देश में शिक्षा का स्तर किस हद तक गिरता जा रहा है इसका ताज़ा उदाहरण मुरादाबाद यूपी के कुछ स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली कुछ पुस्तकों में देखने को मिला है. नई दिल्ली के गुरुकुल पब्लिकेशन्स द्वारा छापी गयी मारल एजुकेशन की कक्षा ८ की पुस्तक में राष्ट्रीय ध्वज को ५ जगहों पर उलटे रंगों में दिखाया गया है और एक अन्य प्रिज्म हॉउस पब्लिकेशन्स की हिंदी की किताब में "ब" से "बम" और "च" से "चाकू" पढ़ाया जा रहा है. इस तरह की किताबों को स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है और इन स्कूलों के प्रबंधकों द्वारा यह भी नहीं देखा जा रहा है कि आख़िर इस तरह की शिक्षा किस तरह की पीढ़ी को तैयार करने में लगी हुई है. अभी तक स्कूलों में पुस्तकें निर्धारित करने के बारे में जो कुछ भी होता था उस पर विद्वानों की समितियां ही निर्णय लिया करती थीं पर आज स्कूलों में केवल प्रबंधकों की मनमानी ही चलने लगी है और वे प्राथमिक शिक्षा के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों से किसी भी तरह से सेटिंग करके अपनी मनमानी किताबें चलवाते रहते हैं. इस पूरे मामले में केवल आर्थिक लाभ को ही आगे रखकर देखे जाने से इस तरह की समस्याएं सामने आ रही हैं. अब शिक्षा को इस आर्थिक लाभ के चंगुल से बचाने का काम करने की दिशा में कुछ ठोस करने का समय आ गया है वरना इस तरह की घटनाएँ आम होती जायेंगीं.
आज देश में शिक्षा के अधिकार की बात हो रही है और उसमें भी रोज़ ही नए नए पेंच सामने आ रहे हैं जिससे यह सब पता चलता है कि एक ज़माने में शिक्षा का प्रचार प्रसार करने वाले सभी लोग नि:स्वार्थ भाव से इस काम को किया करते थे पर आज हर जगह पैसों का खेल प्रभावी होने के कारण इस तरह की विसंगतियां तो दिखाई ही देंगीं. किसी भी ठीक ठाक छात्र संख्या वाले स्कूल से किताब छापने वालों का सट्टा रहता है और मोटा कमीशन देकर वे अपनी किताबें स्कूलों में लगवाते रहते हैं और जब केवल पैसा कमाना ही स्कूलों और प्रकाशकों को अच्छा लग रहा है तो गुणवत्ता कहाँ से आएगी ? इस तरह की पुस्तकें आख़िर किस तरह से बच्चों के हाथों में पहुंची यह भी चिंता का विषय है क्योंकि पुस्तकें छापने के लिए शिक्षकों की एक टीम होनी चाहिए जो उसके लिए पाठ्यक्रम के अनुसार गुणवत्ता का ध्यान रखते हुए विषय का चयन होने के स्थान पर यहाँ पर केवल कंप्यूटर पर ही बैठकर पुस्तकें बनायीं जा रही हैं. जिस मानसिकता के व्यक्ति ने इन पुस्तकों को बनाया है वह देश को पीढ़ी को बम और चाकू में ही उलझाना चाहता है. स्कूलों में पाठ्यक्रम निर्धारण करने के लिए भी समितियां होनी चाहिए पर आज प्रबंधकों की मनमानी के चलते और पैसे ले लेने के कारण कोई इस मानक का पालन ही नहीं करना चाहता है. इस तरह के माहौल में शिक्षकों के पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं होता है पर इस मामले में उन्होंने ने भी इस तरह की ग़लती की तरफ संभवतः प्रबंधकों का ध्यान आकृष्ट नहीं कराया ?
भविष्य में इस तरह की गलतियाँ फिर से न होने पायें इसके लिए सरकार को पाठ्यक्रम सख्ती से निर्धारित करना ही होगा क्योंकि इस तरह की मनमानी करके किसी को कुछ भी पढ़ाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. इसके लिए सबसे अच्छा यह रहेगा कि स्कूलों को मान्यता देते समय इस बात की शर्त भी रखी जाये कि वे राज्य सरकारों के शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित पुस्तकों के अतिरिक्त कुछ भी अलग से नहीं पढ़ा सकते हैं और इस नियम की अवहेलना करने पर स्कूलों को मान्यता रद्द करने के नोटिस के साथ विद्यार्थियों की संख्या के अनुसार आर्थिक दंड भी वसूलने की तरफ जाना चाहिए जिससे इन स्कूलों पर गुणवत्ता परक शिक्षा देने के लिए कुछ दबाव तो बन सके ? एक तरफ सरकार शिक्षा में असमानता को दूर करने के लिए कदम उठा रही है वहीं राज्यों से मान्यता पाए इस तरह के स्कूल अपनी मनमानी करके इस असमानता की खाई को और चौड़ा करने में लगे हुए हैं ? देश में कुछ ऐसा समय आ गया है कि बिना दंड के कोई भी कुछ नहीं करना चाहता है इसलिए अब शिक्षा विभाग को भी इस तरह की दंडनीति बनानी ही होगी जिससे आने वाले समय में कोई भी इस तरह से कुछ भी मनमानी न कर सके और अगर कोई फिर भी ऐसा करता है तो उसे आर्थिक दंड चुकाना ही पड़े. जब तक केवल आर्थिक लाभ से ही हर बात को देखा जायेगा तब तक ऐसी घटनाएँ सामने आती ही रहेंगीं और इनसे बचने के लिए राज्यों के शिक्षा विभागों को कुछ अलग हटकर पाठ्यक्रमों की नियमित जांच भी करने के बारे में सोचना ही होगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
नई दिल्ली के गुरुकुल पब्लिकेशन्स द्वारा छापी गयी मारल एजुकेशन की कक्षा ८ की पुस्तक में राष्ट्रीय ध्वज को ५ जगहों पर उलटे रंगों में दिखाया गया है और एक अन्य प्रिज्म हॉउस पब्लिकेशन्स की हिंदी की किताब में "ब" से "बम" और "च" से "चाकू" पढ़ाया जा रहा है
जवाब देंहटाएंबहुत शर्म की बात है