मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 29 अप्रैल 2012

डीज़ल की कारें ?

                      पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की संसद की स्थायी समिति ने जिस तरह से डीज़ल से चलने वाली करों पर उपकर लगाने की बात कही है उस से देश को डीज़ल पर दी जाने वाली सब्सिडी के बाद भी होने वाले घाटे को पूरा करने में कोई मदद नहीं मिलने वाली है क्योंकि केवल एक बार इस तरह से उपकर लगाकर सरकार उस कार के १५ वर्षों में उपभोग में लाये जाने वाले डीज़ल से होने वाले घाटे को किस तरह से पूरा करेगी यह अभी तक नहीं स्पष्ट है ? पेट्रोलियम क्षेत्र में होने वाले घाटे को पूरा करने के लिए जिन उपायों को करना आवश्यक है वह राजनैतिक दबाव के कारण किया जाना संभव नहीं है और इस तरह के तात्कालिक उपाय करके कुछ लोगों को डीज़ल की कारें खरीदने से भले ही रोका जा सके पर इससे समस्या का स्थायी हल निकालने में कोई मदद नहीं मिलने वाली है. किसी भी तरह से अब यह देश में यह सभी नहीं चलने वाला है क्योंकि जब तक देश में सही नीतियों का अभाव रहेगा इस तरह की समस्याएं देश का पीछा नहीं छोड़ेंगी.
         इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए देश में एक ठोस नीति की आवश्यकता है पर हमारे नेता जिस तरह से हरकतें करते रहते हैं उसके बाद यह असंभव ही लगता है कि देश में इस बारे में कुछ सही कदम उठाये जाने वाले हैं क्योंकि जब आर्थिक दृष्टि से विचार किया जाता है तो सभी को यह लगता है कि इस तरह के कदम उठाने से उनके वोट कम जाने वाले हैं ? ऐसी स्थिति में एक बार भारी उपकर लगाने के स्थान पर प्रति वर्ष कुछ धनराशि लेने का नियम बनाया जाना चाहिए इससे जहाँ लोगों का ध्यान वास्तव में इन्हें खरीदने से हटेगा और जल्दी ही डीज़ल के मूल्य को भी बाज़ार के मूल्यों के अनुसार निर्धारित करने की नीति बन दी जानी चाहिए. इससे जहाँ डीज़ल के उन्नत इंजन बनाने के लिए देश में चलने वाले अनुसंधान में रूकावट नहीं आएगी वहीं दूसरी तरफ इस प्रौद्योगिकी का निरंतर विकास होता रहेगा साथ ही डीज़ल के मामले में देश भी पिछड़ने नहीं पायेगा. देश की संसद में काबिल लोगों की कमी नहीं है फिर भी जब कोई कड़े निर्णय देश हित में लिए जाने का समय आता है तो ये सभी अपनी क्षमता और देश के दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखकर कुछ भी नहीं कर पाते हैं.
         अब समय आ गया है कि देश के हित को ध्यान में रखते हुए एक दीर्घकालिक नीति बनायीं जाने की आवश्यकता को समझा जाये और उसके अनुसार नीतियों के निर्धारण की तरफ बढ़ा भी जाये यह समस्या किसी एक दल या सरकार की नहीं है बल्कि पूरे देश की है. विश्व में पेट्रोलियम पदार्थों की लगातार बढ़ती कीमतों के बीच देश की अर्थव्यवस्था को सँभालने की ज़िम्मेदारी भी है क्योंकि अगर अब यह कदम नहीं उठाया गया तो देश में पेट्रोलियम पदार्थों पर की जाने वाली राजनीति करने की स्थिति नेताओं के हाथ में लम्बे समय तक नहीं रहने वाली है ? अब यह तय करना देश के राजनैतिक दलों के हाथ में है कि वे केवल आने वाले कुछ चुनावों में अपने लाभ को देखकर ही नीतियां बनाना चाहते हैं या फिर देश के हित में लम्बे समय तक काम करने वाली नीतियां उनकी प्राथमिकता में हैं ? समय किसी की प्रतीक्षा नहीं किया करता है और एक बार समय निकल जाने पर उसे लौटाया भी नहीं जा सकता है. अब यह तय करने का अंतिम समय ही है क्योंकि इसके बाद देश में यह संकट एक रोग का रूप ले लेगा और चाहते हुए भी कोई दल इस दलदल से बाहर नहीं निकाल पाने में सफल नहीं हो पायेगा.           
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