जिस तरह से सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने एक के बाद एक विवाद खड़े करने का सिलसिला शुरू किया है उससे यही लगता है कि वे हताशा में ऐसे कदम उठा रहे हैं क्योंकि उन्होंने अब जिन अनियमितताओं का ज़िक्र करना शुरू किया है अगर उन्हें वे इतनी ही अखर रही थीं तो उन्हें उठाने के लिए उन्होंने इतना लम्बा इंतजार क्यों किया ? देश की सेना के पास जो कुछ भी है उसे चरण बद्ध तरीके से ही बदला जाता है पर जनरल सिंह ने जिस तरह से वायुसेना के ९७% सामान को बेकार साबित करने की कोशिश की है उससे क्या पता चलता है ? पूरी दुनिया में हथियारों की खरीद में जितने बड़े और सुनियोजित तरीके से अपने पक्ष को रखा जाता है और उस सौदे से होने वाले लाभ कुछ हिस्सा दलालों को दिया जाता है उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं से यह तंत्र इतना मज़बूत है कि किसी एक के लिए इसे तोड़ पाना संभव नहीं है. जब हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ ही इस तरह से पेशकश करके अपने हथियारों को बेचने का काम कर रही हैं तो खरीदना वाले देश आख़िर कब तक अपने दम पर इस कुचक्र को तोड़ पाने में सफल हो सकेंगे ?
इस पूरे प्रकरण को भारत के पिछले कुछ समय में हुए हथियार सौदों के परिप्रेक्ष्य से भी जोड़कर देखने की आवश्यकता है क्योंकि यह भी हो सकता है कि किन्हीं सौदों में असफल रहने पर कुछ कम्पनियां अपने एजेंटों के माध्यम से इस तरह के खुलासे करवा कर भारत की रक्षा ज़रूरतों को समय से पूरा न होने देना चाहते हों ? इस तरह के हर मामले में पूरी तरह से छानबीन की आवश्यकता है क्योंकि हथियारों की ख़रीद में जितने बड़े पैमाने पर आज भ्रष्टाचार मचा हुआ है उसे ख़त्म कर पाना किसी एक देश के बस में नहीं है फिर भी इस तरह की खरीदों को अधिकतम पारदर्शिता के साथ किये जाने की कोशिश तो की ही जा सकती है ? जब किसी भी देश के सत्ता और सैन्य तंत्र तक ये दलाल घुसपैठ बना लेते हैं तो ज़ाहिर है कि इनके पास हर तरह के सूत्र मौजूद रहते होंगें और वे कोई विदेश नहीं बल्कि इन तंत्रों से जुड़े हुए कुछ ऐसे लोग ही होंगें जो देश और सैन्य हितों को अपने हितों के आगे बौना मानते हैं ? इस मामले पर पिछले दो दशकों से देश में हल्ला मचता रहता है फिर भी आज तक हमारे राजनैतिक तंत्र ने इस ख़ामी की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया है क्योंकि शायद ऐसा हो जो लोग कल मलाई खा चुके हैं वे भले ही आज न पा रहे हों पर भविष्य में खाने की आशा लगाये बैठे हों ?
जनरल सिंह द्वारा जो भी बातें कही जा रही हैं उनमें सत्यता भी हो सकती है पर इस पूरे मसले को उन्होंने जिस तरह से प्रेस तक पहुँचने दिया उसका किसी भी स्तर पर समर्थन नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे सेना के सर्वोच्च पद पर हैं और उनसे गोपनीयता और नियमों को मानने की अपेक्षा की जाती है ? वे रक्षा मंत्रालय, प्रधानमंत्री और रक्षा से जुड़ी किसी संसदीय समिति तक भी अपनी बातों को नियमों के तहत पहुंचा सकते थे पर उन्होंने जो मार्ग चुना उसका समर्थन देश में कोई नहीं करना चाहेगा क्योंकि यह रक्षा से जुड़ा संवेदन शील मामला है. जिस तरह से जनरल सिंह की कर्तव्यनिष्ठा पर किसी को संदेह नहीं है तो ठीक उसी तरह रक्षा मंत्री एंटोनी की भी सत्यनिष्ठा पर संदेह नहीं किया जा सकता है पर शायद जनरल सिंह की उम्र के विवाद ने इस बात को इतना आगे तक बढ़ा दिया है कि मामला इतने घटिया स्तर तक पहुँच गया है. भारत जैसे देश में सेनाध्यक्ष को बर्खास्त करना दुर्भाग्यपूर्ण कदम माना जाता है और इस बार भी सरकार ऐसा कुछ नहीं करना चाहती है पर जनरल सिंह द्वारा जिस तरह से अपनी सीमाओं क लांघा जा रहा है और संसद में भी सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि उन्हें पद से हटाया जाये तो ऐसे में सरकार उनको कब तक पद पर रख पायेगी यह तो समय ही बताएगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस पूरे प्रकरण को भारत के पिछले कुछ समय में हुए हथियार सौदों के परिप्रेक्ष्य से भी जोड़कर देखने की आवश्यकता है क्योंकि यह भी हो सकता है कि किन्हीं सौदों में असफल रहने पर कुछ कम्पनियां अपने एजेंटों के माध्यम से इस तरह के खुलासे करवा कर भारत की रक्षा ज़रूरतों को समय से पूरा न होने देना चाहते हों ? इस तरह के हर मामले में पूरी तरह से छानबीन की आवश्यकता है क्योंकि हथियारों की ख़रीद में जितने बड़े पैमाने पर आज भ्रष्टाचार मचा हुआ है उसे ख़त्म कर पाना किसी एक देश के बस में नहीं है फिर भी इस तरह की खरीदों को अधिकतम पारदर्शिता के साथ किये जाने की कोशिश तो की ही जा सकती है ? जब किसी भी देश के सत्ता और सैन्य तंत्र तक ये दलाल घुसपैठ बना लेते हैं तो ज़ाहिर है कि इनके पास हर तरह के सूत्र मौजूद रहते होंगें और वे कोई विदेश नहीं बल्कि इन तंत्रों से जुड़े हुए कुछ ऐसे लोग ही होंगें जो देश और सैन्य हितों को अपने हितों के आगे बौना मानते हैं ? इस मामले पर पिछले दो दशकों से देश में हल्ला मचता रहता है फिर भी आज तक हमारे राजनैतिक तंत्र ने इस ख़ामी की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया है क्योंकि शायद ऐसा हो जो लोग कल मलाई खा चुके हैं वे भले ही आज न पा रहे हों पर भविष्य में खाने की आशा लगाये बैठे हों ?
जनरल सिंह द्वारा जो भी बातें कही जा रही हैं उनमें सत्यता भी हो सकती है पर इस पूरे मसले को उन्होंने जिस तरह से प्रेस तक पहुँचने दिया उसका किसी भी स्तर पर समर्थन नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे सेना के सर्वोच्च पद पर हैं और उनसे गोपनीयता और नियमों को मानने की अपेक्षा की जाती है ? वे रक्षा मंत्रालय, प्रधानमंत्री और रक्षा से जुड़ी किसी संसदीय समिति तक भी अपनी बातों को नियमों के तहत पहुंचा सकते थे पर उन्होंने जो मार्ग चुना उसका समर्थन देश में कोई नहीं करना चाहेगा क्योंकि यह रक्षा से जुड़ा संवेदन शील मामला है. जिस तरह से जनरल सिंह की कर्तव्यनिष्ठा पर किसी को संदेह नहीं है तो ठीक उसी तरह रक्षा मंत्री एंटोनी की भी सत्यनिष्ठा पर संदेह नहीं किया जा सकता है पर शायद जनरल सिंह की उम्र के विवाद ने इस बात को इतना आगे तक बढ़ा दिया है कि मामला इतने घटिया स्तर तक पहुँच गया है. भारत जैसे देश में सेनाध्यक्ष को बर्खास्त करना दुर्भाग्यपूर्ण कदम माना जाता है और इस बार भी सरकार ऐसा कुछ नहीं करना चाहती है पर जनरल सिंह द्वारा जिस तरह से अपनी सीमाओं क लांघा जा रहा है और संसद में भी सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि उन्हें पद से हटाया जाये तो ऐसे में सरकार उनको कब तक पद पर रख पायेगी यह तो समय ही बताएगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
शुक्ला साहब, वैसे आप एक अच्छे लेखक है, और वक्त मिलने पर आपके लेखों की सराहना भी करता हूँ , मगर आप इस तरह का भी लेख लिखेंगे, इसकी मुझे कतई उम्मीद न थी ! अफ़सोस की यहाँ आपने इस भ्रष्ट सरकार और उनके चाटुकारों से अलग हटकर नहीं सोचा ! हम हिन्दुस्तानियों की यह खासियत है कि हम मुगालते में जीने में ही अधिक आनंद की प्राप्ति महसूस करते है! सच पचाने की हममें कभी शक्ति ही नहीं उत्पन्न हुई ! और नतीजा पिछले १५०० सालों से गुलामी झेल रहे है प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही, और शायद जिसके हम हकदार भी है ! मैं यहाँ जनरल का पक्ष और सरकार का विरोध करने नहीं आया हूँ, मगर इस सच्चाई को जानता हूँ हमारी सेनाओ को किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि १९०३ से लेकर आज तक मेरी पुश्ते भारतीय सेना की सेवा कर रही हैं! प्रथम विश्व युद्ध के बसरा के मोर्चे पर प्राप्त मेरे दादाजी के मेडल आज भी हमने संजो के रखे है! मेरा छोटा भाई जब जम्मू कश्मीर के मोर्चे पर तैनात था और छुट्टी पर घर आया हुआ था तो मैंने एक दिन यूँ ही टीवी पर समाचार देखते हुए उसे उलाहना दी कि क्या यार तुमने तीन दिन से चारो तरफ से घेराबंदी डाल रखी थी और फिर भी आतंकी भाग गए , तो उसका सीधा सा जबाब था कि क्या करें भाई, वहाँ जो परिस्थितियाँ है, वे लोग रात के अँधेरे का लाभ उठाकर भाग जाते है, हमारे पास नाईट वीजन उपकरण नहीं है, एक-आधा कोई है भी तो सालों से खराब पड़े है ! सेना की इन मुश्किलों से सम्बंधित समय-समय पर मैंने भी अपने ब्लॉग पर लेख लिखे है और वही बातें उजागर की जो सच हमारे सेनाध्यक्ष ने कहा ! किन्तु परन्तु निकालने में तो हम माहिर है मगर इस सरकार से कोई यह पूछने की हिमाकत नहीं करता कि जो ये रक्षा बजट पिछले सालों से बढाए जा रहे है, वह धनराशी कहाँ खर्च हो रही है? यह कहना बहुत आसान है कि जनरल ने ये मुद्दे फ्रस्ट्रेशन में अब ही क्यों उठाये है ! मेरे भाई, आज जो स्थिति इन सरकारों में बैठे लोगो की है, जिस तरह की तानाशाही ये चला रहे है, एक नौकरी पेशा जनरल को अपने बीबी बच्चे भी पालने है ! और उन्होंने चिट्ठी तो गोपनीय लिखी थी, जब आपको यह मालूम ही नहीं कि चिट्ठी किसने लीक की, ( हो सकता है कि घूस वाले मुद्दे पर पर्दा डालने के लिए यह सरकार में बैठे लोगों ने ही किया हो) तो सिर्फ जनरल को ही दोष क्यों ? क्षमा करना, ज्यादा डींगे हांकने की आदत नहीं है मगर क्योंकि यह जरूरी था इस लिए लिखा और कल एक इसी से सम्बंधित लेख में कुछ सवाल मैंने भी उठाये है, समय मिले तो उसे भी पढने का आपसे अनुरोध करूंगा !
जवाब देंहटाएंगोदियाल साहब ने बिल्कुल सही कहा है.
जवाब देंहटाएंगोदियाल साहब आपकी राय की मेरे लिए बहुत इज्ज़त है पर जब सेना में इस तरह से अफ़रा-तफ़री फैली हुई है तो कहीं न कहीं से कड़े क़दमों को उठाने की आवश्यकता है. आज ये कदम केवल सत्ता में बैठी हुई सरकार ही उठा सकती है चाकर या अनचाही स्थिति में देश के पास आज कोई विकल्प नहीं बचा हुआ है ? जिस तरह से उम्र के विवाद में सेना की गरिमा को दोनों पक्षों ने ठेस पहुंचाई वह निंदनीय है मैंने कहीं पर भी किसीका पक्ष नहीं लिया है आप ही बयेये आज जो तंत्र बना हुआ है उसमें इन मसलों पर और कौन फ़ैसले ले सकता है ? मुझे किसी एक व्यक्ति या पार्टी से कोई मतलब नहीं है पर किसी को अपने आप ही दोषी मन लिया जाना भी तो सही नहीं है ? मेरा मानना है कि सेनाध्यक्ष को पूरा समय दिया जाये जिससे जिन अनियमितताओं की तरफ उन्होंने ध्यान दिलाया है उसकी जांच हो सके क्योंकि उनके चले जाने से जांच को प्रभावित करने की कोशिश की जाएगी. सैन्य उपकरणों में जिस भ्रष्टाचार की बातें हम और आप करते हैं वह तो हमेशा से ही अस्तित्व में है और कोई भी अन्य सरकारें भी उसे बदलने की इच्छा दिखाती नहीं दिखाई दीं ? जिस कम्पनी के लिए १४ करोड़ रूपये की घूस की बात है वह उसकी निर्माता भी रक्षा मंत्रालय और सेना से जुडी हुई एक कम्पनी है ? आखिर टाटा लीलैंड से इन वाहनों की खरीद क्यों नहीं की जा रही थी ? इस बार अगर सरकार के हस्तक्षेप के बाद इन भारतीय कम्पनियों को भी टेंडर डालने का मौका मिला तो क्या इसमें भी सरकार ही दोषी है ? एंटोनी ने अपना काम बहुत संजीदगी से किया है और करते रहेंगें उनकी तुलना राजा या कलमाड़ी से नहीं की जा सकती है. आपका कहा सही है पर क्या कभी कोई एंटोनी का पक्ष भी देखने का प्रयास करेगा ? मैंने सेनाध्यक्ष की कर्तव्यनिष्ठ पर कोई दोषारोपण नहीं किया है साथ ही एंटोनी के बारे में भी वही कहा है जो सच है.... समस्या तब आ जाती है जब हम खुद को समस्या के एक पक्ष के साथ खड़ा करने की कोशिश करने लगते हैं उसी तरह से आज देश भी इन दो भागों में बंटा हुआ है...
जवाब देंहटाएंसन २००९ में ही कांग्रेस के सांसद ने इस मामले पर एक पत्र लिखा था, जिस पर आश्वासन ही मिले. पूरी ईमानदारी से जांच अभी भी चल रही है. आपकी कांग्रेस के प्रति निष्ठा का पूरा सम्मान करते हुए मैं कहना चाहता हूँ कि इन बिन्दुओं को भी देखा करें.
जवाब देंहटाएंक्षमा चाहता हूँ डा० साहब, मेरा अपना अनुभव दो निष्कर्षों पर पहुँच रहा है ! एक यह कि जैसा कि अब सामने आ रहा है कि टटरा कम्पनी से सम्बद्ध राजीव ऋषि और राजीव गांधी के संबंधों की बात तो जबसे ये यूपीए के कारनामे सामने आये है, मेरा शरीफ और इमानदार दिखने वाले लोगो पर से ही भरोसा उठ गया है ! दूसरा यह कि जैसा कि सुगबुगाहट काफी दिनों से चल रही थी कि आगामी जून में सोनिया गांधी, एंटोनी को राष्ट्रपति का दावेदार बनाना चाहती थी तो बहुत समबाह है कि यह सारा खेल उनके कोटरी के वे लोग खेल रहे हो जिन्हें यह गवारा नहीं इसलिए वे रक्षा मंत्री की इमेज खराब करने के हर संभव प्रयास कर रहे है ! लेकिन यह देखिये कि अगर ये सज्जन इतने ही इमानदार है तो जब दो साल पहले ही तृणमूल के एक सांसद ने इनको और प्रधानमत्री को एक सेना के अफसर के खिलाफ पात्र लिखा था तो इन्होने रक्षा मंत्री की हैसियत से आज तक कोई कदम क्यों नहीं उठाया ?
जवाब देंहटाएंखैर , कितनी हास्यास्पद बात है की हम और हमारे ये ह@##$%^& देश के कर्णधार इस बात के लिए ज्यादा चिंतित है कि पत्र लीक किसने किया, इस बात के लिए चिंतित नहीं है कि पत्र में उठाये गए मुद्दे कितने गंभीर है ! मामला सिर्फ इतना है कि अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए जनरल ने एक गोपनीय पत्र जोकि एक निहायत ही शरीफ प्रधानमंत्री ??? !!! को लिखा गया था ! बस ! पैसे के लिए हम हिन्दुस्तानियों ने ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, और फिर दोष भी उसी के शिर मड देते है जिसने नेक काम किया !
Defence minister AK Antony was formally apprised of the Tatra trucks scam as early as 2009 but he turned a blind eye. DNA detailed this scam in a series of investigative stories in July 2011.
जवाब देंहटाएंThis assumes significance because Antony recently told Parliament that he didn’t act when army chief General VK Singh told him he was offered a Rs14 crore bribe to clear the purchase of a tranche of substandard Tatra trucks because he didn’t get a ‘written complaint’.
If a ‘written complaint’ is what it takes to act, why didn’t Antony or his ministry react when Ghulam Nabi Azad, a senior Congress party colleague and then health minister, wrote to him on behalf of Sonia Gandhi requesting “necessary action” in the Tatra matter? DNA has a copy of Azad’s letter dated October 5, 2009.
The defence ministry’s department of defence production replied on October 22, 2009, stating that the matter (Tatra trucks deal) is under investigation. “I would like to inform you that the matter is being examined in this ministry… the examination may take some time. As such, the minister [Azad] will be communicated after detailed examination of the case at appropriate level.”
It has been over two years since and no formal investigation followed that initial response.
http://www.dnaindia.com/india/report_dna-exclusive-antony-was-aware-of-tatra-scam-since-09_1669171
मेरे इस लेख में जो कुछ भी लिखा गया है वह पूरे प्रकरण के बारे में है... इसके दूसरे पैराग्राफ में भी कुछ लिखा हुआ है मेरी मंशा यहाँ पर किसी का पक्ष लेने या विरोध करने की नहीं है हाँ अब जिस तरह से जनरल सिंह और सरकार में तनातनी घट रही है उसका क्या मतलब है ? बोफोर्स पर इतना हल्ला मचा था और वी पी सिंह, चंद्रशेखर, देवेगौडा, गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे स्वनामधन्य लोग जिन्होंने सत्ता ही इस दम पर पायी और चलायी अपने शासनकाल में कुछ साबित नहीं कर पाए ? इससे केवल यही पता चलता है कि रक्षा सौदों में दलाल हमेशा से ही सक्रिय रहे हैं जो अपना हिस्सा आपूर्ति करने वाली कम्पनी से पा जाया करते हैं, मैंने कई बार इस बात को भी कहा है कि केवल रक्षा ही क्यों पूरे देश में कुछ भी खरीदने की एक पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए पर यदि सब कुछ पारदर्शी हो गया तो इन दलों को चुनाव में चंदा कौन देगा ?
जवाब देंहटाएंक्या मतलब? एक डाक्टर ने पेशेन्ट को बताया कि उसे कैंसर है, इसपर पेशेन्ट अपना इलाज करने की जगह डाक्टर पर ही हमला करने लगा इसलिये कि डाक्टर ने बीमारी के बारे में क्यों बता दिया. नजरिया कुछ ऐसा ही नहीं लगता.
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