मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 8 जुलाई 2012

राजनीति की नियति

        तमिलनाडु में चेन्नई के निकट ताम्बरम वायु सेना केंद्र में श्रीलंका के वायु सैनिकों की ट्रेनिंग सम्बन्धी ख़बरों ने जहाँ राज्य की राजनीति को बिना मतलब ही गरमा दिया वहीं यह भी दिखा दिया कि हमारे देश में नेता लोग केवल वोट बटोरने के लिए कुछ भी करने पर आमादा हो जाते हैं. यह सही है कि श्रीलंका में जो कुछ भी तमिलों के साथ हुआ उसका समर्थन नहीं किया जा सकता है और साथ ही तमिलों ने भी जिस तरह से वहां पर अलगाव वाद पर चलने की कोशिश की थी वह भी सही नहीं थी पर आज के समय में जब दुनिया पिछली बातों को भुलाकर आगे की तरफ देख रही है तो हमारे देश के नेता चाहे वे किसी भी प्रान्त से क्यों न हों कुछ न कुछ ऐसा करते ही रहते हैं जिससे देश की एक अलग तरह की नकारात्मक छवि दुनिया के सामने जाती है. किसी समय में हमने चीन से सीधे कई युद्ध लड़े हैं तो उसका यह मतलब तो नहीं हो सकता है कि हम उस देश के साथ कभी भी कोई अन्य प्रयास नहीं कर सकते हैं ? उन युद्धों के बाद भी आज हम उसके साथ संयुक सैनिक अभ्यास कर रहे हैं और किसी ज़माने में हमारे धुर विरोधी अमेरिका के साथ तो हम आतंक विरोधी अभियान के लिए अपने सैनिकों के साथ लगातार संयुक्त रूप से अभ्यास कर रहे हैं और उसका लाभ भी दोनों देशों को मिल ही रहा है.
        तमिलनाडु में इस बात को जिस तरह से राजनैतिक रूप देने का प्रयास किया गया उसके बाद यही लगता है कि आज इन नेताओं के पास उस सोच की कमी हो गयी है जो भारत जैसे महत्वपूर्ण देश के नेताओं के पास होनी ही चाहिए. लोकतंत्र में कोई भी कभी भी जनता की नज़रों में चढ़कर अपने को आगे ला सकता है पर जब बात देश के सम्मान और देश की अन्तराष्ट्रीय नीतियों की हो तो उस मसले पर केवल और केवल राष्ट्र हित की बातें ही करनी चाहिए. सभी जानते हैं कि तमिल चीतों के उकसावे पर ही श्रीलंका में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी पर एक नौसैनिक ने हमला किया था और बाद में चुनाव प्रचार के दौरान तमिलनाडु में ही उनकी हत्या भी कर दी गयी थी फिर भी देश और दुनिया की ज़रूरतों को समझते हुए आज सोनिया गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष होते हुए भी उनकी ही सरकार श्री लंका के साथ इस तरह की सैनिक साझेदारी को विकसित करने में लगी हुई है क्योंकि जो कुछ होना था वह तो हो चुका है और आने वाले समय में देश की आवश्यकताओं के लिए श्री लंका के साथ इस तरह के सम्बन्ध आवश्यक हैं जिन्हें कुछ पुराने पूर्वाग्रहों के नाम पर पीछे तो नहीं छोड़ा जा सकता है ?
        केवल कुछ तमिल वोट हासिल करने के लिए ही तमिलनाडु में कुछ नेताओं ने इस तरह की बात की और यह अच्छा ही हुआ कि सरकार ने इस तरह की किसी बात को तूल देने के स्थान पर इन सैनिकों को तुरंत ही कर्नाटक के वायु सेना केंद्र में शिफ्ट कर दिया. तमिल नेताओं की मांग है कि श्रीलंका के इन सैनिकों को भारत में कहीं भी ट्रेनिंग न दी जाये जिससे केंद्र सरकार पूरी तरह से असहमत है और उसने अपने स्तर से इनकी ट्रेनिंग सुचारू रूप से पूरी कराने की व्यवस्था भी कर दी है. दक्षिण एशिया में आने वाले समय में चीन और अमेरिका की तरफ से नए और बड़े ख़तरे सामने आ सकते हैं उस स्थिति से निपटने के लिए अगर हमारे रक्षा सम्बन्ध इन पड़ोसियों से ठीक होंगें तो इनके सीमित प्रभाव से भी हमारे हितों को बहुत लाभ मिल सकेगा जिसका आंकलन केंद्र सरकार ने कर ही लिया है. आने वाले समय में अगर हम श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव के साथ अपने संबंधों को अच्छा रखने के प्रयास अभी से नहीं करेंगें तो आने वाले समय में इनमें से किसी भी देश में चीन, पाकिस्तान या अमेरिका आ कर हमारे लिए बड़ा सुरक्षा खतरा बन सकते हैं. नेपाल के साथ हमारे जितने अच्छे सम्बन्ध पहले रहे हैं आज वे उस स्थिति में नहीं हैं फिर भी सरकार उससे सम्बन्ध सुधारने की कोशिश करती जा रही है. देश को रक्षा और सामरिक सहयोग के लिए अपने इन पड़ोसियों की बहुत आवश्यकता है और अब उन्हें केवल बड़े भाई बनकर नहीं समझाया जा सकता है इसलिए उनसे बराबरी का व्यवहार किया जाना ही उचित है.      
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