ष जिस तरह से सरकार ने अन्ना के साथ बातचीत आरम्भ की थी और उसके कुछ सकारात्मक परिणाम भी दिखाई देने शुरू हो गए थे पर अचानक ही बाबा रामदेव के आन्दोलन पर पुलिस की सख्ती और पल-पल बदलते बयानों के बीच ही अन्ना ने सरकार से किसी भी तरह की कोई भी बात करने से मना कर दिया जो वहीं पर एक गतिरोध के रूप में सामने आ गया और आज तक सरकार और अन्ना के बीच सम्बन्ध फिर से पिछले वर्ष जैसे नहीं हो पाए हैं ? सवाल यह है कि आख़िर आज कौन से ऐसे लोग हैं जिनका सरकार और इस तरह के आन्दोलनकारियों के लिए बराबर का सम्मान रखते हों क्योंकि जब तक इस तरह के लोगों को बीच में नहीं डाला जायेगा तब तक देश के सामने किसी भी परिस्थिति में कैसा भी लोकपाल बिल नहीं आ पायेगा क्योंकि दोनों पक्ष आज एक दूसरे पर किसी भी तरह से विश्वास नहीं करते हैं और इस गतिरोध को तोड़ना बहुत आवश्यक है.
दोनों पक्षों द्वारा जिस तरह से अपने अपने रुख पर अड़ने की नीतियां अपनाई गयी हैं उससे किसी भी तरह से देश का भला नहीं हो सकता है क्योंकि रामलीला मैदान में बैठकर कुछ मांगने और संसद में बैठकर कानून पारित करवाने में बहुत बड़ा अंतर होता है और किसी भी परिस्थिति में संसद अपने नियमों को नहीं बदलने वाली है और वह भी इस तरह की स्थिति में जब नेताओं पर लगाम लगाने की बातें खुलेआम की जा रही हों ? देश को मज़बूत लोकपाल की ज़रुरत है और सरकार इसे बनाना भी चाहती है पर अन्ना के कुछ लोग इसे सरकारी रूप में स्वीकार नहीं कर सकते हैं ? अन्ना के पास केवल प्रस्ताव करने की ताक़त है और संसद के पास कानून बनाने की ताक़त पर दोनों ही पक्षों के इस तरह से अड़ जाने से किस तरह से अन्ना की मंशा के अनुरूप लोकपाल बिल को लाया जा सकेगा ? टीम अन्ना की तरफ़ से किरण बेदी और अरविन्द केजरीवाल को बातचीत से अलग रखा जाना चाहिए और सरकार को भी इस मसले पर होने वाली किसी भी बातचीत के लिए प्रणब मुखर्जी के नेतृत्व में मंत्रियों का समूह बना देना चाहिए जिसमें कपिल, सलमान जैसे लोग न हों क्योंकि इन लोगों के बीच में व्यक्तिगत मुद्दे इतने बड़े स्तर पर पहुँच चुके हैं कि इनके शामिल होने से किसी भी तरह से कोई सहमति बना पाना नामुमकिन हो चुका है.
देश को मज़बूत लोकपाल की ज़रुरत है टीम अन्ना ने जो कुछ भी किया है और वह जो कुछ भी करने जा रही है उसे हमेशा याद किया जायेगा पर अब सरकार और अन्ना के बीच में संवाद की ज़रुरत है क्योंकि जब तक मुद्दों पर बैठकर बातें नहीं की जायेंगीं तब तक क्या किसी नतीज़े पर पहुंचना संभव नहीं हो पायेगा ? अब दोनों पक्षों को यह तय करना है कि उनके बीच में यह वर्चस्व की लड़ाई चलती रहेगी या फिर वे एक बार फिर से पिछ्ली बातों को भुलाकर देश केलिए एक मज़बूत कानून बना पाने में सक्षम हो पायेंगें ? अन्ना के मंच पर नेता कुछ बोलते हैं पर संसद में जाकर उनके सुर बदल जाते हैं इसलिए इस मुद्दे पर अन्ना को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि देश की राजनीति में मौजूद सभी दलों से भी बात करके उनके अधिकारिक रुख का पता लगाया जाये और उनको भी पार्टी के स्तर पर विश्वास में लेने का प्रयास किया जाये साथ ही जब तक कुछ ठोस बात सामने न आये तब तक बातचीत जारी रखने का संकल्प भी लेना चाहिए जिससे देश के हित में कोई अच्छा और प्रभावी कानून बनाया जा सके ? किसी भी तरह की दबाव की राजनीति से दूर रहने का प्रयास भी दोनों पक्षों द्वारा किया जाना चाहिए क्योंकि बिना इसके अच्छे प्रयासों को भी सही तरह से आगे नहीं बढाया जा सकता है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
दोनों पक्षों द्वारा जिस तरह से अपने अपने रुख पर अड़ने की नीतियां अपनाई गयी हैं उससे किसी भी तरह से देश का भला नहीं हो सकता है क्योंकि रामलीला मैदान में बैठकर कुछ मांगने और संसद में बैठकर कानून पारित करवाने में बहुत बड़ा अंतर होता है और किसी भी परिस्थिति में संसद अपने नियमों को नहीं बदलने वाली है और वह भी इस तरह की स्थिति में जब नेताओं पर लगाम लगाने की बातें खुलेआम की जा रही हों ? देश को मज़बूत लोकपाल की ज़रुरत है और सरकार इसे बनाना भी चाहती है पर अन्ना के कुछ लोग इसे सरकारी रूप में स्वीकार नहीं कर सकते हैं ? अन्ना के पास केवल प्रस्ताव करने की ताक़त है और संसद के पास कानून बनाने की ताक़त पर दोनों ही पक्षों के इस तरह से अड़ जाने से किस तरह से अन्ना की मंशा के अनुरूप लोकपाल बिल को लाया जा सकेगा ? टीम अन्ना की तरफ़ से किरण बेदी और अरविन्द केजरीवाल को बातचीत से अलग रखा जाना चाहिए और सरकार को भी इस मसले पर होने वाली किसी भी बातचीत के लिए प्रणब मुखर्जी के नेतृत्व में मंत्रियों का समूह बना देना चाहिए जिसमें कपिल, सलमान जैसे लोग न हों क्योंकि इन लोगों के बीच में व्यक्तिगत मुद्दे इतने बड़े स्तर पर पहुँच चुके हैं कि इनके शामिल होने से किसी भी तरह से कोई सहमति बना पाना नामुमकिन हो चुका है.
देश को मज़बूत लोकपाल की ज़रुरत है टीम अन्ना ने जो कुछ भी किया है और वह जो कुछ भी करने जा रही है उसे हमेशा याद किया जायेगा पर अब सरकार और अन्ना के बीच में संवाद की ज़रुरत है क्योंकि जब तक मुद्दों पर बैठकर बातें नहीं की जायेंगीं तब तक क्या किसी नतीज़े पर पहुंचना संभव नहीं हो पायेगा ? अब दोनों पक्षों को यह तय करना है कि उनके बीच में यह वर्चस्व की लड़ाई चलती रहेगी या फिर वे एक बार फिर से पिछ्ली बातों को भुलाकर देश केलिए एक मज़बूत कानून बना पाने में सक्षम हो पायेंगें ? अन्ना के मंच पर नेता कुछ बोलते हैं पर संसद में जाकर उनके सुर बदल जाते हैं इसलिए इस मुद्दे पर अन्ना को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि देश की राजनीति में मौजूद सभी दलों से भी बात करके उनके अधिकारिक रुख का पता लगाया जाये और उनको भी पार्टी के स्तर पर विश्वास में लेने का प्रयास किया जाये साथ ही जब तक कुछ ठोस बात सामने न आये तब तक बातचीत जारी रखने का संकल्प भी लेना चाहिए जिससे देश के हित में कोई अच्छा और प्रभावी कानून बनाया जा सके ? किसी भी तरह की दबाव की राजनीति से दूर रहने का प्रयास भी दोनों पक्षों द्वारा किया जाना चाहिए क्योंकि बिना इसके अच्छे प्रयासों को भी सही तरह से आगे नहीं बढाया जा सकता है ?
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