मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

राज्यपाल ग़ैर राजनैतिक ?

      उत्तराखंड के मनोनीत राज्यपाल अजीज़ कुरैशी के नेहरु गाँधी परिवार की वफादारी पर राज्यपाल पद मिलने के बयान पर जिस तरह राजनैतिक हल्ला मच रहा है उससे लगता है कि जैसे पहली बार किसी को किसी राजनैतिक विचारधारा का समर्थक होने पर यह पद दिया गया है ? देश में राज्यपाल और राष्ट्रपति के पद संवैधानिक माने जाते हैं और इन पदों पर बैठे हुए लोगों से यह आशा की जाती है कि वे अपनी दलगत प्राथमिकता पर देश के हित को प्राथमिकता देंगें और कुछ वर्षों पहले तक राज्यपालों के पद का केन्द्रीय सरकारें दुरूपयोग किया करती थीं उसके बाद तो इस पद पर राजनैतिक होने का ठप्पा लगा ही रहता था. पिछले कुछ वर्षों से राजनैतिक अस्थिरता में जिस तरह से राज्यपाल की भूमिका को सीमित किया गया है उसके बाद इस पद की गरिमा कुछ बढ़ी ही है. कुरैशी ने वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं कहा है जो कहीं से भी ग़लत हो पर उन्होंने वह कह दिया है जो आज तक सभी जानते हुए कभी भी कहने से परहेज़ किया करते थे ? देश में इस तरह की खोखली राजनैतिक शुचिता का खेल नेता लोग कब तक खेलते रहेंगें क्या देश के सामने अन्य मुद्दे नहीं बचे हैं जिससे हमारे राजनैतिक दल इस तरह के अनावश्यक बयानों को भी तूल देने लगे हैं.
          क्या देश में संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के सही ढंग से अनुपालन में किसी भी राजनैतिक दल ने सत्ता में होते हुए कुछ सोचा है ? अब देश का कोई दल यह नहीं कह सकता है कि उसने सत्ता नहीं देखी है पर साथ ही वह यह कभी भी नहीं कर सका जिससे देश के लिए अच्छे, काबिल और कर्मठ लोगों की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता ? जब हर काम करने के लिए एक योग्यता होनी आवश्यक है तो किन कारणों से आज तक देश के राजनेता कैसे हों इस बारे में कुछ भी क्यों नहीं किया गया है ? देश में जब निचले स्तर पर काम करने वाले लोगों के लिए भी न्यूनतम योग्यता निर्धारित है तो फिर इतने बड़े स्तर पर काम करने वालों के लिए कुछ भी क्यों नहीं निर्धारित किया जा रहा है ? क्या देश में राजनीति इतनी स्वार्थी है कि वह देश हित के बारे में सोचना ही नहीं चाहती है और क्या कारण है कि सभी दल इस दलदल में घुसकर एक दूसरे पर कीचड़ उछालकर बहुत खुश होते रहते हैं ? क्या देश में काबिल लोगों की इतनी कमी हो गयी है कि संवैधानिक पदों के लिए भी जुगाड़ से लोग तलाशे जाने लगे हैं ? जिन लोगों पर विपरीत  परिस्थिति
यों में देश के लिए रास्ता चुनने का दायित्व होता है वे केवल व्यवस्थागत हानि लाभ के समीकरणों से ही चुने जाएँ तो इससे देश का भला कैसे हो सकेगा ?
     अब इस बारे में सोचने का समय आ गया है कि इस तरह के संवैधानिक पदों पर केवल जुगाड़ के साथ काम करने वाले लोगों के स्थान पर काबिल लोगों में से लोगों के चुनाव की कोई प्रक्रिया निर्ध्रारित की जाये और सभी दल मिलकर देश की आवश्यकता के अनुसार काम करने में सक्षम लोगों को राज्यपाल के पद के लिए बनाये गए एक पैनल में रखना शुरू करें और आवश्यकता होने पर उसमें से ही चुनकर किसी को किसी प्रदेश में राज्यपाल बनाकर भेजा जाये. पर आज अपने पुराने लोगों को सत्ता का सुख दिलवाने के लिए ही राज्यपाल के पदों को भरा जाता है और उनसे निष्पक्ष होकर काम करने की उम्मीद लगायी जाती है जो कि किसी भी तरह से पूरी नहीं हो सकती है. यह देखा जाना चाहिए कि देश के विभिन्न राज्यों की क्या आवश्यकताएं हैं और उनके अनुसार ही पैनल में नाम शामिल किये जाने चाहिए, जिन प्रदेशों में कानून व्यवस्था की कोई समस्या नहीं है वहां पर कोई भी राजनेता चल सकता है पर विशेष परिस्थितियों से जूझ रहे कुछ राज्यों में अगर राज्यपाल सुरक्षा बलों और सेना से होते हैं तो उनसे इस स्तर पर भी निपटने में राज्य सरकारों को मदद मिल सकती है. अपने लोगो को कहीं भी सेट करने की चाह रखने वाले लोगों को अगर इस तरह के पदों पर बैठाया जा ही रहा है तो कुरैशी के बयान पर इतना बवाल मचाने की आवश्यकता ही क्या है ?           
 

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1 टिप्पणी:

  1. sahi kah rehe ho aap ,ye accha hai talve chato aur uper paucho ,kurasi sahab ne bol diya is liye bawal hai ya kistne apne dam se aage hai apne andr bhi dekhe

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