चुनाव आयोग की एक छोटी सी कोशिश लगता है कि आने वाले समय में देश में शीर्ष प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के नौकरी से रिटायर होने के तुरंत बाद राजनीति में आने की कोशिशों पर अंकुश लगाने का काम करेगी. देश में इस बार जनवरी-मार्च में ५ राज्यों के चुनावों के दौरान आयोग ने यह पाया था कि कुछ राजनैतिक स्वार्थों के चलते नौकरी से हटते ही वरिष्ठ प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों में सरकार के साथ खड़े होने की इच्छा जागृत होती दिखाई देती है जिससे कहीं न कहीं देश के संविधान की उस भावना को ठेस पहुँचती है जिसमें इन अधिकारियों से निष्पक्ष होकर काम करने कि अपेक्षा की गयी है. यह सही है कि नौकरी से रिटायर होने के बाद किसी भी अधिकारी का आम आदमी का दर्ज़ा बहाल हो जाता है और वह कुछ भी करने को स्वतंत्र है पर कई बार इन अधिकारियों द्वारा सरकार में रिटायर होने के बाद भी कोई जुगाड़ वाला पद पाने की लालसा से फैसले लेने में निष्पक्षता नहीं रह जाती है. इस तरह से आयोग ने सबसे पहले इस बात पर ध्यान दिया और सरकार से यह कहा कि वह कोई ऐसा कानून बनाये जिससे इन अधिकारियों के रिटायर होने और राजनीति में जाने में कुछ अन्तराल अवश्य कर दिया जाये.
इस स्थिति से सरकार अनभिज्ञ हो ऐसा भी नहीं है पर जिस तरह से इधर यह चलन बढ़ता ही जा रहा है तो उस स्थिति में अब कुछ ऐसे कदम उठाये जाने आवश्यक हैं जिससे इन अधिकारियों के इस तरह के राजनैतिक झुकाव का लाभ इन दलों को न मिल सके ? इसके लिए कार्मिक मंत्रालय से सरकार ने सुझाव मांगे थे और अव विधि विभाग से इस मसले पर कानूनी राय मांगी गयी है ऐसा नहीं है कि यह सब पहले नहीं होता था पर अब जिस तरह से अधिकारियों का विभिन्न दलों की तरफ झुकाव बढ़ता ही जा रहा है तो अब देश को इस बारे में सोचने की ज़रुरत है क्योंकि इस तरह से लाभ या दबाव में लिए गए फैसले किसी दल के लिए तो अच्छे हो सकते हैं पर वे लम्बे समय में देश प्रशासनिक व्यवस्था को चौपट कर सकते हैं. आज भी अधिकांश अधिकारी रिटायर होने के बाद आराम की जिंदगी गुज़ारना चाहते हैं पर इस जमात में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो सत्ता के इस लोभ को छोड़ नहीं पाते हैं और उनके कारण ही पूरे प्रशासनिक अमले पर लगाम लगाने के लिए इस तरह के कानून की ज़रुरत पड़ रही है.
इस प्रकरण में अधिकारी ही पूरी तरह से दोषी हों ऐसा भी नहीं है क्योंकि इन अधिकारियों के सामने ऐसे विकल्प रखने का काम देश का राजनैतिक तंत्र ही किया करता है जिससे किसी विशेष परिस्थिति में कुछ अधिकारी इनके चंगुल में आ जाते हैं और सरकारों के पास इस तरह के अधिकारियों से अपने मनमुताबिक काम करवाने के रास्ते खुल जाते हैं और नेता लोग इन अधिकारियों को रिटायर होने के बाद अपनी सरकार में कोई पद देकर उनको उपकृत भी कर देते हैं. सरकार में रहते हुए आज विभिन्न राजनैतिक दल जिस तरह का व्यवहार करने लगे हैं उससे देश के प्रशासनिक अधिकारियों के लिए और भी कठिन समस्या उत्पन्न हो गयी है क्योंकि निष्पक्ष रूप से काम करने वाले ईमानदार अधिकारियों की जो फौज आज से २० वर्ष पहले दिखाई देती थी आज वह पूरी तरह से ग़ायब है और इसका नुकसान पूरा देश भुगत ही रहा है क्योंकि नेता-अधिकारी के ख़तरनाक गठजोड़ ने देश की हर कानून सम्मत व्यवस्था को हिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और अगर अब भी इस प्रक्रिया और प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में स्थिति और विकट हो जाने वाली है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस स्थिति से सरकार अनभिज्ञ हो ऐसा भी नहीं है पर जिस तरह से इधर यह चलन बढ़ता ही जा रहा है तो उस स्थिति में अब कुछ ऐसे कदम उठाये जाने आवश्यक हैं जिससे इन अधिकारियों के इस तरह के राजनैतिक झुकाव का लाभ इन दलों को न मिल सके ? इसके लिए कार्मिक मंत्रालय से सरकार ने सुझाव मांगे थे और अव विधि विभाग से इस मसले पर कानूनी राय मांगी गयी है ऐसा नहीं है कि यह सब पहले नहीं होता था पर अब जिस तरह से अधिकारियों का विभिन्न दलों की तरफ झुकाव बढ़ता ही जा रहा है तो अब देश को इस बारे में सोचने की ज़रुरत है क्योंकि इस तरह से लाभ या दबाव में लिए गए फैसले किसी दल के लिए तो अच्छे हो सकते हैं पर वे लम्बे समय में देश प्रशासनिक व्यवस्था को चौपट कर सकते हैं. आज भी अधिकांश अधिकारी रिटायर होने के बाद आराम की जिंदगी गुज़ारना चाहते हैं पर इस जमात में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो सत्ता के इस लोभ को छोड़ नहीं पाते हैं और उनके कारण ही पूरे प्रशासनिक अमले पर लगाम लगाने के लिए इस तरह के कानून की ज़रुरत पड़ रही है.
इस प्रकरण में अधिकारी ही पूरी तरह से दोषी हों ऐसा भी नहीं है क्योंकि इन अधिकारियों के सामने ऐसे विकल्प रखने का काम देश का राजनैतिक तंत्र ही किया करता है जिससे किसी विशेष परिस्थिति में कुछ अधिकारी इनके चंगुल में आ जाते हैं और सरकारों के पास इस तरह के अधिकारियों से अपने मनमुताबिक काम करवाने के रास्ते खुल जाते हैं और नेता लोग इन अधिकारियों को रिटायर होने के बाद अपनी सरकार में कोई पद देकर उनको उपकृत भी कर देते हैं. सरकार में रहते हुए आज विभिन्न राजनैतिक दल जिस तरह का व्यवहार करने लगे हैं उससे देश के प्रशासनिक अधिकारियों के लिए और भी कठिन समस्या उत्पन्न हो गयी है क्योंकि निष्पक्ष रूप से काम करने वाले ईमानदार अधिकारियों की जो फौज आज से २० वर्ष पहले दिखाई देती थी आज वह पूरी तरह से ग़ायब है और इसका नुकसान पूरा देश भुगत ही रहा है क्योंकि नेता-अधिकारी के ख़तरनाक गठजोड़ ने देश की हर कानून सम्मत व्यवस्था को हिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और अगर अब भी इस प्रक्रिया और प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में स्थिति और विकट हो जाने वाली है.
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