मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

आयोजन और भीड़ तंत्र

                          आस्था और विश्वास के सहारे जीने वाले आम भारतीय परिवारों में जिस तरह से व्रत, पूजा और अन्य तरह की बातों को बहुत श्रद्धा के साथ जीवन में उतारा जाता है वैसी दूसरी मिसाल पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलती है. पूर्व भारत का महत्वपूर्ण पर्व छठ पूजा अपने बड़े स्वरुप के कारण हमेशा से ही चर्चा में रहा करता है और इस पर्व को मानाने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने के कारण अब यह भारत के हर प्रान्त में किसी न किसी तरह से मनाया जाने लगा है क्योंकि प्रवासी बिहारी लोगों के मन में इस पर्व का बहुत महत्त्व होता है. इस व्रत के गढ़ कहे जाने वाले बिहार की राजधानी पटना में कल जिस तरह से सूर्य को अर्घ्य देते समय सारी व्यस्थाएं चरमरा गयीं तथा भीड़- भगदड़ के कारण लगभग १८ लोगों की जानें चली गयीं और बहुत से अन्य लोग घायल हो गए हैं उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं इन धार्मिक महत्त्व के आयोजनों में कुछ कमी अवश्य ही रह जाया करती है जिससे देश में इस तरह की घटनाएँ होती ही रहती हैं. आखिर क्या कारण है कि हर वर्ष इस तरह की घटनाओं के होते रहने के बाद भी भीड़ वाले आयोजनों को सुचारू ढंग से चलाने के लिए हमारा प्रशासन हमेशा ही चूक जाया करता है और भावपूर्ण ढंग से इन आयोजनों में आने वाले लोगों के लिए यह अंतिम कार्यक्रम ही बनकर रह जाता है ?
       देश के हर प्रान्त में किसी ने किसी अवसर पर भारी भीड़ उमड़ती ही रहती है पर आज भी इस बारे में कोई एक नीति नहीं बन पाई है जिससे शहरों के यातायात को बिना छेड़े हुए इन लोगों को आवागमन की सुविधाएँ आसानी से दी जा सकें ? धार्मिक आयोजन हमेशा से ही होते रहे हैं और उनके स्वरुप आज आबादी बढ़ने के कारण बढ़ते ही जा रहे हैं जिससे उतने ही संसाधनों से पूरी व्यवस्था कर पाना आज मुश्किल होता जा रहा है. सरकारों को इन पर्वों की महत्ता को समझते हुए इनके लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध करानी चाहिए जिससे आपातकालीन उपायों को भी पहले से तैयार रखा जा सके और इस तरह की किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके. किसी भी आयोजन में जब कोई पूजा एक समय विशेष पर ही होती है तब इस तरह का दबाव और बढ़ जाया करता है क्योंकि सभी श्रद्धालु उसी समय उस कर्म को करने की चेष्टा करते हैं. आबादी के अनुसार इन कार्यक्रमों को किसी भी नगर को सेक्टर में बाँट कर कार्ययोजना बनायीं जानी चाहिए जैसा कि कुम्भ जैसे आयोजनों में किया जाता है पर इस तरह के आयोजनों के लिए सरकारें भी यह मान लेती हैं कि ये अपने आप ही संपन्न हो जायेगें. किसी भी परिस्थिति में इस तरह के भीड़ भरे आयोजनों में जहाँ पर महिलाओं की संख्या अधिक होती है पूरी व्यवस्था न किये जाने से कुछ भी हो सकता है.
            आज हर प्रदेश को इस बारे में अपने यहाँ आयोजित होने वाले इस तरह के पर्वों के कार्यक्रमों के बारे में निरंतर सूचना इकट्ठी करनी चाहिए और आने वाले वर्षों के लिए उसी के अनुरूप तैयारियां भी करनी चाहिए. इस तरह के पूर्व नियोजित कार्यक्रम को करवाने से जहाँ एक तरफ सभी को सुविधा होगी वहीँ किसी भी आपातकालीन परिस्थिति में प्रशासन के लिए सहायता पहुँचाना भी आसान हो जायेगा. हम आम नागरिकों को भी यह समझना ही होगा कि जब भी हम भीड़ का हिस्सा हों तब भी हम अपनी नागरिक जिम्मेदारियों का अनुपालन सही ढंग से करें क्योंकि भीड़ तंत्र के सामने कोई भी व्यवस्था चरमरा जाती है और उससे बचने के लिए किये गए सारे उपाय बेकार साबित हो जाते हैं. किसी भी परिस्थिति में भीड़ में फँस जाने पर व्यवस्था में सहयोग करने के लिए हमें अपने आप को तैयार करना ही होगा क्योंकि बिना इसके हम किसी भी तरह से अपने और दूसरों को सुरक्षित नहीं रख सकते हैं. नेताओं काम अपनी राजनीति को चमकाना है तो मुख्यमंत्री सहायता राशि बांटते रहेंगें और विपक्षी दल सरकार पर लापरवाही के आरोप लगाते रहेंगें पर पूरी कवायद में आम लोगों की सुरक्षा जिस स्तर पर होनी चाहिए वो कहीं से भी नहीं हो पाती है और कहीं न कहीं से ऐसी अप्रिय घटना सुनाई देती ही रहती है. हमें आयोजनों में जाने के साथ ही ज़िम्मेदार नागरिक होने का सबूत भी देना होगा जिससे हम अपने नगर में होने वाले किसी भी आयोजन को सफल और सुरक्षित बना पायेंगें.        
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