मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 30 जून 2012

तत्काल नियम और सख्त

               जिस तरह से तत्काल टिकट मिल पाना आम यात्रियों के लिए एक सपने जैसा ही होता चला जा रहा था उस स्थिति में रेलवे ने एक बार फिर से इसके नियमों में बड़े बदलाव करने की घोषणा की है जिससे शायद यात्रियों को कुछ संख्या में इस कोटे के टिकट मिलने लगें पर जितनी बड़ी संख्या में यात्रियों को इन टिकटों की ज़रुरत होती है उस स्थिति को संभाल पाने में ये व्यवस्था पूरी तरह से नाक़ाम साबित हो रही है. जिस तरह से तत्काल कोटे से दलालों के माध्यम से टिकट मिलने का रास्ता कुछ लोगों को पता चल गया था उससे भी इन टिकटों की बिक्री पर असर पड़ने लगा क्योंकि टिकट खिड़की पर बैठे हुए क्लर्कों और दलालों में सांठ-गाँठ होने के कारण तत्काल टिकट कुछ देर में ही बुक हो जाया करते हैं और आम लोगों के लिए इन टिकटों को खरीदना एक सपना जैसा हो गया था. किसी भी नयी व्यवस्था को भी सफल बनाने की ज़िम्मेदारी भी इन क्लर्कों पर ही रहने वाली है पर इनमें से अधिकांश ने अभी तक जिस तरह से अपने काम के साथ न्याय नहीं किया है उस स्थिति में इनसे और क्या आशा की जा सकती है ?
             सबसे पहली बात तो यह की अब तत्काल बुकिंग १० से १२ तक होगी अभी यह सामान्य बुकिंग के साथ ही शुरू होती थी जिससे इसकी वेबसाइट पर अनावश्यक बोझ एकदम से पड़ जाने के कारण भी यह ठीक से नहीं चल पाती थी पर अब दोनों समय अलग अलग होने से यह समस्या भी कम हो जाएगी और कम से कम सुबह ८ बजे जिन लोगों को सामान्य टिकट चाहिए वे इस भीड़ भरे माहौल से बच जायेंगें क्योंकि अभी तक दलालों द्वारा फिट किये गए फ़र्ज़ी लोग ही यहाँ पर खड़े होकर टिकट बुक कराया करते हैं जिससे आम लोगों के लिए खिड़की तक पहुँचने से पहले ही तत्काल टिकट बुक हो जाया करते हैं. क्लर्कों पर ड्यूटी के समय मोबाइल का उपयोग करने पर पाबन्दी लगाने से भी यह समस्या काफ़ी हद तक सुधर जाएगी क्योंकि जो लोग इस गोरख धंधे में शामिल हैं वे काफ़ी काम फ़ोन का माध्यम से ही करा लिया करते हैं. साथ ही बुकिंग खिड़कियों पर निगरानी रखने के लिए कैमरे लगाने की व्यवस्था भी की जा रही है जिससे इन खिड़कियों पर होने वाली किसी भी असामान्य गतिविधि को रोका जा सके. इस तरह के उपाय तभी सफल हो सकते हैं जब इन खिड़कियों पर बैठे हुए लोग अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास करना सीख जाएँ क्योंकि किसी भी व्यवस्था को पूरी तरह से निरापद नहीं कहा जा सकता है.
       इसके साथ ही रेलवे को अपनी सीटों की संख्या में बढ़ोत्तरी करने के बारे में भी विचार करने की ज़रुरत है क्योंकि अभी तक जो कुछ भी चल रहा है वही पुराने ढर्रे पर चलने के कारण भी इसमें कुछ सुधार नहीं हो पा रहा है ? सबसे पहले रेलवे को भीड़ भाड़ वाले मार्ग की कुछ गाड़ियों में प्रायोगिक तौर पर एक एक वातानुकूलित और सामान्य कुर्सी यान लगाने का प्रयास करना चाहिए और जब टिकटों की मारा मारी होती है उस समय इसमें बढ़ोत्तरी भी करने के बारे में सोचना चाहिए. देश की आबादी जिस तरह से बढ़ रही है तो उसके बाद किसी भी परिस्थिति में रेलवे को महत्वपूर्ण मार्ग की हर गाड़ी में अपनी सीट संख्या में इज़ाफा करना ही होगा क्योंकि अगर मांग और आपूर्ति में इतना बड़ा अंतर होगा तो इसमें भ्रष्टाचार के पनपने से रोकने में बहुत शक्ति लगने लगेगी. नियमों में संशोधन करके तत्काल कोटे में केवल कुर्सी यान को ही शामिल किया जाना चाहिए इससे जहाँ एक तरफ बड़ी संख्या में सीटों की उपलब्धता हो जाएगी वहीं सामान्य और तत्काल श्रेणी में अपने आप ही अंतर हो जायेगा. जब ६ सीटों के स्थान पर लगभग ९० सीटें उपलब्ध हो जायेंगीं तो यात्रियों के लिए भी समस्या कम हो जाएगी और साथ ही रेलवे को इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए इतने प्रयास नहीं करने पड़ेंगें. जब दिल्ली से हावड़ा तक युवा एक्सप्रेस केवल बैठने की व्यवस्था के साथ चल सकती है तो दलालों के हाथों मजबूरी में टिकट खरीदने वालों को अगर खिड़की से मिले टिकट के माध्यम से बैठने की व्यवस्था भी मिल जाती है तो यह रेलवे और यात्रियों के लिए अच्छा ही होगा. पर इस तरफ ध्यान देने के स्थान पर रेलवे केवल तात्कालिक उपायों पर ही विचार कर रही है जिससे इस समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं दिखाई दे रहा है.  
   
 


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