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गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

आतंकवाद और सज़ा

                 राज्य सभा में विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान सभी दलों के नेताओं ने एक मत से इस बात पर ज़ोर दिया कि आतंकवाद से जुड़े किसी भी व्यक्ति को कठोर सज़ा दी जानी चाहिए पर इस महत्वपूर्ण चर्चा के दौरान भी सदस्यों ने अपने दलों की पूर्व निर्धारित रेखा पर ही बोलने का काम किया उससे यही लगता है कि इस मामले पर आज भी राजनीति ही हावी रहती है. अभी तक सभी दल और नेता इस मुद्दे पर एकमत ही नहीं हो पाए हैं कि सज़ा का स्वरुप क्या होना चाहिए क्योंकि इस मामले में भी हमारे नेताओं को अपने वोट बैंक की चिंता खाती रहती है इसलिए वे अपने को बहुत संवेदनशील दिखाते हुए किसी निर्दोष को इससे बचाने की वक़ालत करते भी दिखाई देते हैं ? क्या देश में होने वाले किसी भी विधि विरुद्ध काम को इस चश्मे से देखा जाने चाहिए कि इसमें कौन शामिल था या उसे निष्पक्ष रूप से जांच के बाद किसी भी आरोपी के ख़िलाफ़ कड़ी सज़ा देने की व्यवस्था में सहयोग करना चाहिए. इस मुद्दे पर सबसे विवादित बात यही रहती है कि देश के मुसलमानों को यह कह कर डराने का काम किया जाता है कि सख्त कानून से उनका उत्पीड़न होगा जबकि वास्तविकता कुछ और ही होती है.
            आख़िर मुसलमान ही इस बात से क्यों डरें कि किसी कड़े कानून से उसको नुकसान होगा क्या इस तरह की बातें करके नेता कहीं न कहीं से यह साबित करते नहीं दिखाई देते हैं कि आम तौर पर मुसलमान इस्लामी चरमपंथियों का सहयोग करते है ? जब आम मुसलमान को किसी आतंकी से कोई मतलब नहीं है तो उसे डराने की भी क्या ज़रुरत है और सबसे बड़ा नुकसान इन नेताओं द्वारा इस तरह की भय बढ़ने वाली बातें करके किया जाता है जिससे खुद मुसलमानों को भी अपने साथ भेद-भाव होता हुआ दिखाई देता है. इस पूरे प्रकरण के पीछे जो कारण काम करता है उस पर कोई भी ध्यान नहीं देता है. आज भी आम भारतीय मुसलमान को यही लगता है कि इस्लाम के नाम पर बनाये गए पाकिस्तान में सब कुछ शरिया के अनुसार ही चल रहा है तो ऐसी परिस्थिति में जब कोई भारतीय नौजवान मुसलमान किसी खाड़ी देश में किसी पाकिस्तानी से मिलता है तो वे उसे अपने जाल में फंसा कर आतंकियों का समर्थक बनाकर स्लीपिंग मोड्यूल के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं जिससे खाड़ी के देशों में जाकर अपने परिवार को पालने के लिए देखे गए सपने इस जिहाद की मानसिकता में बदल जाते हैं. अपने परिवार के लिए ईमानदारी से कमाने की तलाश में गए इन युवकों से जिहाद के नाम पर किस तरह का काम लिया जाता है जो उन्हें आतंकियों के समर्थक के रूप में खड़ा कर देता है.
          क्या इस्लामी देशों में जाकर काम करने वाले युवाओं को इन सबसे बचने की सलाह पहले से ही नहीं दी जानी चाहिए जिससे किसी भी ऐसी स्थिति में पहुँच जाने पर वे अपने दिमाग़ का सही इस्तेमाल कर सकें. क्या कारण है कि जब महाराष्ट्र में किसी बड़े नेटवर्क का खुलासा होता है तो उसके तार अधिकतर पूर्वी उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ या आस पास के किसी इलाक़े तक जुड़े दिखाई देते हैं ? इन इलाक़ो के लोगों में यह गुस्सा सहज ही है कि उनके पूरे क्षेत्र को शक़ की नज़रों से देखा जाता है पर कभी इन लोगों ने यह सोचा कि ऐसा क्या कारण है कि गैर कानूनी काम करने में उनके यहाँ के बच्चे आख़िर कैसे लग जाते हैं ? अपने थोड़े से आर्थिक लाभ के लिए मूल समस्या से आँखें मूंदने का जो हश्र होता है आज वही दिखाई देता है. कहीं न कहीं से हमारी परवरिश में कोई कमी रह रही है या फिर हम ही जान बूझकर पाने बच्चों को इस दलदल में जाने दे रहे हिं जिससे निकल पाने का कोई रास्ता बाद में बचता ही नहीं है. सज़ा की मात्रा या उसके पहलुओं पर विचार किये जाने के स्थान पर आज देश के नेता मुसलमानों को डराने का काम ही क्यों करते हैं और किसी कड़े कानून से केवल उन्हें ही डरने की क्या ज़रुरत है अगर वे उस तरह के किसी काम में शामिल ही नहीं हो रहे हैं क्यों देश में बहुत सारे ऐसे कानून हैं जिनके बारे में लोग जानते भी नहीं हैं.             
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