मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 20 जून 2012

४९८-अ का दुरूपयोग

          १९८३ में दहेज़ उत्पीड़न के मामलों में महिलाओं को संरक्षण देने के लिए बनाई गयी धारा ३९८-अ के दुरूपयोग को रोकने के बारे में केंद्र सरकार जल्दी ही कोई निर्णय ले सकती है जिसमें इस कानून के दुरूपयोग और दुष्परिणामों पर विचार करने के बाद विधि आयोग ने केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट भेजी है जिसके अनुसार अब केंद्र सरकार इस मसले पर कोई फैसला जल्दी ही ले सकती है. इस कानून के दुरूपयोग के बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से ध्यान देने को कहा था जिसके बाद ही सरकार ने इस पर विधि आयोग से रिपोर्ट मांगी थी. अभी तक इस धारा के लगाये जाने के बाद चाहकर भी पुलिस या अन्य कोई किसी तरह की मदद नहीं कर सकता है क्योंकि इस कानून के प्रावधान इतने अधिक सख्त हैं कि किसी भी तरह से किसी भी छूट की कोई गुंजाईश नहीं रह जाती है. इस कानून में स्थानीय सामाजिक लोगों की एक समिति होनी चाहिए जो इस तरह के मामलों में अपनी रिपोर्ट से भी कोर्ट को अवगत कराये जिसके बाद ही मुक़दमा चलाने की अनुमति कोर्ट द्वारा दी जाये और जब तक इस समिति कि रिपोर्ट नहीं आ जाती है तब तक पीड़िता द्वारा जिनके विरुद्ध शिकायत की गयी है उन्हें पुलिस अभिरक्षा में ही रखा जाये जिससे वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके समिति के लोगों को प्रभावित करने का काम न कर सकें. 
    इस तरह के कानून में इतने सख्त प्रावधान सिर्फ़ इसलिए ही किये गए थे कि उनकी मदद से कोई भी महिला अपने पर होने वाले दहेज़ सम्बन्धी अत्याचारों से अपने को सुरक्षित कर सके पर जिस तरह से छोटे छोटे मसलों में इस कानून का दुरूपयोग किया जाने लगा उसके बाद यह पूरी स्थिति ही उलट गयी सी लगती है और पूरे देश में बहुत सारे ऐसे मामले भी हुए हैं जिनमें इस कानून का खुले आम उल्लंघन किया गया है पर पुलिस के सामने इस स्थिति में कानून का अनुपालन करने के अलावा कोई रास्ता शेष नहीं रह जाता है क्योंकि पुलिस की कार्यवाही धीमी होने से पीड़ित महिला की जान पर भी बन सकती है. ऐसी स्थिति में इस कानून के बारे में पुलिस पर दोनों तरफ़ का ही दबाव होता है क्योंकि अगर वह चुप रहती है तो पीड़िता प्रभावित होती है और सच जानते हुए अगर वह कार्यवाही करती है तो निर्दोष लोग जेल जाते हैं. इसलिए इस कानून को कम्पाउन्डेबल बनाने पर विचार किया जा रहा है जिसमे पुलिस के पास सही पक्ष को जानने और बातचीत को जारी रखने के अधिकार मिल सकते हैं.
      यह एक ऐसा कानून है जिसके माध्यम से देश में महिलाओं दहेज़ से जुड़े होने वाले अत्याचारों से काफी हद तक मुक्ति मिल गयी है पर साथ ही इस कानून का जिस स्तर पर दुरूपयोग हुआ है उसे देखते हुए आज इस कानून में कुछ संशोधन की आवश्यकता महसूस की जा रही है. दुःख की बात यह है कि एक आवश्यक और कड़े कानून के देश में इतना दुरूपयोग किया जा चुका है कि अब इसमें कुछ नरमी बरतने की बात भी की जाने लगी जिसका असर उन वास्तविक पीड़ितों के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होने वाला है जिन्हें इस कानून के कारण ही समाज और घर में प्रताड़ना नहीं सहनी पड़ती थी और जब इस कानून में कोई भी संशोधन हो जायेगा तो आने वाले समय में इसका असर सबसे ज्यादा महिलाओं पर ही पड़ने वाला है. अच्छा हो कि इस तरह के मामलों को कोर्ट में ले जाने के साथ ही स्थानीय सामजिक संस्था को भी इसमें दख़ल करने का मौका देना चाहिए जिससे पीड़िता की शिकायत पर मानवीय आधार पर रिपोर्ट तैयार की जा सके और साथ ही दोनों पक्षों की बात भी सुनी जाये जिससे दोषियों को तो कड़ी सजा मिल जाएगी और निर्दोषों को बचाया जा सकेगा. पर इस काम को केवल पुलिस के हाथ में सौंपने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है इसमें सामजिक लोगों की भागीदारी आवश्यक है.  
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1 टिप्पणी:

  1. ''अच्छा हो कि इस तरह के मामलों को कोर्ट में ले जाने के साथ ही स्थानीय सामजिक संस्था को भी इसमें दख़ल करने का मौका देना चाहिए जिससे पीड़िता की शिकायत पर मानवीय आधार पर रिपोर्ट तैयार की जा सके और साथ ही दोनों पक्षों की बात भी सुनी जाये जिससे दोषियों को तो कड़ी सजा मिल जाएगी और निर्दोषों को बचाया जा सकेगा.''
    उम्दा विचार है

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