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सोमवार, 11 जून 2012

कुरैशी का कार्यकाल

    मुख्य चुनाव आयुक्त पद से रविवार को रिटायर होने के समय एस वाई कुरैशी ने जिस तरह से पेड़ न्यूज़ को संज्ञेय अपराध बनाये जाने की आशा जताई उससे इसके ख़तरे के बारे में आम लोगों को जागरूक होना भी ज़रूरी है क्योंकि जिस तरह से पेड़ न्यूज़ के मामले ने पिछले चुनावों और अन्य चुनावों में सुर्खियाँ बटोरीं उसके बाद इस मसले पर कड़े क़दम उठाये जाने की आवश्यकता है. अब ही तक इस तरह की स्थिति में आयोग के पास केवल नोटिस देने का ही अधिकार है और इसे यदि संज्ञेय अपराध घोषित कर दिया जाता है तो चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी इसे दूर ही रहेंगें.  अपने ६ वर्षों के कार्यकाल में कुरैशी को कई बार सरकार और अन्य लोगों से आलोचना भी झेलनी पड़ी जिसके बाद भी उन्होंने चुनाव सम्बन्धी सुझावों के बारे में अपनी राय को जनता के सामने रखना बंद नहीं किया. असल में टी एन शेषन के बाद चुनाव योग को अपनी शक्ति का एहसास हो गया की उसके पास चुनाव के समय कितने अधिकार होते हैं पर उससे पहले आयोग भी सरकार के दबाव में ही काम किया करता था क्योंकि संवैधानिक रूप से वह कानून मंत्रालय के अंतर्गत ही आता है फिर भी शेषन ने इस सोये हुए आयोग को झकझोर कर पूरे राजनैतिक तंत्र और देश को इसकी अहमियत भी बता दी थी.
         देश को आज भी जितने चुनाव सुधारों की आवश्यकता है उस तेज़ी से वह नहीं हो पा रहे हैं जिसके लिए कहीं न कहीं हमारा राजनैतिक तंत्र ही दोषी है फिर भी इन परिस्थितियों में जिस तरह से आयोग अपने काम को करता है वह प्रशंसनीय है क्योंकि समय समय पर सरकारें अपने हितों को साधने के लिए चुनाव के दौरान भी कुछ भी कहने लगती हैं जिससे आयोग का कम और भी मुश्किल हो जाता है ? आयोग को देश के लिए जिन सुधारों की आवश्यकता है उन्हें बिना किसी विलम्ब के लागू किया जाने की आवश्यकता है क्योंकि अब उनके बिना राजनैतिक लोगों पर काबू बनाये रखने में आयोग को मुश्किलें ही होने वाली हैं जिस तरह से नेताओं में कानून को धता बताने की परंपरा विकसित हो रही है उस स्थिति में अब देश को दो दशकों से लंबित चुनाव सुधारों को तत्काल ही लागू करने की आवश्यकता है. कोई भी कानून समय के अनुसार परिवर्तन मांगता है और चुनाव जिस पर देश के लोकतंत्र की नींव ही पड़ी हुई है उसमें ही अगर समय रहते बदलाव नहीं किये जाएँ तो कोई भी आयोग या संस्था अपने कर्त्तव्य का पुराने कानून के अनुसार कब तक अनुपालन कर सकती है ?
     आदर्श चुनाव आचार संहिता को जिस तरह से वैधानिक अधिकार दिए जाने की बात हो रही है उससे चुनाव आयोग के सुधारों की मंशा पर पानी फिरने वाला है इसलिए इस तरह के किसी भी कानून की कोई आवश्यकता नहीं है. आज चुनाव आचार संहिता के अनुपालन में कोई भी शिकायत मिलने पर आयोग सीधे ही सम्बंधित व्यक्ति को नोटिस जारी करके उसका जवाब मांगता है और उससे संतुष्ट होने पर आरोप के बारे में अपना फैसला सुनाता है अगर इसे कानूनी जामा पहना दिया गया तो जगह जगह आचार संहिता की धज्जियाँ उड़ायी जाने लगेंगीं और किसी भी परिस्थिति में कोई भी नेता आयोग के भय से अनैतिक कार्य करने से नहीं चूकेगा क्योंकि तब इन शिकायतों का फ़ैसला आम कोर्टों में होगा और तब तक चुनाव संपन्न हो जायेगा. अभी प्रत्याशियों के सामने आयोग के डंडे का डर रहता है और उससे बचने के लिए वे आयोग से बिना शर्त माफ़ी भी मांग लेते हैं पर जब उन्हें पता होगा कि आयोग उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है तो वे भी किसी कानून को मानने से इनकार करने लगेंगें और वह स्थिति देश के लिए घातक ही होने वाली है क्योंकि तब प्रत्याशी अपने अनुसार कुछ भी बोल कर वोट हासिल कर लेंगें और जब तक कोर्ट से फ़ैसला आएगा तब तक वे अपना कार्यकाल ही पूरा करने वाले होंगें तो इस तरह के कानूनों से देश का क्या भला होने वाला है जब वे देश की संवैधनिक संस्था को ही कमज़ोर करने के काम आने वाले हों ?

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