मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

वोट की ख़ातिर कुछ भी ?

                    देश के राजनैतिक नेताओं ने जिस तरह से आजकल बयान देने से पहले सोचना बंद ही कर दिया है उससे यही लगता है कि वोट पाने के लिए अब कुछ भी कह देना जायज़ माना जाने लगा है और किसी भी दल के बड़े से बड़े नेता को यह नहीं लगता है कि क्या कहना चाहिए और क्या नहीं ? जनरल बराड़ पर लन्दन में हमला होने के बाद जिस तरह से पंजाब में एक बार फिर से राजनीति करवट ले रही है उससे यही लगता है कि बलिदानों और मुश्किलों से जुटाई गयी इस शांति को एक बार फिर से ख़त्म करने की साजिशें शुरू हो चुकी हैं. १९८० के दशक में पंजाब में क्या सही और क्या गलत हुआ इस पर बहुत बहस की जा चुकी है और इस स्थिति में अब उन सारी बातों को एक बार फिर से उखाड़ने से आख़िर किसी को क्या हासिल होने वाला है अलबत्ता पाक में बैठी भारत विरोधी शक्तियां एक बार फिर से इस तरह की बातों को हवा देने का प्रयास शुरू कर देंगीं और पंजाब की शांति, प्रगति और स्थिरता को हिलाने का प्रयास शुरू कर देंगीं. अब यह हम सभी पर निर्भर है कि हम अब परिपक्वता के साथ इन बातों को नज़रंदाज़ करें या फिर से एक बार उसी दुश्चक्र में उलझ कर रह जाएँ जिससे निकलने में अनगिनत घावों और आसुंओं के साथ १५ वर्षों का समय लगा था ?
           पंजाब में स्थानीय राजनीति के चलते धर्म का जिस तरह से इस्तेमाल किया गया उसके बाद यह एक बार फिर से हो अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. वोट की राजनीति ने ही धार्मिक संत भिंडरावाले को आतंकियों का सिरमौर बना दिया और पवित्र हरमंदिर साहिब में उस दौरान जो कुछ भी चलता रहा उससे आम सिख समाज मुंह मोड़े रहा पर जब पानी सर से ऊपर निकल गया तो सरकार ने वहां पर सैन्य कार्यवाही के द्वारा अकाल तख्त साहिब से आतंकियों को निकालने का काम किया इस बारे में कुछ भी कहना एक नए विवाद को जन्म देता है. तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल अरुण श्रीधर वैद्य की इस पूरे प्रकरण में क्या ग़लती थी और क्या उन्होंने देश के तत्कालीन राजनैतिक नेतृत्व के आदेशों का पालन करके ग़लत किया था ? उससे पहले अकालियों द्वारा जिस तरह से धर्म का दुरूपयोग राजनीति में किया गया क्या वह सही था ? इन अकालियों को रोकने के लिए इंदिरा गाँधी ने जिस तरह से भिंडरावाले को बढ़ावा दिया क्या वह ठीक था ? पवित्र हरमंदिर साहब की गरिमा को सभी पक्षों द्वारा जिस तरह से खून से रंगा गया क्या वह ठीक था ? इन सब बातों के उत्तर किसी को नहीं मिल सकते क्योंकि हम सभी को केवल अपने पहलू से ही सब कुछ देखने की आदत बन चुकी है.
            निश्चित तौर पर पंजाब उस पूरे दौर में जो कुछ भी हुआ उसे किसी भी तरह से किसी भी परिस्थिति में सही नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि राजनेताओं को केवल अपने चंद वोटों और किसी भी तरह से सरकार बनाने के बारे में ही सोचने से छुट्टी नहीं मिलती है और वे यह भूल जाते हैं कि देश को चलाने के लिए कई बार अपने स्वार्थों का त्याग भी करना आवश्यक होता है ? पर शायद हमारा लोकतंत्र और हमारे नेता अभी इतने परिपक्व नहीं हुए हैं कि वे पूरी तरह से हर बात को करने से पहले देश के बारे में सोचने की आदत बना सकें जिस कारण भी उनकी कई हरकतें देश पर बहुत भारी पड़ जाया करती हैं. उस दौर में पंजाब में जो कुछ हुआ उसे कुरेदने के स्थान पर आज के जीवंत पंजाब के और विकास की बातें सोचने की आवश्यकता है जिससे आने वाले समय में इतिहास इस बात को एक बार फिर से न लिखे कि पंजाब के लोगों ने एक ही ग़लती को फिर से दोहराया था और उससे कोई सबक लेने के स्थान पर आँखें मूँद कर काम चलाया था. सिख दुनिया की सबसे जीवंत कौम है देश को गर्व है कि सिखों के गुरुओं ने इस देश की धरती को अपने खून से सींचा है देश को उन पर गर्व है कुछ लोगों के बयान देने से सिखों की गरिमा कम नहीं होती जिस पीड़ा से पंजाब और सिख गुज़रे फिर भी उन्होंने जिस तेज़ी से अपने को संभाला यह पूरी दुनिया में केवल वही कर सकते है.   
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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