मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

"महामहिम" अब इतिहास

                       राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा अभी तक राष्ट्रपति और राज्यपाल के संबोधन से पहले महामहिम लगाने की प्रक्रिया को समाप्त करने के लिए अपनी मंज़ूरी दे दी हैं इसके बाद अब भारत में आम तौर पर इन पदों पर बैठे लोगों के लिए इन शब्दों के इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध लग जाएगा. इससे पहले भी राष्ट्रपति ने एक कार्यक्रम में छपे हुए निमंत्रण पत्रों से अपने नाम के आगे से महामहिम शब्द को हटाने के लिए कहा था जिससे इस काम की सही मायने में शुरुवात तो हो ही चुकी थी. अंग्रेजों के ज़माने में इस तरह के भारी भरकम नाम प्रयोग में लाये जाते थे जिसके कारण आज़ादी के बाद संभवतः भारतीय जनमानस को अपने नेताओं का क़द कुछ छोटा न लगे इस पर विचार करते हुए ही इन्हीं शब्दों के प्रयोग पर संविधान सभा ने मंज़ूरी प्रदान कर दी होगी पर अब जब बराबरी की बातें किये जाने के साथ इन शब्दों को समाप्त किये जाने की बात हुई है तो यह एक अच्छा क़दम ही है.
                देश में अभी तक राष्ट्रपति और राज्यपालों को विशेषाधिकार दिए गए हैं और उनके लिए विशेष सम्मान सूचक शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है उससे यह कहीं न कहीं पुराने दिनों की याद दिलाता है पर जिस तरह से अब इन शब्दों से छुटकारा पाने के लिए राष्ट्रपति भवन ने आदेश जारी कर दिए हैं अब उनका इतिहास का हिस्सा बनना तय हो गया है. दिल्ली में राष्ट्रपति के विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने से सम्बंधित मसले पर भी यह दिशा निर्देश दिए गए हैं की यथा संभव इन्हें भी राष्ट्रपति भवन में ही आयोजित किया जाये जिससे राष्ट्रपति के आवागमन से आम लोगों को जो भी समस्याएं होती हैं उनसे भी निपटा जा सके. इस तरह से यदि भविष्य में राष्ट्रपति की भागीदारी वाले कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में ही होने लगेंगें तो उससे यातायात सम्बन्धी समस्याओं से छुटकारा मिलने के साथ ही सुरक्षा सम्बन्धी बहुत सारी समस्याओं से भी निजात मिल सकेगी और सुरक्षा सम्बन्धी ख़तरों से भी आसानी से निपटा जा सकेगा. जिस तरह से प्राथमिकता के साथ इन निर्देशों को गृह मंत्रालय को भेजा गया है उसके बाद इनको जल्दी ही मंज़ूरी भी मिलने की सम्भावना है.
              ऐसा नहीं है कि अभी तक इन पदों पर आसीन हुए लोगों ने इस बारे में कुछ सोचा ही नहीं था पर आम लोगों के बीच यह महसूस करवाने के लिए कि राष्ट्रपति भी उनकी तरह ही देश का हिस्सा हैं पर अब जो क़दम उठाये जा रहे हैं उनसे यही लगता है कि अब यह भावना कुछ और अच्छे से महसूस की जा सकेगी. इन पदों को आम लोगों के और करीब लाने के इस प्रयास की सराहना ही होनी चाहिए क्योंकि अभी तक ऐसे किसी भी प्रयास के बारे में सोचा भी नहीं गया था. देश के लोगों को अब यह लगना भी चाहिए कि इन पदों पर बैठे हुए लोग भी उन लोगों की तरह ही हैं. फिलहाल जनता के और करीब जाने के इस प्रयास से राष्ट्रपति और राज्यपाल के पदों के प्रति लोगों को और अधिक जुड़ाव महसूस हो सकेगा और साथ ही जनता को अपने लोकतंत्र के होने का मतलब भी अच्छे से अपने और करीब लगने लगेगा. देश में अंग्रेजो के समय से चली आ रही इस तरह की और भी प्रशासनिक और अन्य अनिवार्यताओं पर सरकार को गौर करके ख़त्म करने का प्रयास करना चाहिए.      
 हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. इसको सराहनीय तो जरुर कहा जाएगा लेकिन जरुरत इस बात कि भी है कि उच्च पदों पर बैठे लोग अपना नजरिया भी बदले !!

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