मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 26 नवंबर 2012

२६/११ कानून और सुरक्षा

                       एक बार फिर से देश २६/११ की बरसी पर अपने उन नागरिकों और कर्तव्य निष्ठा में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले जवानों को याद करने जा रहा है तो इस सबमें एक बात उभर कर सामने आती है कि आख़िर आने वाले समय में ऐसे क्या उपाय किये जाएँ जिनसे आम नागरिक की सुरक्षा को मज़बूत किया जा सके और आतंकी मंसूबों को ध्वस्त किया जा सके ? भारत जैसे देश में जहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी को लोग दूसरों के ख़िलाफ़ कुछ भी कहने का अधिकार मानते हैं जिससे कई बार अनावश्यक रूप से सनसनी फैलती है और जो काम ठोस धरातल पर किये जाने चाहिए उन्हें करने में किसी भी सरकार या सुरक्षा बलों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. सबसे पहले एक बात पर पूरे देश का दिल से एकमत होना आवश्यक है कि देश के गद्दारों के साथ कोई नरमी नहीं बरती जाएगी और कानून को इतना सख्त किया जायेगा कि कोई भी आतंकी देश के निर्दोष नागरिकों की जाने से खिलवाड़ करने से पहले सोचने को विवश हो जाये ? किसी भी आतंकी हमले के समय जिस तरह से नेता लोग एकजुटता दिखाते हैं यदि उसका एक हिस्सा भी वे देश के कानून को आज के समय के अनुसार बनाने में लगा दें तो पूरा देश सुरक्षित हो जायेगा.
                      यह सही है कि कड़े कानून की ज़द में कई बार ऐसे निर्दोष भी आ जाते हैं जिनका आतंकियों या देश द्रोही गतिविधियों से कोई लेना देना नहीं होता है तो उस स्थिति में विवेचक को अपना काम करने देना चाहिए जिससे समय आने पर निर्दोषों को छोड़ा जा सके. आज एक बात देखी जाने लगी है कि समाज विरोधी तत्वों और आतंकियों के गठजोड़ ने देश के ग्रामीण परिवेश में रहने वाले मुस्लिम युवाओं को अपने चंगुल में फँसाने का काम शुरू कर दिया है जिसका असर यह होता है कि घर वालों को पता ही नहीं होता कि उनके बच्चे आख़िर किन लोगों के साथ काम कर रहे हैं फिर जब एक दिन अचानक पुलिस या विशेष सुरक्षा बल का कोई दस्ता उनके घर पहुँचता है तो वे खुद भी घबरा जाते हैं. देश में लगभग हर हिस्से में मुसलमान रहते हैं पर कुछ इलाकों में ही आतंकियों को क्यों पनाह मिलती रहती है इस बात पर उन स्थानों पर रहने वाले लोगों को ही सोचना होगा. जब तक मुस्लिम समाज बाहर जाकर काम करने वाले अपने बच्चों के रोज़गार और संगत के बारे में सोचना नहीं शुरु करेगा तब तक उनके भविष्य के साथ देश की सुरक्षा भी दांव लगी रहेगी ? यह काम बाहर से नहीं किया जा सकता है और बच्चों को इस तरह की सोच के साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार किया जाना चाहिए कि वे कभी भी आतंकियों के संपर्क में आने पर उनसे खुद ही दूर हो जाएँ.
                      आख़िर देश के आम नागरिक की सुरक्षा किस तरह से की जाये यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है पर इसका उत्तर भी इसी में छिपा हुआ है क्योंकि जिस दिन हम आम नागरिक अपनी सुरक्षा को लेकर सचेत हो जायेंगें तब कोई भी आतंकी या राष्ट्र विरोधी तत्व हमारी सुरक्षा में सेंध नहीं लगा पायेगा. हमें अपने आँख और कान खुले रखने होंगें और अपने इलाकों में क्रियाशील सुरक्षा समितियों का गठन करना होगा जिससे स्थानीय चिंताओं के साथ सामाजिक सरोकारों को भी पूरा किया जा सके. यदि हमारे आस पास इस तरह की सुरक्षा समितियां होंगीं तो वे स्थानीय अपराधों पर भी नज़र रखकर पुलिस के काम में सहयोग करने का काम भी करेंगीं. देश में जिस तरह से पुलिस बल की कमी है और कुछ रुपयों के लालच में जिस तरह से लोग सुरक्षा से खिलवाड़ करते रहते हैं उससे भी पार पाने की आवश्यकता है. हमारे मोहल्ले या आस पास कहाँ, कब और किस तरह के नए लोगों का नियमित या अन्तराल पर आना जाना हो रहा है अगर यह हमारी नज़रों में आ जाये तो आतंकियों के लिए अपने स्लीपिंग सेल बनाना आसान नहीं रह जायेगा. वे कभी धार्मिक तो कभी आर्थिक आधार पर लोगों को अपने काम में शामिल कर लेते हैं जो कि बाद में बड़ा सुरक्षा ख़तरा बन जाते हैं और असली लोग पहुँच से बाहर ही रहते हैं. इस मसले पर राजनीति को किनारे कर अब देश के लिए सोचने कीई ज़रुरत है पर उस स्थिति में वोटों के सौदागरों की दुकान बंद हो जाने का ख़तरा बढ़ जायेगा.  
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें