मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

गुरुद्वारे में नमाज़

          आज जब देश के विभिन्न हिस्सों में जातीय और धार्मिक विद्वेष की ख़बरें सामने आ रही हैं तो उन्हीं ख़बरों के बीच एक ऐसी खबर भी आई जिसे समय रहते समाचार पत्रों में सही जगह नहीं मिल पाई क्योंकि मीडिया को छपने के लिए कुछ सनसनीख़ेज़ सामग्री ही अच्छी लगती है पर देश में भारतीय संस्कृति के अनुपालन में लगे उत्कृष्ट लोगों के बारे में छापना शायद लाभ का सौदा नहीं होता है ? जोशीमठ उत्तराखंड में ईद के दिन नमाज़ अता करने के लिए वहां के गुरुद्वारे के प्रबंधक ने मुसलमानों के लिए गुरुद्वारे के हाल को इस्तेमाल करने के लिए बुलाया क्योंकि नमाज़ अता करने के लिए निश्चित किये गए गाँधी मैदान में बारिश का पानी भरा हुआ था जिससे वहां पर नमाज़ अता नहीं की जा सकती थी. कहने को यह एक छोटी से घटना हो सकती है पर जब देश में म्यांमार और असोम को लेकर बयानबाजी चल रही हो तो ऐसी घटनाएँ यही दिखाती हैं कि भारतीयता से प्रभावित धर्म या मनुष्य के लिए मानव धर्म ही सबसे बड़ा है और उसका अनुपालन करने में भारतीय हमेशा से ही आगे रहते रहे हैं.
         जिस तरह से पाकिस्तान से नेट पर डाले गए कुछ आपत्तिजनक चित्रों आदि से देश के सामाजिक ताने बाने को क्षति पहुँचाने का काम किया गया और बड़ी संख्या में दक्षिण में काम कर रहे या पढ़ रहे लोगों और छात्रों को काल्पनिक भय के कारण पलायन करना पड़ा वह दुर्भाग्य पूर्ण है क्योंकि इस काम को केवल कुछ अफवाहों के आधार पर अंजाम दिया गया था. यहाँ पर यह बात विचारणीय है कि आख़िर देश में बहुत सारी जगहों पर ऐसा सद्भाव हमेशा केवल हिन्दुओं, सिखों या ईसाइयों की तरफ़ से ही दिखाई देता पर जिन मुसलमानों के लिए यह काम किया जाता है उनकी तरफ़ से कभी भी ऐसी कोई पहल नहीं होती है ? आम भारतीय जनमानस में धर्म जीने का दर्शन है पर वह बहुत कम प्रतिशत लोगों के लिए कट्टरता का सबब बनता है इस घटना के बाद जब सभी को इस बात पर विचार करने की ज़रुरत है तो खासकर मुस्लिम समुदाय की तरफ़ से भी ऐसी ही पहल की आवश्यकता है क्योंकि मुस्लिम समुदाय इस तरह के सद्भाव को सामने ला पाने में हमेशा से ही असफल रहता है. ऐसे में समाज के उन चंद तत्वों को मुसलमानों के ख़िलाफ़ कहने को बहुत कुछ मिल जाता है जिससे मुसलमानों पर संदेह करने के कारण सामने आ जाते हैं.
          इस मसले पर किसी भी ब्लॉग, समाचार पत्र में लोगों के कमेन्ट पढ़ने से ही यह पता चल जाता है कि तथाकथित पढ़ा लिखा समाज भी किस तरह से अपने को ही श्रेष्ठ मानता है और अपनी कमियों को छिपाने की कोशिश करता है. सद्भाव की बात करते समय नरेन्द्र मोदी का नाम ज़रूर उछाला जाता है और सार्थक बहस की सारी संभावनाएं दम तोड़ देती हैं फिर इस तरह से सार्थक बहस भी धर्म के नाम पर पीछे छूट जाती हैं और उसके स्थान पर घृणा की बातें आगे आ जाती हैं. पूरी दुनिया में आज मुसलमानों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और पहचान में भ्रम के कारण पश्चिमी देशों में सिख भी निशाने पर रहा करते हैं फिर भी आज कहीं से इस्लाम के उदार चेहरे को दुनिया के सामने लाने का काम नहीं हो रहा है ? यह काम केवल और केवल मुसलमानों की तरफ़ से ही हो सकता है क्योंकि जब भी कोई दूसरा कमियों को बताता है तो वह आपत्तिजनक लगने लगता है. पाक समेत दुनिया भर में मुसलमानों के लिए सबसे सुरक्षित और विकसित होने की जगह भारत के अलावा नहीं है फिर भी यहाँ पर सद्भाव की बातें दिखाई नहीं देती हैं अब यह पूरी तरह से मुस्लिम समुदाय पर है कि वह इस्लाम के उदार चेहरे को सामने लाना चाहता है या फिर से उसे उन लोगों के हवाले ही रखना चाहता है जो मुंबई, लखनऊ में अराजकता फ़ैलाने में ही यकीन रखते हैं ?       
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

5 टिप्‍पणियां:

  1. अराजक तत्व पूरे समुदाय को हाईजैक किये हैं लेकिन उनका मौन समर्थन करने वाले भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते|

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  2. इस्लाम के उदार चेहरे को सामने ka kaam bhi RSS ko hi karna padega.
    musalmaano ke bas ka yh kaam nahi hae.

    कुछ दिन पहले अचानक गायब होकर हड़कंप मचाने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व मुखिया कुप्प सी सुदर्शन ने सोमवार को सुबह भोपाल प्रशासन के सामने मुसीबत खड़ी कर दी। सुदर्शन गुपचुप अपने सुरक्षा दस्ते के साथ ईद की नमाज अता करने चल दिए। प्रशासन को जब इस बात की भनक लगी तो उसके हाथ-पांव फूल गए। भारी मशक्कत के बाद किसी तरह उन्हें मनाकर बीच रास्ते से लौटाया गया।

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  3. सुदर्शन महाराज अगर जा रहे थे तो प्रशासन के हाथ पैर क्यूं फूल गए थे, इस पर भी कोई आलिम -फाजिल विद्वान रोशनी डालेंगे ?

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  4. सुदर्शन महाराज अगर जा रहे थे तो प्रशासन के हाथ पैर क्यूं फूल गए थे, इस पर भी आलिम-फाजिल-विद्वान रौशनी डाल रहे हैं इस पोस्ट पर ?

    देखिए -

    के. सी. सुदर्शन चल दिए मस्जिद

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    1. देख लिया,हालांकि अंदाजा था कि वही पुराना अंदाज होगा - लिंक, ईमान लाना वगैरह वगैरह|
      यही रोशनी है तो वाकई बहुत रोशन रोशन रोशनी है|

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