पंजाब में एक बार फिर से माहौल को गर्माने की साजिश चल रही है एक ऐसा भय से दूर शांति का माहौल जिसे पंजाब के हजारों लोगों की मौत के बाद कड़ी मेहनत से बेअंत सिंह ने शहादत के बाद पाया जा सका था उसे फिर से आतंकियों के हवाले करने की साजिश जैसी एक बार फिर से दिखाई दे रही है ? देश में धर्म को राजनीति से जोड़ने की घातक नीतियों ने आज तक बहुत बड़ा नुकसान कर दिया है और आज से २५ वर्ष पहले के पंजाब की कल्पना करके सभी की आत्मा काँप जाती है क्योंकि देश में विकास की दौड़ में हमेशा आगे रहने वाले हमारे इस जीवंत प्रदेश में कुछ लोगों ने जिस तरह से आतंक का माहौल बना दिया था वह आज किसी बुरे और डरावने सपने जैसा है. १९९५ में पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में मृत्युदंड की सजा पाए बलविंदर सिंह राजोआना की जिस तरह से वहां के राजनैतिक दल वकालत करने में लगे हुए है और राजोआना खुद को शहीदों की श्रेणी में देखना चाहता है उससे वहां के माहौल पर बुरा असर पड़ रहा है. जिस तरह से उसे बेअंत सिंह और उस हमले में मारे गए १७ अन्य लोगों की मौत में दोषी करार दिया गया है और उसे ३१ मार्च को फाँसी की सजा देने के आदेश जारी कर दिए गए हैं उससे बिना बात के राजनैतिक लाभ उठाने के प्रयास किये जा रहे हैं. कानून सभी के लिए समान हैं और इन्हें किसी के लिए बदलने की ग़लत परंपरा कैसे डाली जा सकती है बेअंत सिंह के साथ मारे गए लोगों के परिजनों को भी तो न्याय किये जाने की उम्मीद है ?
आज जिस तरह से राजोआना के पक्ष में अकाली खड़े हो रहे हैं कल किसी और धर्म के किसी आतंक में शामिल व्यक्ति के पक्ष में उसके धर्म के लोग खड़े होने लगे तो देश में कानून और व्यवस्था को कैसे संभाला जायेगा ? आज जब राजोआना ख़ुद ही जीना नहीं चाहता है तो अकाली उसे क्यों अपनी राजनीति के चलते जिंदा रखना चाहते हैं ? मृत्युदंड पाए किसी भी व्यक्ति के लिए सर्वोच्च न्यायालय के दरवाज़े खुले हुए हैं और वहां से भी सज़ा के पुष्टि हो जाने के बाद भी राष्ट्रपति से दया याचिका की जा सकती है. इस तयशुदा प्रक्रिया का पालन राजोआना द्वारा नहीं किया गया और उसकी तरफ से मृत्युदंड के फैसले के ख़िलाफ़ कानून सम्मत अपील की ही नहीं गयी है तो देश का कानून उसे किस तरह से कोर्ट के आदेश से बचाने की बात कर सकता है ? अकाली सहित विभिन्न दलों के ख़िलाफ़ राजोआना ने जिस तरह से बयान जारी किये हैं उससे यही लगता है कि उसके इस कदम के पीछे कोई और मानसिकता ही काम कर रही है और यह भी संभव है कि आतंकी संगठन एक सधे हुए निशाने की तरह राजोआना की फाँसी को इस्तेमाल करना चाहते हों ? पूर्व में भी कांग्रेस और अकालियों की पंजाब में धर्म को राजनीति से जोड़ने की कोशिशों ने पूरे पंजाब सहित दिल्ली तक को आतंक की चपेट में ला दिया था पर अब इस बार फिर से वही ग़लती करने की क्या ज़रुरत है ?
एक बार पहले भी अस्सी के दशक में ऐसी ही लाभ उठाने की राजनीति के बाद पंजाब को शांत होने में १५ वर्ष लग गए थे अब देश के तेज़ी से आगे बढ़ते राज्य को फिर से इसी बात के लिए आतंकियों के हवाले किये जाने वाले किसी भी प्रयास का खुलकर विरोध होना चाहिए क्योंकि जिस नयी पीढ़ी ने आतंक का वो दौर नहीं देखा है वह उससे बची ही रहे तो यह पंजाब और देश के लिए अच्छा होगा. राजोआना ने जिस तरह से अकाली नेताओं को धोखेबाज़ करार दिया है वह भी उसकी मन:स्थिति को दिखाता है क्योंकि वह नहीं चाहता कि पंजाब खुशहाली से जी सके. इस पूरे मामले को इस परिदृश्य में भी देखा जाना चाहिए कि कश्मीर घाटी में काफी हद तक शांति होने के बाद पाक समर्थित कुछ तत्व कहीं फिर से अब पंजाब में आतंक की प्रयोगशाला तो नहीं खोलना चाहते हैं ? यह सही है कि बेअंत सिंह की सरकार उस समय पूरे पंजाब के वोटों से नहीं बनी थी पर उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव के उस विश्वास को पूरी तरह से मजबूती दी थी जो लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के ज़रिये पंजाब की समस्या का हल चाहते थे. बेअंत सिंह आतंकियों की भेंट चढ़ गए थे पर उन्होंने जो कोशिश की थी आज पंजाब में शांति केवल उसके दम पर ही दिखाई देती है ऐसा नहीं है कि पंजाब में अन्य दल तब नहीं थे पर उन्होंने देश की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया पर उस समय भरोसा नहीं दिखाया था. पंजाब, कश्मीर या देश के किसी भी भाग में आतंकियों की किसी भी गतिविधि या न्याय की प्रक्रिया से राजनैतिक दलों को अपने को दूर ही रखना चाहिए क्योंकि धर्म को राजनीति से जोड़कर आज तक कोई भी राज्य, देश या सत्ता न्याय नहीं कर पायी है....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आज जिस तरह से राजोआना के पक्ष में अकाली खड़े हो रहे हैं कल किसी और धर्म के किसी आतंक में शामिल व्यक्ति के पक्ष में उसके धर्म के लोग खड़े होने लगे तो देश में कानून और व्यवस्था को कैसे संभाला जायेगा ? आज जब राजोआना ख़ुद ही जीना नहीं चाहता है तो अकाली उसे क्यों अपनी राजनीति के चलते जिंदा रखना चाहते हैं ? मृत्युदंड पाए किसी भी व्यक्ति के लिए सर्वोच्च न्यायालय के दरवाज़े खुले हुए हैं और वहां से भी सज़ा के पुष्टि हो जाने के बाद भी राष्ट्रपति से दया याचिका की जा सकती है. इस तयशुदा प्रक्रिया का पालन राजोआना द्वारा नहीं किया गया और उसकी तरफ से मृत्युदंड के फैसले के ख़िलाफ़ कानून सम्मत अपील की ही नहीं गयी है तो देश का कानून उसे किस तरह से कोर्ट के आदेश से बचाने की बात कर सकता है ? अकाली सहित विभिन्न दलों के ख़िलाफ़ राजोआना ने जिस तरह से बयान जारी किये हैं उससे यही लगता है कि उसके इस कदम के पीछे कोई और मानसिकता ही काम कर रही है और यह भी संभव है कि आतंकी संगठन एक सधे हुए निशाने की तरह राजोआना की फाँसी को इस्तेमाल करना चाहते हों ? पूर्व में भी कांग्रेस और अकालियों की पंजाब में धर्म को राजनीति से जोड़ने की कोशिशों ने पूरे पंजाब सहित दिल्ली तक को आतंक की चपेट में ला दिया था पर अब इस बार फिर से वही ग़लती करने की क्या ज़रुरत है ?
एक बार पहले भी अस्सी के दशक में ऐसी ही लाभ उठाने की राजनीति के बाद पंजाब को शांत होने में १५ वर्ष लग गए थे अब देश के तेज़ी से आगे बढ़ते राज्य को फिर से इसी बात के लिए आतंकियों के हवाले किये जाने वाले किसी भी प्रयास का खुलकर विरोध होना चाहिए क्योंकि जिस नयी पीढ़ी ने आतंक का वो दौर नहीं देखा है वह उससे बची ही रहे तो यह पंजाब और देश के लिए अच्छा होगा. राजोआना ने जिस तरह से अकाली नेताओं को धोखेबाज़ करार दिया है वह भी उसकी मन:स्थिति को दिखाता है क्योंकि वह नहीं चाहता कि पंजाब खुशहाली से जी सके. इस पूरे मामले को इस परिदृश्य में भी देखा जाना चाहिए कि कश्मीर घाटी में काफी हद तक शांति होने के बाद पाक समर्थित कुछ तत्व कहीं फिर से अब पंजाब में आतंक की प्रयोगशाला तो नहीं खोलना चाहते हैं ? यह सही है कि बेअंत सिंह की सरकार उस समय पूरे पंजाब के वोटों से नहीं बनी थी पर उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव के उस विश्वास को पूरी तरह से मजबूती दी थी जो लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के ज़रिये पंजाब की समस्या का हल चाहते थे. बेअंत सिंह आतंकियों की भेंट चढ़ गए थे पर उन्होंने जो कोशिश की थी आज पंजाब में शांति केवल उसके दम पर ही दिखाई देती है ऐसा नहीं है कि पंजाब में अन्य दल तब नहीं थे पर उन्होंने देश की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया पर उस समय भरोसा नहीं दिखाया था. पंजाब, कश्मीर या देश के किसी भी भाग में आतंकियों की किसी भी गतिविधि या न्याय की प्रक्रिया से राजनैतिक दलों को अपने को दूर ही रखना चाहिए क्योंकि धर्म को राजनीति से जोड़कर आज तक कोई भी राज्य, देश या सत्ता न्याय नहीं कर पायी है....
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अजमल कसाब और राजोआना, दोनों को अपने कर्मो की सजा मिलनी चाहिए, कसाब पर कांग्रेस और राजोआना पर अकालियो की नीति देश को तोड़ने वाली है
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