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गुरुवार, 6 सितंबर 2012

बिजली, यूपी और कोर्ट

              यूपी सरकार की भेदभाव भरी बिजली आपूर्ति नीति के कारण आख़िरकार हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका पहुँच ही गयी है जिसमें याचिकाकर्ता ने प्रदेश के धार्मिक महत्त्व वाली जगहों को २४ घंटे बिजली आपूर्ति करने की मांग की है. प्रदेश में बिजली की जो दशा है उसके लिए प्रदेश के सभी राजनैतिक दल ज़िम्मेदार हैं फिर भी जिस बेशर्मी से सत्ता में होने पर ये नेता अपनी बात को रखते हैं उससे हैरानी होती है. इन सभी को पता होता है कि अगली बार उनकी सरकार नहीं बनेगी तो वे कुछ उस तरह की बातें ही करते रहते हैं. २००५ में मुलायम का कहना था की २००८ में प्रदेश बिजली के मामले में आत्म निर्भर हो जायेगा २००७ में उनकी सरकार चली गयी फिर मायावती ने कहना शुरू किया की २०१३ में प्रदेश बिजली को बेचने की स्थिति में होगा और वे अब सत्ता से बाहर हैं, अब अखिलेश सरकार २०१८ का राग गा रही है क्योंकि उनको भी पता है कि २०१८ में उनके लिए कोई संभावनाएं बचेंगीं ही नहीं तो उनको जवाब भी नहीं देना पड़ेगा ? आख़िर नेता लोग इस तरह से कब तक प्रदेश की जनता को झूठे सपने दिखाते रहेंगें जबकि उनके पास उस दृष्टि की कमी है जो इस संकट से निजात दिलवाने का काम कर सकती है ? सरकार ९०० करोड़ रूपये लैपटॉप और टैबलेट बाँटने में खर्च कर सकती है पर इस धन से बिजली आपूर्ति को सुदृढ़ नहीं कर सकती है क्योंकि वह जनता के लिए कोई विष ही नहीं है.
             बिजली विभाग में भ्रष्टाचार और भ्रष्ट नीतियों का यह आलम है कि सरकार लखनऊ और किसी छोटे तहसील क्षेत्र के लिए बिजली आपूर्ति का निर्धारण तो अपने हिसाब से करती है पर इन दोनों जगहों के उपभोक्ताओं को फिक्स चार्ज के नाम पर बराबर का भुगतान प्रति किलोवाट के अनुसार करना पड़ता है ? क्या यह उपभोक्ताओं के हितों का खुला उल्लंघन नहीं है कि उन उपभोक्ताओं से भी वही शुल्क वसूला जा रहा है जो उनको कभी मिल ही नहीं रही हैं ऐसे में इस मसले को भी इसी याचिका से जोड़े जाने की आवश्यकता है क्योंकि इन छोटे शहरों के उपभोक्ताओं से वसूले गए इन बिलों के दम पर खरीदी गयी बिजली की बड़े पैमाने पर पूरे प्रदेश में बिजली कर्मचारियों की मिलीभगत से चोरी की जाती है ? जब इस तरह की सुविधा मिल ही नहीं सकती तो उपभोक्ताओं से २४ घंटे बिजली आपूर्ति के बराबर शुल्क कैसे लिया जा सकता है ? यदि बिजली विभाग को कुछ ठीक करना है तो उसे अपने कर्मचारियों की नकेल कसनी चाहिए और इस विभाग का ज़िम्मा आईएएस अधिकारियों से लेकर बिजली विभाग के अभियंताओं को ही सौंपा जाना चाहिए जिन्हें कम से कम विभागीय मसलों की जानकारी तो होती है. 
           धार्मिक स्थलों के लिए २४ घंटे बिजली आपूर्ति होनी ही चाहिए क्योंकि इन जगहों पर जितनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते जाते उनके लिए बिजली न होने से बहुत असुविधा होती है और बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति में किसी बड़ी दुर्घटना की भी सम्भावना रहती है तो उस स्थिति में बिजली न होने से बहुत बड़ी समस्या हो सकती है. आतंकियों के निशाने पर होने के कारण भी इन धार्मिक क्षेत्रों को इस तरह की सुविधा मिलनी ही चाहिए पर इस तरफ कोई ध्यान नहीं देना चाहता है और किसी घटना के हो जाने पर पूरी सुविधाएँ किसी भी कीमत पर जुटाने की बातें की जाती हैं. प्रदेश सरकार को अगर समझ में न आता हो तो गुजरात के उदाहरण से सीख ले सकते हैं आज जहाँ २४ घंटे बिजली आपूर्ति के बाद भी बिजली दूसरे राज्यों को बेचीं जाती है. पर यूपी और गुजरात की जनता और नेताओं में बहुत बड़ा अंतर है क्योंकि यहाँ पर आज भी चुनावी संघर्ष धर्म, संप्रदाय, जाति और क्षेत्र के आधार पर होता है जिसमें नाकारा लोग केवल अपने समीकरणों के कारण ही सत्ता तक पहुँच जाते हैं फिर जो व्यक्ति राज्य की जनता के बारे में सोचकर आगे बढ़ा ही नहीं है तो उससे क्या आशा की जा सकती है कि वह कुछ सुधार कर सकेगा. अखिलेश यादव की प्राथमिकता क्या है यह इसी बात से पता चल जाता है कि उन्होंने बिजली विभाग भी अपने पास ही रख लिया है जबकि यूपी में इस विभाग को वास्तव में सुधारने के लिए कम से कम १ कैबिनेट और २ राज्य मंत्रियों की आवश्यकता है. सीएम के पास इतनी व्यस्तता होती है कि वह केवल राजनैतिक फैसले ही ले सकता है पर किसी भी विभाग के साथ न्याय कर ही नहीं सकता है.         
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