मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

कश्मीर, शाहरुख़ और इस्लाम

               कश्मीर में यश चोपड़ा की नयी फिल्म की शूटिंग के समाप्त होने पर शाहरुख़ ने जिस तरह से कश्मीर की ख़ूबसूरती का बखान किया और यह भी कहा कि इस फिल्म को देखने के बाद बड़ी संख्या में लोग कश्मीर की तरफ आकर्षित होंगें उससे यही लगता है कि उन्हें इस बात का अंदाज़ा ही नहीं है कि वास्तव में कश्मीर में क्या हो रहा है ? जेहाद के नाम पर कश्मीर में आग़ भड़काने वाले चंद कट्टरपंथियों ने जब कश्मीर में भय का माहौल बनाकर वहां के मूल निवासी कश्मीरी पंडितों के साथ अन्याय और अत्याचार करने शुरू किये तब दुनिया के किसी भी हिस्से के मुसलमान ने इस बात को ग़लत नहीं कहा जबकि सभी जानते हैं कि भारत में कश्मीरी पंडितों जितनी शांत दूसरी और कोई जाति नहीं है फिर उन्हें क्यों वहां से निकला गया ? शाहरुख़ ने जिस तरह से अपने बयान में यह भी कहा कि इस्लाम को आतंक से न जोड़ा जाये क्योंकि सभी मुसलमान आतंकी नहीं है तो यह बात  पूरी तरह से सही है पर जब आतंकी देश के ताने बाने को तोड़ने का काम करते हैं तो केवल आतंकी सुरों वाले इस्लाम की बातें ही क्यों गूंजती हैं उस समय खुद शाहरुख़ जैसे लोग जिनके बड़ी संख्या में प्रशंसक हैं आगे बढ़कर दुनिया को इस्लाम की सही रौशनी दिखाने का काम क्यों नहीं करते हैं और क्यों इस्लाम की नकारात्मक छवि को पुष्ट होने का मौका देते हैं ?
             इस देश और हिन्दुओं ने मुसलमानों को प्राचीन काल से ही बहुत कुछ दिया है आज के कट्टरपंथियों को यह भी नहीं पता होगा कि कर्बला की लड़ाई में आज के अफगानिस्तान और पाकिस्तान के मूल निवासी रहे दत्त ब्राह्मणों ने खुलकर इस्लाम के अनुयायियों का साथ दिया था और शहादत पाई थी फिर भी इन कट्टरपंथियों को भारत और हिन्दुओं से क्या दिक्कत है ? शाहरुख़ को बोलने से पहले यह भी जानना चाहिए कि किसी मसले पर बोलना कितना विवादित हो सकता है जब उस विषय की जानकारी न हो. खुद उन्होंने भी कश्मीर की ख़राब स्थिति के कारणों पर बोलने के स्थान पर चुप रहना ही मुनासिब समझा क्योंकि कहीं न कहीं शायद उन पर भी कट्टरपंथियों का दबाव हैं और इस्लाम और कश्मीर पर बोलने से उनके ख़िलाफ़ भी फ़तवा जारी हो सकता है ? शाहरुख़ का कहना सही है कि सभी मुसलमान आतंकी नहीं है फिर भी आम मुसलमानों के घरों में आतंकियों के नाम पर बच्चों के नाम क्यों रखे जाते हैं जिन पाकिस्तानी शासकों ने भारत के लिए हमेशा परेशानी खड़ी की उनके ही नाम भारत के मुसलमानों को क्यों पसंद आते हैं ? पूरे देश में अगर मुस्लिम नामों पर गौर किया जाये तो ८० % नाम पाकिस्तान या कट्टरपंथ से प्रेरित मिलेंगें इसका क्या जवाब शाहरुख़ या अन्य लोग दे सकते हैं ? अब्दुल गफ्फार, अब्दुल हमीद, अबुल कलाम, ज़ाकिर, फ़ख़रुद्दीन जैसे नामों के स्थान पर अय्यूब, याहिया, ज़ुल्फ़िकार, ज़िया उल हक़, नवाज़, परवेज़, जैसे पाकिस्तानी नेताओं और मकबूल, मसूद, अफज़ल, ओसामा, कसब जैसे नामों को प्राथमिकता दी जाती है ?
           आज वास्तव में कमी है तो केवल इस्लाम के सच्चे रूप को सामने लाने वालों की क्योंकि कट्टरपंथियों का विरोध न करने के कारण ही इस्लाम के बारे में आज पूरी दुनिया में ग़लत धारणा बनती जा रही रही है और केवल पत्रकारों के सामने कुछ बयान देने से यह स्थति नहीं सुधर सकती है शाहरुख़ को इस देश ने बहुत कुछ दिया है और उन्होंने अपने कैरियर में सब कुछ पा लिया है तो क्यों नहीं वे खुद इस्लाम के सच्चे रूप को सामने लाने का शुरू नहीं करते हैं. किसी नेता के लिए यह मुश्किल हो सकता है पर व्यापक स्वीकार्यता वाले कलाकार के लिए यह बहुत आसान भी हो सकता है तो इसके लिए क्या शाहरुख़ जैसे दुनिया भर के प्रभावी मुसलमान इस तरह की कोई कोशिशें शुरू करना चाहते हैं ? जब से मानव की उत्पत्ति हुई है तभी से संघर्ष भी चलता रहा है भारतीय संस्कृति हमेशा से ही सद्भाव पर टिकी रही है पर अन्य जगहों पर सद्भाव की ऐसी मिसालें नहीं मिलती हैं जिस कारण से भी वर्ग संघर्ष बढ़ता है. इस्लाम के कट्टरपंथियों के हाथों में जाने के कारण ही भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में कुछ लोग पूरे इस्लाम को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर देते हैं क्योंकि किसी भी जगह से सद्भाव बढ़ने की बातें करने वाले लोग मिलते ही नहीं है ? अब भी समय है कि धर्म गुरुओं को अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मुसलमानों को सही दिशा दिखानी चाहिए वर्ना पूरी दुनिया में आज जिस संदेह से मुसलमानों को देखा जाने लगा है उसमें बढ़ोत्तरी ही होगी. उदारपंथियों के चुप रहने से दुनिया को इस्लाम का केवल कट्टरपंथी चेहरा ही दिखाई देता है जिससे आम मुसलमानों को भी आतंकी मानने का सिलसिला पश्चिमी देशों में चल पड़ा है और उनकी निष्ठा संदेह के घेरे में जा चुकी है.                   
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