मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

सेना और युद्ध सामग्री

                                    रक्षा मंत्री ए के एंटोनी ने लोकसभा में स्वीकार किया है कि देश की रक्षा में लगी हुई हमारी सेना के पास युद्ध सामग्री की कमी बनी हुई है पर उसके साथ ही नियमित रूप से काम में आने वाले सामान की खरीद भी जारी है जिससे सेना का सामान्य काम आसानी से चलता रहे और उसे अपने अभ्यास और सीमा की चौकसी करने में किसी कमी का सामना न करना पड़े. आख़िर क्या कारण है कि दुनिया की सर्वोत्तम सेनाओं में शुमार हमारी सेना के लिए आवश्यक साजो सामान जुटाने में भी इतनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और उसके बाद भी जो खरीद सामान्य रूप से होनी चाहिए वह अभी भी नहीं हो पाती है ? अस्सी के दशक के बोफोर्स दलाली के भूत ने अभी तक सेना का पीछा नहीं छोड़ा है क्योंकि आज भी कोई खरीद करने से पहले उसकी दलाली और अन्य बातों पर अधिक चर्चा की जाती है जिससे किसी भी सामरिक महत्त्व की सामग्री की खरीद का महत्त्व ही ख़त्म हो जाता है. आवश्यकता निकल जाने पर इस तरह की किसी भी खरीद का क्या मतलब रह जाता है जिससे समय रहते सेना को कोई लाभ ही न मिल पाए ?
                                  जब हमारे देश की सैन्य आवश्यकताएं इतनी अधिक हैं तो उनको पूरा करने के लिए हमें अब अपने घरेलू भारी वाहन उद्योग को पूरी छूट देनी ही होगी क्योंकि जिस तरह से रोज़ ही बढ़ते हुए नए ख़तरों से हमारी सेना को जूझना पड़ता है उस स्थिति से निपटने के लिए यदि हमारा घरेलू उद्योग सहायता करने लगे तो जिस विदेशी पूँजी को हम इस खरीद पर खर्च कर देते हैं वह भी सुरक्षित रहेगी और आने वाले समय में देश के सैन्य उपकरणों की बढ़ती हुई मांग को भी पूरा किया जा सकेगा. किसी भी परिस्थति में अब देश की बड़ी कम्पनियों को देश निर्माण के लिए इस क्षेत्र में अब आगे आना ही होगा और साथ ही सरकार को भी इस तरह का माहौल बनाना होगा जिससे ये उद्योग आसानी से पनप सकें. ऐसा नहीं है कि देश में रक्षा क्षेत्र में वैज्ञानिकों की कमी है पर जब सरकार की तरफ़ से सहायक नीतियों का अभाव है तो उस स्थिति में यहाँ पर उन वैज्ञानिकों के लिए अच्छे अवसरों की कमी हो जाती है, जिसका लाभ उठाकर विदेशी कम्पनियां उन्हें अपने यहाँ के उद्यमों में अच्छे वेतन पर रख लेती हैं जिससे हमारी मेधा का जो उपयोग देश निर्माण में हो सकता है वह नहीं हो पाता है.
                  ऐसा भी नहीं है कि हमारे देश के उद्योग रक्षा क्षेत्र में अपना सहयोग नहीं कर रहे हैं अभी हाल ही में जिस तरह से टाटा समूह की रक्षा क्षेत्र के उत्पादों के निर्माण में लगी हुई कम्पनी ने जिस तरह से ५२ किमी तक मार करने वाली बोफोर्स से भी प्रभावी और दक्ष तोप बाज़ार में उतारी है उससे पूरे विश्व के रक्षा जगत में सनसनी मच गयी है. यदि सरकार की तरफ़ से नीतियों में सहयोगी रवैया अपनाया जाये तो देश की ही टाटा, हिंदुजा और आयशर समूह द्वारा इस क्षेत्र में कम समय में ही बहुत कुछ किया जा सकता है. आज भी ये समूह देश की सेना के साथ ही विदेशों के लिए भी सैन्य वाहनों का निर्माण करते हैं और वाहन उत्पादन में इनके पास जो क्षमता पहले से ही है उसका देश हित में और अधिक उपयोग केवल रक्षा उपकरणों के उत्पादन से जुड़ने से ही किया जा सकता है. जब अन्य तरह की सभी ज़रूरतों के लिए सरकार की तरफ से नियमित तौर पर नीतियों को सरल किया जाता है तो इस क्षेत्र में भी अब कुछ किये जाने की आवश्यकता है जिससे देश को रक्षा क्षेत्र की दलाली से बचाया जा सके और इन उपकरणों की खरीद पर खर्च किये जाने वाले विदेशी धन को भी खर्च होने से रोका जाये. हो सकता है कि कुछ अनुकूल नीतियों से आने वाले समय में हमारे रक्षा उत्पादन विश्व में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सफल हो जाये.      
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