मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 19 नवंबर 2012

दीवाली, मेवात और महिलाएं

               राजस्थान के मेवात क्षेत्र में धनतेरस, दीपावली पर जिस तरह से महिलाओं को खरीदे जाने और देव उत्थानी एकादशी के दिन उनका विवाह अधिक आयु के लोगों से करने का मामला सामने आया है उससे यही लगता है कि आगे बढ़ने के प्रयास में हम शायद इन्सान ही नहीं रह गए हैं ? अभी तक जिस तरह से मानव तस्करी की बातें सामने आती रही हैं उनसे यही लगता था कि कहीं न कहीं इसके पीछे इन लड़कियों या महिलाओं को अनैतिक कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता होगा पर अलवर, भरतपुर और धौलपुर के इस तरह के खुलासे से यही लगता है कि सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों लाभ उठाकर लोग आज भी इनको खरीद कर ऐसे काम में धकेल रहे हैं. पुलिस के अनुसार केवल इस तरह की घटनाएँ तभी रोकी जा सकती हैं जब उसके पीछे सामजिक समर्थन नहीं हो पर जब बिगड़ते हुए लिंग अनुपात के कारण लड़कियों की संख्या कम ही होती जा रही है तो प्रभावी और पैसे वाले लोग अपने लिए इस तरह से ही पत्नियों की व्यवस्था करने में लग गए हैं और शायद कमज़ोर आर्थिक स्थिति वाले माँ-बाप भी मजबूरी के चलते इस तरह की व्यवस्था में अनचाहा सहयोग कर इसे और भी बुरा स्वरुप देने में लगे हुए हैं.
               आज भी देश के बहुत सारे इलाकों में मानव तस्करी के माध्यम से इन लड़कियों और महिलाओं को बड़े शहरों और यहाँ तक कि विदेशों तक में बेच दिया जाता है जिसको कमज़ोर इच्छाशक्ति और कानून के ढीले ढाले रवैये के कारण रोकने में कोई खास सफलता नहीं मिल पा रही है जिससे देश के मौजूदा कानूनों के तहत भी कुछ नहीं किया जा सकता है. इस बारे में सबसे पहले जिस सामाजिक जागरूकता को लाने की आवश्यकता है अभी वह दिखाई नहीं दे रही है जिससे अनिच्छा से मिली सामाजिक मान्यता के चलते भी यह पूरा नेटवर्क अपना काम करने में लगा हुआ है. इस बारे में सबसे बड़ा परिवर्तन तभी लाया जा सकता है जब देश के इन भागों में महिलाओं में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए ज़मीनी स्तर पर कुछ काम किया जा सके क्योंकि जब परिवार की महिलाएं शिक्षित होंगीं तो वे किसी स्तर पर इस तरह के अनैतिक कार्यों का विरोध करने की क्षमता और हिम्मत भी जुटा पाएंगीं वरना परिवार के दायित्वों और आर्थिक कमज़ोरी के बहाने के सामने अशिक्षित महिला कितने समय तक टिक सकती है यह सभी जानते हैं. इनमे वह हिम्मत आ जाये अब वह परिस्थिति उत्पन्न करना हमारी इच्छाशक्ति पर ही निर्भर करता है.
                 हमें केवल कानून और पुलिस के हवाले इन कामों को छोड़कर चुप होकर नहीं बैठ जाना चाहिए क्योंकि यदि यह सब इनके भरोसे रुक सकता तो कब का रुक गया होता पर आज इसके लिए पूरे समाज को सोचने की आवश्यकता है. देश के जिन ज़िलों में इस तरह के काम चल रहे हैं उनमें के विशेष अभियान चलाकर इसके बारे में जन जागरूकता फ़ैलाने का काम किया जाना आवश्यक है क्योंकि जब लोग इस तरह की खरीद फरोख्त को बुरा मानेंगें तभी वे आगे चलकर इससे लड़ने की हिम्मत भी जुटा पायेंगें. अभी तक इस पूरे प्रकरण को जिस गोपनीयता के साथ चलाया जाता है उस स्थिति में पुलिस या अन्य लोगों को भी यह आसानी से नहीं पता चल पाता है कि जो शादी हो रही है वह वास्तव में तय की गयी है या फिर किसी खरीदी हुई लड़की के साथ किये गए इस घिनौने काम को सामजिक मान्यता दिलवाने के लिए ही शादी करने का ढोंग रचाया जा रहा है. इसलिए प्रत्येक वर्ष जो भी शादियाँ देव उत्थानी एकादशी के दिन होने वाली हैं उसकी सूचना २० दिन पहले पुलिस को दिया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए और जिले की महिला सेल की मदद से इन लड़कियों और महिलाओं से अकेले में बात की जानी  चाहिए और यह जानने का प्रयास किया जाना चाहिए कि शादी वास्तविक है या किसी के साथ अन्याय किया जा रहा है. इस तरह के प्रयासों से अगर इस पर पूरी रोक नहीं भी लग पायी तो कम से कम इसमें कमी तो अवश्य ही आ जाएगी पर सरकार के पास इस तरह के कामों के लिए शायद फुर्सत ही नहीं होती और पुलिस प्रशासन के पास सत्ता को खुश करने के लिए पहले से ही बहुत सारे काम होते हैं. 
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें