मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 16 दिसंबर 2012

पाक, मलिक और हम

                                   कहने को दोस्ती का पैग़ाम लेकर भारत आये पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक ने जिस तरह से सामान्य कूटनीतिक शिष्टाचार को कई बार किनारे करते हुए अजीब तरह से बयानबाज़ी की उससे यही लगता है कि भारत आने की उनकी और पाक सरकार की मंशा में कहीं भी द्विपक्षीय सम्बन्ध सुधारने का कोई महत्त्व नहीं है. किसी भी देश की यात्रा पर जाने पर कोई भी नेता किसी भी परिस्थिति में किसी भी ऐसे विवादित मुद्दे पर बयान देने से आम तौर पर परहेज़ करते हैं जिनका कोई मतलब नहीं होता या फिर वे उस देश की स्थानीय राजनीति पर अनावश्यक रूप से दबाव बना दिया करते हैं फिर भी पाक से जब आज तक भारत को किसी भी तरह के शिष्टाचार की आशा नहीं रही है और उसने कभी भी दोनों देशों के संबंधों में इसकी परवाह भी नहीं की है तो उसके किसी मंत्री के भारत आने से क्या अंतर पड़ने वाला है ? आतंक के मुद्दे पर चूंकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पाक पूरी तरह से घिरता ही जा रहा है और उसका मानवीय और इस्लामी मुखौटा सबके सामने उतर रहा है तो भारत आकर उसका कोई मंत्री किस तरह से सामान्य रूप से अपने दौरे को पूरा कर सकता है क्योंकि सामान्य शिष्टचार निभाने में उसे उन असहज आकर देने वाले सवालों के जवाब भी देने पड़ेंगें जो वह कभी भी नहीं देना चाहता है.
                         पाक से दोस्ती की बात सोचना और करना ही परिस्थितियों से आँखें मूंदने जैसा है क्योंकि जब तक पाक में भारत को नष्ट करने का सपना देखने वाले लोग मौजूद रहेंगें तब तक किसी भी तरह से सम्बन्ध सामान्य नहीं रह सकते हैं. पाक ने अपने घिनौने रूप को दर्शाते हुए ही कश्मीर घाटी में शांति के साथ जी रहे कश्मीरी मुसलमानों की ज़िन्दगी हराम कर दी और भाड़े के आतंकियों के सहारे दो दशकों तक वहां के युवकों को बहकाने का काम किया पर अब जब हालात सामान्य हैं और कश्मीर में भी विकास का पहिया आगे बढ़ रहा है तो पाक फिर से सीमा पार से घुसपैठ को बढ़ावा देने में लगा हुआ है. अटल सरकार की दोस्ती का जवाब पाक ने किस तरह से कारगिल युद्ध के रूप में दिया था फिर भी हम पता नहीं क्यों पाक से सम्बन्ध सामान्य करने के लिए हमेशा ही लगे रहते हैं ? पाक तो कभी भी अपनी हरक़तों से बाज़ नहीं आने वाला है अब यह हमें ही तय करना ही होगा कि उसके साथ हमारे सबंधों को किस तरह से निभाना है क्योंकि एक तरफ़ा दोस्ती का यह नाटक आख़िर भारत कब तक खेलता रहेगा ?
                            देश में आने वाले किसी देश के नेता की ज़बान पर अगर लगाम नहीं है तो क्या हमारे देश के नेताओं को यह शोभा देता है कि वे उसके बिछाए हुए जाल में उलझकर अपने मूल मुद्दों को भूल जाएँ ? पाक के नेताओं की पाक या दुनिया के किसी भी मंच से भारत के साथ विवादित मुद्दे उठाने की आदत शुरू से ही रही है जिसका कारण वे आज भी विश्वसनीय नहीं समझे जाते हैं पर हमारे नेताओं को क्या हो जाता है कि वे किसी ऐसे अनावश्यक रूप से दिए गए ध्यान को भटकाने वाले बयान के पीछे पड़कर अपनी गरिमा को कम करने पर आमादा हो जाते हैं ? जिस तरह से  देश में राजनैतिक दलों ने मलिक के बयानों को प्रमुखता दी उसकी कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि उनके जैसे नेता केवल दिल्ली घूमने और अजमेर में चादर चढ़ाने ही आते हैं. भारत सरकार के मेहमान बनकर वे अपनी मौकापरस्ती को दिखाने में कोई चूक नहीं करते हैं पर हमारे नेता इन बातों को ऐसे लेते हैं जैसे किसी मलिक के कह भर देने से कोई पहाड़ टूटने वाला है ? पाक से जब भी कोई नेता आये तो उसे केवल कूटनीतिक सम्मान देने के साथ किसी अन्य तरह के सम्मान को देने या अनावश्यक अहमियत देने की क्या ज़रुरत है किसी ऐसे विवादित देश के वाचाल मंत्री के किसी बयान पर देश के नेता जिस तरह से अपनी केंद्र सरकार को चुनौती देने लगते हैं उसका क्या औचित्य है पर शायद गुजरात चुनाव के समय कुछ ऐसी आक्रामकता भाजपा के लिए कुछ और वोटों का जुगाड़ करने का काम भी कर सकती है....                
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