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शुक्रवार, 30 मार्च 2012

पाक और आतंक

     बढ़ते हुए वैश्विक आतंक के ख़तरे पर विचार करने वाली अमेरिकी उपसमिति से एक बार फिर से पाक के हर तरह के आतंक में लिप्त होने की पुष्टि की है बल्कि इस बार इस उपसमिति की रिपोर्ट में यह कहा गया है की पाक को आतंकियों का इस्तेमाल और ख़ासकर भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की लत पड़ चुकी है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है है कि वर्तमान ओबामा प्रशासन भी पाक को इससे दूर कर पाने में असफल ही रहा है. पाक के लिए अमेरिका जिस तरह की नीतियां निर्धारित करता रहता है उसमें पाक कभी भी इस तरह के आतंक को बढ़ावा देने से नहीं चूकने वाला है क्योंकि केवल अमेरिका का समर्थन ही उसे विश्व के अन्य देशों के ख़िलाफ़ इस तरह से सक्रिय होने के लिए प्रेरित करता रहता है. अमेरिका की नीतियों में जिस तरह से दोहरा रवैय्या अपनाया जाता है उसके बाद पाक क्या कोई भी अन्य शातिर देश उसके इस लचीलेपन का लाभ उठाने में नहीं चूकना चाहेगा ? एक तरफ़ तो आज भी अमेरिका उसे आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई में विश्वसनीय और महत्वपूर्ण सहयोगी करार देता है तो वहीं दूसरी तरफ़ वह उसकी आतंक में खुली संलिप्तता को अनदेखा करता रहता है. आज अगर अमेरिका अपनी आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई में उतना सफल नहीं है जितना उसने प्रयास किये हैं तो उसके पीछे केवल अमेरिका की दोहरी नीति ही है और आने वाले समय में पाक के समर्थन से चरमपंथी अमेरिका के हितों को पूरी दुनिया में चोट पहुँचाने का प्रयास करने में लगे हुए हैं.
          अब यह सही समय है कि अमेरिका इस तरह के रिपोर्टों को केवल बनवाने का काम करने से इन पर कुछ करने के बारे में भी सोचना शुरू करे क्योंकि जब तक इन पर पूरी तरह से अमल नहीं किया जायेगा तब तक किसी भी स्थिति में वैश्विक आतंक से निपटा नहीं जा पायेगा. इस पूरे परिदृश्य को इस तरह से भी देखने की आवश्यकता है कि जब तक अमेरिका दूसरे देशों के अंदरूनी मामलों में टांग अड़ाने की अपनी पुरानी आदत को नहीं बदलेगा तब तक इस तरह की परिस्थितियों में कोई विशेष अंतर नहीं आने वाला है ? आज अमेरिका अपने लम्बे समय के आर्थिक और सामरिक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए पूरी दुनिया में कहीं न कहीं किसी न किसी से संघर्ष की मुद्रा में दिखाई देता उसे आज भी यही लगता है कि वह दुनिया की एकमात्र शक्ति है पर साथ ही वह यह भूल जाता है कि जब किसी के पास अधिक शक्ति होती है तो समझदारी से निर्णय लेने के लिए उस पर ही दबाव भी होता है पर अमेरिका केवल अपनी शक्ति के दम पर कुछ भी करना चाहता है जबकि आज दुनिया में स्वाभिमान बहुत जाग चुका है और विभिन्न देशों की जनता अपनी सरकारों से सवाल पूछने की हिम्मत जुटाने लगी है जिससे अमेरिका के पिट्ठू शासकों के लिए अब सत्ता में बने रहना कठिन होता जा रहा है ?
       अब समय है कि आतंक पर रिपोर्ट जारी करने के स्थान पर अमेरिका वास्तव में कुछ ठोस काम करने के बारे में सोचना शुरू करे क्योंकि जब तक उसकी सोच नहीं बदलेगी तब तक पूरी दुनिया में उसके बारे में बनी हुई धारणा नहीं बदलेगी ? आज केवल पाक ही नहीं वरन कई ऐसे देश हैं जो अमेरिका के चलते कुछ भी करने में लगे हुए हैं वे किसी भी तरह के अंतर्राष्ट्रीय कानून और अपील से अपने को ऊपर मानने लगे हैं ? अब अगर अमेरिका इस तरह की रिपोर्टें सार्वजनिक करता है तो वह दुनिया को क्या सन्देश देना चाहता है आज केवल अमेरिका को आतंक के बारे में एक तरह की नीति पर अमल करना चाहिए क्योंकि वास्तविक आवश्यकता और किन्हीं अन्य कारणों से प्रेरित अलगाव की मांग को एक तराज़ू में नहीं तौला जा सकता है ? किसी देश को क्या चाहिए यह अमेरिका कैसे तय कर सकता है जबकि उसे ख़ुद ही यह नहीं पता होता है कि वह जो कर रहा है वह क्या उसके देश की ज़रुरत है भी या नहीं ? अब अमेरिका को पाक के बारे में सही ढंग से सोच कर फैसला लेना ही होगा क्योंकि किसी सही फैसले के अभाव में केवल आँख मूंदकर पाक जैसे देश को साथ में रखने का खामियाज़ा एक बार अमेरिका बड़े स्तर पर भुगत चुका है. अब भी अगर उसे सही और ग़लत में अंतर नहीं दिखाई देता है तो फालतू में ऐसी रिपोर्टें जारी करके वह दुनिया को क्या दिखाना चाहता है ?          
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