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सोमवार, 27 अगस्त 2012

गैस चूल्हा और एजेंसी

           द कॉम्पटीशन अपीलेट ट्रिब्यूनल (काम्पैट) के एक ताज़ा फैसले के बाद अब गैस एजेंसी मालिकों के लिए ग्राहक को ज़बरन गैस चूल्हा बेचना आसान नहीं होगा क्योंकि अब यह प्रक्रिया पूरी तरह से अवैध घोषित की जा चुकी है. वैसे ऐसा भी नहीं है की पहले इस तरह का कोई कानून बनाया गया था फिर भी एजेंसी मालिक अपनी मनमर्ज़ी चलाते हुए किस भी ग्राहक को नया गैस कनेक्शन तभी देते थे जब वे इस बात के लिए राज़ी हो जाते थे कि वे एजेंसी से ही चूल्हा भी खरीदेंगें. इस तरह की मनमर्ज़ी के ख़िलाफ़ २००९ में ही एक अंतरिम आदेश के तहत इसे रोक दिया गया था पर ग्राहकों में जानकारी के अभाव में आज भी एजेंसी मालिक ग्राहकों को इस बात के लिए मजबूर करते ही रहते हैं. गैस में सार्वजनिक क्षेत्र की तेल/गैस कम्पनियों को सरकारी संरक्षण और एकाधिकार होने के कारण किसी भी ग्राहक के लिए एजेंसी से ही चूल्हा खरीदना एक मजबूरी बन जाता है क्योंकि बाद में गैस की आपूर्ति के लिए उपभोक्ताओं को उसी गैस एजेंसी पर निर्भर रहना पड़ता है और चाहकर भी उसके पास अधिकांश जगहों पर कोई विकल्प नहीं होता है.
     ताज़ा फ़ैसले में सार्वजनिक क्षेत्र की तेल/गैस विपणन कम्पनियों को भी यह आदेश दिया गया है कि वे भी इस बात को सुनिश्चित करें कि आगे से कोई भी एजेंसी किसी भी ग्राहक को गैस चूल्हा खरीदने के लिए बाध्य न करने पाए क्योंकि इससे उपभोक्ताओं के अधिकारों का हनन होता है और एजेंसी कम दाम वाले चूल्हे को भी ऊंचे दामों में बेचकर मुनाफ़ा कमाने की फ़िराक़ में रहती है. आदेश में एजेंसी पर इस बात को स्पष्ट रूप में लिखने के निर्देश भी दिए गए हैं जिससे आम उपभोक्ताओं को यह पता भी चल सके कि उसके लिए एजेंसी से चूल्हा खरीदना कोई बाध्यता नहीं है. सरकारी तंत्र में इस तरह के आदेशों को आसानी से ठेंगा दिखा दिया जाता है क्योंकि एजेंसी कई बार ग्राहक को इस दबाव में भी ले लेती है कि अगर वे चूल्हा उनसे नहीं लेंगें तो आने वाले समय में उनको गैस कि किल्लत के समय आसानी से गैस नहीं मिल पायेगी पर एजेंसी का साथ देने पर यह समस्या एजेंसी नहीं आने देगी. बाज़ार में गैस की कालाबाज़ारी से परेशान आम उपभोक्ता को इस डर से चूल्हा एजेंसी से ही खरीद लेने पर मजबूर कर दिया जाता है जो कि व्यापार के नियमों और उपभोक्ता के अधिकारों का खुला उल्लंघन है.
     गैस एजेंसियों में इस आदेश से आने वाले समय में क्या प्रभाव पड़ेगा यह तो अभी नहीं कहा जा सकता है फिर भी अब कम से कम जागरूक उपभोक्ता एजेंसियों की इस मनमानी का शिकार नहीं होने पायेगें. गैस के क्षेत्र में जितनी पारदर्शिता की आवश्यकता है आज भी वह उपभोक्ताओं को दिखाई नहीं देती है फिर भी गैस विपणन कम्पनियों द्वारा इस दिशा में किये जा रहे प्रयासों से आने वाले समय में कुछ सुधार होने की सम्भावना तो बन ही रही है. अभी तक किसी गैस एजेंसी को एक महीने में कितने सिलेंडर मिल रहे हैं इस बात की कोई भी जानकारी उभोक्ताओं को नहीं मिल पाती है जिस कारण से भी उपभोक्ताओं से गैस देने के नाम पर कुछ उगाही किये जाने की घटना सामने आती रहती हैं. राशन की दुकान की तरह ही गैस एजेंसियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए कि जिस दिन भी उन्हें गैस मिले उसका दिनांक के अनुसार वे सूचना पट पर प्रदर्शन करें और साथ ही यह भी लिखें कि महीने भर में मिलने वाली आपूर्ति की क्या स्थिति है जिससे उपभोक्ता को गैस नहीं है का बोर्ड देखने से भी बचाया जा सके.        
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