मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 6 अगस्त 2012

आन्दोलन, युवा और नए अन्ना

                जिस तरह से टीम अन्ना ने अचानक ही अपने आन्दोलन को ख़त्म कर देश के सामने एक नए राजनैतिक विकल्प की बात की है उससे इस आन्दोलन से जुड़े हुए उन युवाओं के सामने बहुत बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है जो अपना सब कुछ छोड़कर जे पी आन्दोलन की तरह इससे जुड़ गए थे. यह सही है कि देश को बेहतर राजनैतिक ढांचे की ज़रुरत है पर जिस तरह से आनन फानन में टीम अन्ना ने अपने मंसूबे को सफल करने के लिए राजनीति में उतरने की बात की है उससे तो यही लगता है कि इस आन्दोलन के बाद हो सकता है कि दिल्ली में कुछ सीटों पर टीम अपने उम्मीदवारों को जिता भी ले जाये पर उतने से क्या देश की संसद में सब कुछ बदल जाने वाला है ? देश को स्थिरता चाहिए और इस तरह की किसी भी घटना से देश की स्थिरता पर असर पड़ने वाला है क्योंकि पहली बार में हो सकता है कि ये प्रत्याशी कुछ बड़ा न कर पायें पर कुछ हद तक उन प्रत्याशियों को जीतने में मदद कर सकते हैं जो केवल जाति धर्म आदि की राजनीति ही करते रहते हैं. आज तक जनता को यह पता नहीं चल पाया है कि टीम के इस फैसले से अन्ना कितने सहमत हैं क्योंकि जिस तरह से टीम अन्ना के प्रभाव का दुरूपयोग करने में लगी हुई थी उसे शायद अन्ना ने भी अब समझ लिया है.
         जनता को भ्रष्टाचार से निपटने के लिए मज़बूत राजनैतिक इच्छा शक्ति वाले नेताओं की आवश्यकता है पर आज के नेता इन आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं जिससे भी जनता में निराशा है. अन्ना के आन्दोलन का आम जनता पर क्या असर पड़ा क्या कभी इस बारे में किसी ने सोचा है ? वास्तविकता यह है कि कार्यालयों में अब भ्रष्टाचार के रेट बढ़ गए हैं लोग बेशर्म होकर अन्ना टैक्स की बातें करते हैं जिस कम को पहले १०० रूपये देकर करवाया जा सकता था अब वह २०० में भी एहसान के साथ हो रहा है ? क्यों हम सभी एक तरफ तो टीम अन्ना के साथ खड़े तो नज़र आते हैं पर जब कहीं पर भी भ्रष्टाचार करने का अवसर मिलता है तो सही काम को भी ग़लत तरीके से करने में क्यों विश्वास करते हैं ? अन्ना आज भी प्रासंगिक है पर उनकी टीम की क्या प्रासंगिकता है यह समय ही बताएगा क्योंकि किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए जिस आत्म विश्वास की ज़रुरत होती है वह टीम में आज भी नहीं दिखाई दे रही है. परिवर्तन की आशा लगाये हुए युवा अगर आज अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं तो उसके पीछे टीम के निहित स्वार्थ भी है क्योंकि एक तरह से निर्णायक आन्दोलन की बात करके अचानक से ऐसे फ़ैसले लेने से टीम की विश्वसनीयता भी संकट में है.
        महत्वपूर्ण मुद्दों पर जिस तरह से टीम में कई सुर सुनाई देते हैं वह भी इस टीम की सबसे बड़ी कमज़ोरी है क्योंकि किसी भी लड़ाई को इस तरह से संविदा के तौर पर नहीं चलाया जा सकता है ? मूर्धन्य लोगों में मतभेद हो सकते हैं पर जब बात किसी टीम की हो रही हो तो कम से कम सभी को कुछ मुद्दों पर एक राय बनाकर ही जनता के सामने आना चाहिए पर टीम ने शुरू से ही इस तरह की बातों को अपने ढंग से डील किया है. अब हो सकता है कि लोकपाल मुद्दे पर अन्ना फिर से अपने आन्दोलन को अलग कर दें और एक बार फिर से अपने तरीक़े से अनशन को फिर से हथियार बना लें क्योंकि राजनीति उन्हें रास नहीं आने वाली है और जब उनकी राजनैतिक महत्वकांक्षा कुछ है ही नहीं तो वे अपने प्रभाव का लाभ टीम को क्यों उठाने दें ? अन्ना के लिए आज भी देश में सम्मान है और उनके आह्वाहन पर फिर से लोग इकट्ठे हो जायेंगें पर टीम के राजनैतिक फ़ैसले से अन्ना आज भी सहमत नहीं है इसलिए हो सकता है कि टीम अपने दल का नाम तय करने के साथ ही अन्ना से भी पीछा छुड़ा ले पर उसे भी पता है कि अन्ना के आन्दोलन से उसे जो ऊर्जा मिल सकती है वह कहीं और से नहीं मिल सकती है. फिलहाल एक भ्रष्टाचार से वास्तव में लड़ने के लिए एक और अन्ना की तलाश जारी है और जनता उनका समर्थन खुले दिल से करने को भी तैयार है.  
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

3 टिप्‍पणियां:

  1. एक और अन्ना की तलाश ..........।
    अन्ना के साथी ही तितर बितर हो रहे हैं । औऱ राजनेता वह तो कुर्सी पाते ही वसूली करना शुरू कर देते हैं ।
    जिससे उम्मीद हम लगाते है,
    वही घर लूटने को आता है ।

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