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सोमवार, 2 जुलाई 2012

एयर इंडिया और राजस्व

            55 दिनों से चल रही हड़ताल के कारण प्रभावित हुई उड़ानों के भी जिस तरह से जून महीने के पहले २० दिनों  में एयर इंडिया ने अपने राजस्व लगभग ५% की वृद्धि करने में सफलता पाई है उससे यही लगता है कि सही दिशा में किये गए थोड़े प्रयासों से इसकी आर्थिक स्थिति में काफी हद तक सुधार किया जा सकता है. पायलटों की हड़ताल के कारण जहाँ इसकी परिचालन क्षमता १८.५ % कम हुई फिर भी इसने ५ अधिक राजस्व अर्जित करके इस बात के संकेत तो दे ही दिए हैं कि अगर ईमानदारी से और सही नीतियों के साथ इसे चलाया जाये तो कोई कारण नहीं है कि यह हमेशा बीमार उपक्रम ही बना रहे और हमेशा ही सरकार की तरफ आर्थिक मदद के लिए ताकता रहे. एक समय में यह देश की सबसे बड़ी और एक मात्र विश्वसनीय वायु सेवा थी पर समय बदलने के साथ विभिन्न कारणों से इसका परिचालन घाटा बढ़ता ही चला गया और आज यह स्थिति है कि बिना सरकारी संबल और आर्थिक सहायता के यह एक दिन भी उड़ान भर पाने में सक्षम नहीं है.
              अब जिस तरह से इसने अपने को कम संसाधनों के साथ भी प्रतियोगिता में आगे रखने में सफलता पायी है उस स्थिति का अध्ययन करके ही आगे  की नीतियां तैयार की जानी चाहिए जिससे वास्तव में इस सार्वजनिक उपक्रम को भी सही तरह से चलाया जा सके. अभी तक जो भी कमियां या ग़लतियाँ इसके शीर्ष प्रबंधन स्तर पर हुई हैं अब उनको चिन्हित करके उनसे बचने की कोशिशें भी की जानी चाहिए और आगे से इसे केवल चलने के लिए नहीं वरन अच्छी सेवा और अच्छे प्रबन्धन के साथ चलाने का संकल्प लेना चाहिए. अभी तक जिस तरह से ५५ दिनों से इसके पायलट हड़ताल पर हैं और इसकी बड़ी संख्या में उड़ाने प्रभावित हो रही है उसके बाद भी इसने यात्री और राजस्व दोनों मोर्चों पर अपनी स्थिति को सुधारने में सफलता पाई वह उल्लेखनीय है. इस बारे में अब सरकार को जल्दी ही कोई निर्णय लेकर हड़ताली पायलटों को या तो काम से निकाल देना चाहिए या फिर उन्हें बात चीत के ज़रिये फिर से किसी समझौते तक पहुँच कर काम पर वापस लौटने का प्रयास करना चाहिए. अगर इस तरह से दोनों ही पक्ष अपने अपने रुख अपर अड़े रहेंगें तो आख़िर किस तरह से इसे फिर से पटरी पर लाने की कोशिशें कामयाब हो पाएंगीं  ? कम्पनी और देश के हित में अब इस बारे में तुरंत ही कुछ करने की कोशिश करने की आवश्यकता है.
     जिस तरह से कई बार अनिर्णय की स्थिति भी किसी क्षेत्र विशेष के लिए घातक हो जाती है वैसा ही कुछ देश में अब कई जगहों पर हो रहा है. अगर सरकार इन पायलटों को वापस काम पर नहीं ले सकती है तो इन्हें तुरंत सेवा से बर्खास्त करके नयी भर्ती पर ध्यान देना चाहिए और यदि इनसे किसी भी तरह से सम्मानजनक स्तर पर बात हो सकती है तो उसके लिए भी प्रयास किये जाने चाहिए. सरकार के मंत्रियों की सोच में भी बदलाव की बहुत ज़रुरत है पर आज के समय जिस तरह गठबंधन की मजबूरियों के चलते महत्वपूर्ण मंत्रालय केवल इस्तेमाल किये जाने लगे हैं और एक से एक निष्क्रिय लोग महत्वपूर्ण मंत्रालयों को लिए बैठे हैं जिससे निर्णय न लेने की क्षमता के कारण पूरे देश के विकास पर असर पड़ रहा है. गठबंधन अपनी जगह है पर देश और सरकार की ज़रूरतों पर किसी भी तरह की राजनीति आख़िर में देश के लिए बहुत बड़े संकट को ही जन्म देने का काम करने वाली हैं. अब समय की आवश्यकता को देखते हुए संप्रग को एक बार फिर से अपने सीएमपी पर फिर से विचार करना चाहिए और जो बातें ३ वर्ष पहले निर्धारित की गयी थीं उन पर फिर से सार्थक सोच के साथ विचार करने के बारे में सोचना चाहिए. एक सुझाव जो एयर इंडिया के लिए आया था की इसे भी सत्यम की तरह कुछ समय के लिए उड्डयन बाज़ार के विशेषज्ञों की एक समिति को सौंप दिया जाये जिससे वे इसके बारे में सही नीतियां बनाकर इसे फिर से चलने लायक बना सकें.     
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