मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

भूमि अधिग्रहण विधेयक

                       केन्द्रीय मंत्रिमंडल के नए भूमि अधिग्रहण, राहत एवं पुनर्वास विधेयक को मंज़ूरी देने के बाद अब इसको संसद के सदनों में विचार कर पारित करवाने के लिए रखा जायेगा. देश में विभिन्न स्थानों पर विकास और औद्योगिक ज़रूरतों के लिए अभी तक जिस तरह से एक तरफ़ा भूमि अधिग्रहण किया जाता रहा है वह हमेशा से ही विवादों को जन्म देता रहा है जिससे कई बार समय रहते बड़ी परियोजनाएं पूरी नहीं हो पाती है या फिर उनकी लागत में इतनी अधिक बढ़ोत्तरी हो जाती है कि उसे पूरा कर पाना भी समस्या बन जाती है. देश में पिछले दो दशको से जिस तेज़ी के साथ विकास हुआ है और सस्ती ज़मीन और मानव संसाधन के चलते बहुत सारी विदेशी कम्पनियां भी देश में आकर अपने उत्पादन को मज़बूत करने में लगी हुई हैं उस स्थिति में देश में एक व्यापक और कारगर पुनर्वास नीति की आवश्यकता महसूस की जा रही थी. भारत ने जिस तरह से विश्व में अपनी युवा आबादी के दम पर आगे बढ़ने के कारण पूरे विश्व का ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट किया है उसके बाद इस तरह की स्पष्ट नीति आवश्यकता महसूस की जा रही थी जिससे भूमि अधिग्रहण सुचारू ढंग से संपन्न हो सके और विकास को नए आयाम दिए जा सकें.
              कई बार देश में ग़लत नीतियों के कारण भी किसानों या अन्य भूमि मालिकों को उस स्तर पर मुआवज़ा नहीं मिल पाता है जिसके वे हक़दार होते हैं ऐसी स्थिति में नेताओं को अपना काम करने का अवसर मिल जाता है और किसानों के हितों की बात करके औद्योगिक और अन्य विकास को रोकने की कोशिश भी जाती है. अधिकांश मामलों में स्थानीय स्तर पर उभरे हुए नेता सौदेबाजी करके अपने लिए बहुत कुछ हासिल करके आम किसानों को ठगने का काम करते हैं और उन्हीं लोगों के साथ हो जाते हैं जिनके ख़िलाफ़ वे अपना आन्दोलन चलाना शुरू करते हैं ? ऐसे में आम लोगों के हितों की लगातार अनदेखी होती रहती है क्योंकि देश में भूमि अधिग्रहण के लिए कोई मानक तय नहीं हैं जब कोई बड़ा विवाद हो जाता है तब राज्य और केंद्र सरकारें जागती हैं पर तब तक दोनों पक्षों का बहुत नुकसान हो चुका होता है. भूमि अधिग्रहण में सरकारी मशीनरी की भूमिका को सीमित किये जाने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि हर मामले में दख़ल देने के अधिकार के कारण अधिकारी भी नेताओं से मिलकर किसानों के लिए कुछ भी नहीं सोचकर अपने हित की बातें सोचते रहते हैं.
      इस नए विधेयक में जहाँ इस बात की व्यवस्था की जा रही है कि आने वाले समय में होने वाले किसी भी निजी अधिग्रहण में प्रभावित होने वाले ८० % लोगों की सहमति आवश्यक होगी वहीं सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के सहयोग से लगने वाली परियोजनाओं में यह सीमा ७० % होगी. इससे जहाँ भूमि अधिग्रहण के बाद होने वाले विवादों से पहले ही निपटा जा सकेगा वहीं दूसरी तरफ़ उन औद्योगिक समूहों को भी अनावश्यक नेतागिरी और अफसरशाही से सुरक्षा दी जा सकेगी अभी तक जिनके कारण ही पूरा मामला लटकता दिखाई देता है. किसी भी बड़ी परियोजना को लगाते समय जिस तेज़ी से काम किये जाने की आवश्यकता होती है आज भी देश के राजनैतिक तंत्र और नौकरशाही में वह नहीं आ पाई है जिस कारण से भी देश के विकास की जो रफ़्तार होनी चाहिए अभी भी दिखाई नहीं देती है. पूरे विश्व में भारत में जिस तरह से नीतियां बनायीं जाती है और अनावश्यक बातों पर ज़ोर दिया जाता है अगर उनको समाप्त कर दिया जाये तो आने वाले समय में देश की तरक्की को और तेज़ किया जा सकता है पर अधिकारियों और नेताओं के ख़तरनाक गठजोड़ ने आज जिस स्तर पर काम करना शुरू कर दिया है उस स्थिति में कड़े कानून के बिना कुछ भी संभव नहीं है.      
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