मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 17 नवंबर 2012

भगत सिंह और लाहौर

                   पाक में कुछ लाहौर निवासियों द्वारा पाक की ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व की बातों और घटनाओं को संजोने के लिए जो प्रयास किये जा रहे थे अब वे केवल कट्टरपंथी और सियासती दांव पेंचों के साथ कोर्ट के चक्कर में भी फंसते नज़र आ रहे हैं क्योंकि सरकार द्वारा दिलकश लाहौर कमेटी के शादमान चौक का नाम शहीद भगत सिंह के नाम पर रखने के प्रस्ताव को हरी झंडी देने के बाद अब मामला लाहौर हाई कोर्ट में पहुँच गया है जहाँ पर स्थगन आदेश जारी होने के बाद सम्बंधित पक्षों से २९ नवम्बर तक अपने जवाब दाख़िल करने के लिए कहा गया है. इस पूरे मामले में जिस तरह से शहीद भगत सिंह के नाम के साथ सियासत की जा रही है उसका कोई औचित्य नहीं है. पाक में पलने वाले कट्टरपंथी समूह केवल एक बात पर अड़े हुए हैं कि लाहौर में किसी भी चौक या जगह का नाम किसी हिन्दू, सिख या इसाई के नाम पर नहीं रखने दिया जायेगा. उनके इस बयान से ही यह बात साफ़ हो जाती है कि ये समूह किस तरह से किसी भी बात का विरोध करने लगते हैं जिनका आज के समय में कोई महत्त्व नहीं होता है. इस सबके साथ में जो बात शर्मनाक है वह यह है कि पाक में आज भी सरकार के पास वह इच्छाशक्ति नहीं है कि वह दोनों देशों के साझा इतिहास को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का काम भी कर सके क्योंकि शायद आज़ादी के बाद से जिन लोगों के हाथों में पाक की बागडोर रही है उन्होंने भारत विरोध को ही अपनी प्राथमिकता में रखा है जिससे अब पाक में भारत के साथ अपने साझा इतिहास को जानने वालों की कमी है और वे इतिहास को भी सही ढंग से नहीं पढ़ पा रहा हैं.
                उन लोगों से और क्या आशा रखी जा सकती है जिन्हें भगत सिंह भी केवल सिख ही नज़र आते हैं क्योंकि देश की आज़ादी की लड़ाई में जितने प्रयास किये गए और गरम दल के नेताओं के जिस धड़े का प्रतिनिधित्व भगत सिंह किया करते थे उन्होंने केवल अंग्रेजों से आज़ादी के लिए ही अपना सब कुछ त्याग दिया उनके मन में कभी भी यह बात नहीं आई कि वे हिन्दू सिख या कुछ और हैं ? यहाँ तक कि पाक को बनवाने में सबसे अहम् भूमिका निभाने वाले जिन्ना ने भी पाक को एक खुले विचारों वाले राष्ट्र के रूप में विकसित करने का संकल्प दोहराया था. जिन्ना की जल्दी हुई मौत ने उनकी इज्ज़त बचा ली वरना अगर वे १० वर्ष हो जी गए होते तो शायद उनके अंतिम दिन भी जेल में ही कटे होते क्योंकि पाक में १९४७ के बाद से जिस तरह से कट्टरता का पालन पोषण किया गया आज उसी के नतीज़े के तौर पर वहां मस्जिदों में नमाज़ पढ़ते हुए नमाजियों पर गोलियां बरसाई जाती हैं और कट्टरता का घिनौना चेहरा सबके सामने आ जाता है. आखिर ये चंद लोग इस्लाम के नाम पर इस तरह की सनक को कब तक आगे बढ़ाते रहेंगें और आम मुसलमान पर आतंकी और कट्टरपंथी होने का ठप्पा लगवाते रहेंगें ? पूरी दुनिया में इस्लाम के ख़िलाफ़ माहौल बनाने में इन कट्टरपंथियों के हित छिपे हुए हैं क्योंकि जगह जगह पर धार्मिक विद्वेष फ़ैलाने से मुसलमानों के ख़िलाफ़ जो आक्रोश पनपता हैं उस माहौल में ये इस्लामी देशों से जिहाद के नाम पर चंदा उगाहते रहते हैं और इनकी दुकान चलती रहती है भले ही उसके लिए आम लोगों को कोई भी क़ीमत क्यों न चुकानी पड़ती हो ? 
               भारत सरकार को इस मामले में प्रयास करके यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि पाक को भगत सिंह के नाम से इस तरह का खिलवाड़ नहीं करना चाहिए क्योंकि भगत सिंह भारत के जन जन के दिल में बसते हैं और लाहौर में इतनी घटिया मानसिकता के लोगों के बीच अगर उनके नाम पर कोई चौक हो भी जाता है तो इससे भगत सिंह का नहीं लाहौर का सम्मान बढ़ता है. भगत सिंह का जो क़द आज है वह उनके सर्वोच्च बलिदान से है और बिना बात के निर्दोषों की जान लेने वाले चंद कट्टरपंथियों की समझ में यह कभी भी नहीं आने वाला है कि देश के शहीदों के सम्मान से देश की गरिमा बढ़ा करती है शहीदों की नहीं. पाक के कट्टरपंथियों ने कोर्ट में यह आरोप लगाया है कि भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी से मिले धन से ही भगत सिंह फाउंडेशन पाक में भगत सिंह का नाम आगे बढ़ने पर लगा हुआ है. इन कट्टरपंथियों को यह भी नहीं पता होगा कि पाक बनने के बाद लाहौर में इसी भगत सिंह चौक पर बोलते हुए जिन्ना ने उन्हें आज़ादी का सच्चा सिपाही बताया था और उनके प्रयासों की आज़ादी दिलवाने में सराहना की थी. पर आज के कट्टर पंथियों के लिए केवल औए केवल किसी भी तरह से अपनी बात को सही साबित करना ही एकमात्र उद्देश्य रह गया है क्योंकि उनमें ऐसी कोई भी अच्छाई शेष नहीं है जिन्हें देखकर लोग उनकी बातों से दिल से सहमत हो सकें तभी वे आज पाक समेत पूरी दुनिया में केवल खून खराबा करने पर ही आमादा हैं.      
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