२जी की विवादित आवंटन प्रक्रिया के बाद जिस तरह से ट्राई ने अपनी सिफारिशें की हैं और उसके बाद टेलिकॉम उद्योग जगत में गहरी चिंता जताई जा रही है उस पर विचार करने के बारे में लगता है कि सरकार ने भी मन बना लिया है. दूरसंचार आयोग ने हाल में ट्राई द्वारा घोषित की गयी नयी आवंटन नीति के बारे में जिस तरह से स्पष्टीकरण मांगने का फैसला किया है उससे यही लगता है कि अभी जिन दरों का प्रस्ताव किया गया है वे केवल विचार के स्तर पर ही हैं और इस पर गहरे मंथन के बारे में सरकार ने भी कोशिशें करने का फैसला लिया है. देश में जिस तरह से टेलिकॉम उद्योग ने अपने पैर फैलाये उसके बाद यह देश का तेज़ी से बढ़ता हुआ उद्योग बन गया है उसके बाद इससे जुड़े हर पहलू पर अधिक ध्यान देने की ज़रुरत है क्योंकि आने वाले समय में भारत की तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था को सँभालने के लिए जिस सूचना तकनीक का राजमार्ग देश को चाहिए होगा वह भी इन नीतियों से ही निकलेगा. जिन परिस्थितियों में मोबाइल के लिए पहले आओ पहले पाओ की नीति बनायीं थी आज के परिदृश्य में वह पूरी तरह से बदल गयी हैं एक समय सरकार को यह चिंता थी कि पता नहीं इस उद्योग का देश में कैसे विकास होगा पर आज जब यह उद्योग भारत में सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ बन गया है तो उसके बारे में नए निर्णय और नीतियां बनाये जाने की आवश्यकता है.
देश में सार्वजानिक क्षेत्र की कम्पनी भारत संचार निगम लिमिटेड के पतन की कहानी भी इसी से जुड़ी हुई है क्योंकि जब सरकार ने देश भर में लाइसेंस जारी किये तो उसके तहत सभी सेवा प्रदाताओं के लिए देश के दूर दराज़ के क्षेत्रों तक यह सेवाएं पहुँचाने के लिए एक तरह का समझौता था पर इन निजी सेवा प्रदाताओं ने इस नियम का पालन नहीं किया है और आज भी अपनी सभी आधुनिक सेवाएं केवल बड़े शहरों में ही देना चाहते हैं और दूर दराज़ के क्षेत्रों में अपनी पहुँच बढ़ाने के बारे में वे कुछ करना भी नहीं चाहते हैं ? इससे जहाँ इन कम्पनियों का लाभ अधिक हो रहा है और वे अपनी जिम्मेदारियों से भी जी चुरा रही हैं. संचार निगम के लाभ वाले क्षेत्रों में इनका दबाव बनता जा रहा है और वह लगातार पिछड़ने वाली कम्पनी बनती जा रही है. इस तरह से जहाँ एक तरफ संचार निगम बड़े शहरों में अपनी नीतियों के कारण और कुछ अन्य कम्पनियों द्वारा नियमों की अनदेखी किये जाने से आज बड़े घाटे की तरफ बढ़ रहा है वहीं निजी कम्पनियों का लाभ लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इस स्थिति में सभी निजी कम्पनियों को करार की शर्तों के बारे में याद दिलाने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक सभी मिलकर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में शामिल नहीं होंगें तब तक सभी का पनप पाना आसान नहीं होगा और आने वाले समय में कुछ ऐसा हो जायेगा कि सार्वजनिक क्षेत्र की संचार निगम या तो घाटे का शिकार हो जाएगी या फिर उसके बिकने का रास्ता खुल जायेगा.
सरकार को नीतियां कुछ ऐसी बनानी चाहिए जिससे सभी पक्षों को काम करने के समान अवसर मिलते रहें और उस स्थिति में अगर कोई कम्पनी अपने को ठीक से नहीं चलती है तो वह अवश्य ही मैदान से बाहर हो जाएगी. इस स्थिति में सरकार क्या कर सकती है पर सरकार के जिम्मे जो काम देश और संविधान ने सौंपा है उसके बारे में उस दृढ़ता से विचार करने की ज़रुरत है. आज दूरसंचार क्षेत्र में इतने बड़े घोटाले के बाद से संचार निगम की प्रगति पूरी तरह से रुकी हुई है उससे संचार निगम को बहुत घाटा हो रहा है. जो कुछ हो चुका है उसको पीछे छोड़कर नयी नीतियां तुरंत बनायीं जानी चाहिए जिससे संचार निगम को आज भी अपनी स्थिति सुधरने का अवसर भी मिल सके ? किसी भी नीति को किसी भी दबाव में ऐसा नहीं बनने दिया जाना चाहिए जिसका असर सीधे आम उपभोक्ताओं पर भी पड़े. नयी कम्पनियों ने जिस तरह से बाज़ार में आते ही प्रतिस्पर्धा का नया युग शुरू किया था उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पुरानी कम्पनियां कभी भी नहीं चाहेंगीं कि कोई भी नयी कम्पनी बाज़ार में बची रहे ? अगर पहले आओ पहले पो की नीति २००८ में ग़लत थी तो वह हमेशा ही ग़लत रही है इस लिए नयी दरों का निर्धारण करते हुए पुरानी कंपनियों से भी इस अंतर को वसूला जाना चाहिए जिससे उपभोक्ता भी बचे रहें और पुरानी कम्पनियों को आने वाले समय में मनमानी करने का अवसर भी न मिले.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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