मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 27 मार्च 2012

सेना और घूस

             सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने जिस तरह से एक पूर्व सैन्य कर्मी द्वारा उन्हें घटिया गाड़ियों की खरीद को हरी झंडी दिखाने के मामले में १४ करोड़ रुपयों की घूस की पेशकश का खुलासा किया है उससे एक बार फिर से यह बात सामने आ गयी है कि सेना सहित देश के हर सरकारी विभाग में खरीददारी के लिए घूस देना आम हो चला है ? यहाँ पर सवाल यह नहीं है कि आज इस तरह के खुलासे पर हल्ला क्यों मचा रहा है बल्कि सवाल यह है कि इतने दिनों तक जनरल सिंह किस कारण से चुप्पी साधे हुए थे और अब वे इन बातों का खुलासा करके क्या साबित करना चाहते हैं ? यदि उस समय मामले के सामने आने पर ही वे इस बात को कहने के स्थान पर उस व्यक्ति को हिरासत में भिजवाने का काम करते तो शायद उनके प्रति आज देश के लोगों में और भी श्रद्धा भाव होता. आज जब वे अपनी जन्मतिथि के विवाद के कारण खुद ही विवादों में फंसे हुए हैं तो उनके इन आरोपों की गंभीरता बदले की कार्यवाही जैसी लगती है ? सेना में भी हर कम को करने की एक प्रक्रिया है और अगर उसके अनुपालन उन्होंने किया होता तो उन्हें घूस की पेशकश करने वाला व्यक्ति देश के सामने बेनक़ाब होकर आज जेल में होता ? किसी घूसखोर से हमारे सेनाध्यक्ष इतना विचलित हुए कि उन्होंने केवल रक्षा मंत्री को यह बात बताकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली क्या उस व्यक्ति को सज़ा दिलवाने की उनकी कोई नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं थी ? रक्षा मंत्री का इस मसले पर क्या रुख था जनरल सिंह ने यह नहीं बताया ?
         पूरी दुनिया में जिस तरह से सैन्य सौदों में घूस का मामला सामने आता रहता है वह आज वैश्विक रोग बन चुका है उससे हमारी सेना भी अछूती नहीं रह सकती है पर इस तरह की घटनाओं में जिस तरह की समझ होनी चाहिए आज तक हम उसे विकसित नहीं कर पाए हैं बोफोर्स के मामले में जितना हल्ला घूस पर मचा था उससे अधिक उसकी गुणवत्ता पर मचाया गया था जबकि कारगिल युद्ध के समय उन्हीं बोफोर्स तोपों ने देश की इज्ज़त बचाने का काम किया था ? आख़िर कौन से ऐसे तत्व या नीतियां हैं जिन्हें बदलने में आज तक किसी भी सरकार को दिलचस्पी नहीं है क्यों देश की रक्षा खरीद नीति में कोई सुधार नहीं किया जा सका ? आज जो नेता संसद में इस तरह के घोटालों के खुलासे पर हल्ला मचाने में नहीं चूकते हैं उन्होंने सत्ता में होते हुए इन नियमों को परिवर्तित करने के बारे में कभी क्यों नहीं सोचा ? राजग ने सत्ता में रहते हुए कभी भी इन नियमों में कोई कमी नहीं देखी और खुद मुलायम सिंह देश के रक्षा मंत्री रह चुके हैं अगर नीतियों में कोई खामियां थीं तो उन्होंने तब उनको बदलने का कोई प्रयास क्यों नहीं किया ? सत्ताधारी दल को बात बात पर घेरना एक बात है और अच्छी और कारगर नीतियां बनाना दूसरी बात है इस बात को इन दलों ने साबित कर ही दिया है ? जिस बोफोर्स ने देश को राजनैतिक अनिश्चितता की तरफ धकेला आज तक सभी दल सत्ता सँभालने के बाद भी उसमें कुछ खोज नहीं पाए क्योंकि शायद यह मामला घूस का कम और राजनीति का अधिक था ?
     अब समय आ गया है कि किसी भी स्थिति में आगे आने वाली ऐसी परिस्थितियों को रोका जाये और साथ ही रक्षा सम्बन्धी ज़रूरतों को भी पारदर्शी बनाया जाए क्योंकि जिस गोपनीयता का हवाला दिया जाता उससे केवल देश की जनता ही नहीं जान पाती है शत्रु देशों को तो टेंडर पड़ने के साथ ही पता चल जाता है कि भारत क्या खरीदने की कोशिश कर रहा है इसलिए यह बात अब गोपनीयता के आवरण में रखने का कोई कारण नहीं बनता है ? रक्षा सौदों समेत सभी सौदों को पूरी तरह से पारदर्शी बनाने की आवश्यकता को अब अनसुना नहीं किया जा सकता है ? सरकार ने जिस तरह से सीबीआई जांच के घोषणा कर दी है उसकी ज़रुरत तो थी पर विपक्ष को इस बात से भी परेशानी है कि यह घोषणा सदन में क्यों नहीं की गयी ? संसदीय परम्पराओं की बातें करते समय उनके अनुपालन पर भी ध्यान दिए जाने की ज़रुरत होती है क्योंकि केवल कहने से ही सब ठीक नहीं होता जब सदन को चलने ही नहीं दिया जा रहा था तो वहां पर कौन क्या घोषणा कर सकता था शायद इसलिए सरकार ने अपने पर से दबाव हटाने के लिए जांच की घोषणा कर दी और विपक्ष को लगा कि बिना उसके हल्ला मचाये आख़िर सीबीआई की जांच सरकार कैसे कर सकती है और उसको मिलने वाले श्रेय को कैसे नकार सकती है ? धन्य हैं इस देश के नेता और राजनीति जिन्हें देश हित से अधिक उस समय परम्पराएँ याद रहती हैं जब वे खुद फँस रहे हों चाहे वो सत्ता पक्ष में हों या विपक्ष में....... 
 
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