मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

राइट टु रिकॉल

                 राजस्थान के बारां जिले की मंगरौल नगर पालिका परिषद ने देश में अपने आप में एक नए युग का सूत्रपात कर दिया है जहाँ एक दुर्लभ मामले में निर्वाचित पार्षदों द्वारा नगर पालिका के निर्वाचित निर्दलीय अध्यक्ष को बोर्ड मीटिंग के दौरान उनके पद से हटा दिया था जिसके जवाब में अध्यक्ष ने कोर्ट में अपील दायर की कि उन्हें आम वोटरों द्वारा चुन गया है इसलिए उन्हें आम वोटरों द्वारा ही हटाया जा सकता है जिससे कोर्ट ने राजस्थान नगर पालिका अधिनियम की धारा 53 में रिकॉल ऑफ चेयरमैन नियम 2012 के तहत एक बार फिर से वोटरों की राय जानने के आदेश पारित किये जिसके बाद १२ दिसंबर को मतदान हुआ था. जिसमें वर्तमान अध्यक्ष को जनता ने एक बार फिर से अध्यक्ष पद पर बैठने का अधिकार सौंप दिया और एक नए युग का सूत्रपात भी कर दिया क्योंकि अभी तक देश के किसी भी हिस्से में इस तरह से किसी भी नगर पालिका अध्यक्ष को इस तरह से अपने पद पर पुनः नहीं बैठाया गया है. इस पूरे मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि अध्यक्ष के ख़िलाफ़ २० में से १७ पार्षदों के वोट जाने के बाद भी लगभग ३,४८८ मतों से जनता ने अपने द्वारा पूर्व में निर्वाचित किये गए अध्यक्ष को पुनः कुर्सी सौंप दी.
             यह अपने आप में अनूठा मामला इसलिए भी बन जाता है क्योंकि अभी तक कहीं पर भी इस तरह के नियम का इस तरह से उपयोग नहीं किया गया था और साथ ही देश और राज्यों के कानून में मिलने वाली सुविधा और अधिकारों का इससे अच्छा उपयोग और क्या हो सकता है जिसमें जनता को ही सर्वोपरि माना जाता है. देश में ज़मीनी स्तर तक लोकतंत्र को पहुँचाने की मुहिम में इस तरह के प्रयासों से बहुत अधिक सफलता मिल सकती है अगर इनका सही दिशा में सही तरह से उपयोग किया जाये. अभी तक सरकार की मंशा के अनुरूप न चलने वाले निकाय अध्यक्ष को सरकार अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके हटा दिया करती थी पर अब इस तरह के कानून से कम से कम राजस्थान में तो किसी को केवल राजनैतिक कारणों से अपने पद से हटाना बहुत ही मुश्किल होने वाला है. यह एक ऐसा कानून है जिसका पूरा देश में प्रयोग करना चाहिए जिससे निर्वाचित लोगों के मन में इस बात का भय भी उत्पन्न हो सके कि सही काम न करने की स्थिति में जनता उनको हटा भी सकती है साथ ही अच्छा काम करने पर जनता का साथ उन्हें पद पर बनाये भी रख सकता है.
             देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज की जो अवधारणा बनायीं गयी थी उसका सही मायने में यही उद्देश्य था कि कहीं भी जनता को किसी भी निर्वाचित प्रतिनिधि के समर्थन या विरोध करने के लिए हमेशा ही लैस रखा जाये जिससे एक बार निर्वाचित हो जाने पर कोई अपने को ५ वर्षों तक पूरी तरह से सुरक्षित न समझे. इससे जहाँ काम न करने वालों पर काम करने का दबाव बनेगा वहीं दूसरी तरफ़ काम करने वालों पर अनावश्यक कार्यवाही की तलवार भी नहीं लटकती रहेगी. अभी तक जिस तरह से जाति, धर्म, संप्रदाय और वर्ग आधारित राजनीति ने देश में अपना शिकंजा कस लिया है इस तरह के जनता के द्वारा किये जाने वाले प्रयास उनको भी काफी हद तक सीमित कर सकते हैं क्योंकि अगर इस तर के किसी कुचक्र में उलझ कर जनता ने एक बार ग़लत व्यक्ति को चुन भी लिया है तो ५ वर्षों से पहले ही उनके पास उसे हटाने का अधिकार भी है जिससे नाकारा लोगों को इस तरह के समीकरणों से जीतने के बाद भी अपने को साबित करने के दबाव में जीने के लिए मजबूर होना ही पड़ेगा. अभी तक देश में कानून और नियमों की इतनी अधिक जानकारी लोगों को नहीं है वरना कुछ जागरूक लोगों के समूह राजनीति में फैली हुई इस तरह की गंदगी को दूर करने का काम तो कर ही सकते हैं.       
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

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